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AMAZING FACTS ABOUT CONGRESS : जब पार्टी से निकाल दी गई थीं इंदिरा गांधी, फिर ऐसे बना ली अपनी ‘असली’ कांग्रेस!

AMAZING FACTS ABOUT CONGRESS : इंदिरा गांधी ने काँग्रेस से निकाले जाने पर अपने गुट के नेताओं संग नई पार्टी बनाते हुए तत्कालीन कांग्रेस को जबरदस्त चुनौती दी थी. उसके बाद हुए आम चुनावों में इंदिरा गांधी ने अपनी पार्टी को जीत दिलाई और सरकार बनाई.

AMAZING FACTS ABOUT CONGRESS
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी. (File Photo)

AMAZING FACTS ABOUT CONGRESS :

हमारे देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस को बने हुए 136 साल पूरे हो गए हैं. काँग्रेस पार्टी का पूरा नाम इंडियन नेशनल कांग्रेस है, इस पार्टी की स्थापना अंग्रेज प्रशासक रहे एओ ह्यूम ने वर्ष 1885 में की थी. क्या आप जानते हिय की आज जो कांग्रेस पार्टी अस्तित्व में है, क्या यह वही आजादी के पहले वाली कांग्रेस है या फिर यह कोई दूसरी पार्टी है?

GENERAL KNOWLEDGE की बात है कि यह वही 136 साल पुरानी राजनीतिक पार्टी है, लेकिन इससे जुड़ा हुआ एक फैक्ट और है, जिससे भी किनारा नहीं किया जा सकता. ओर वो यह है कि आयरन लेडी के नाम से मशहूर देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने काँग्रेस मे अपना विरोध होता हुआ देख पार्टी तोड़ डाली थी और अपनी एक अलग कांग्रेस पार्टी खड़ी कर दी थी.

तथ्यों की बात करे तो 1969 में इंदिरा गांधी ने 1885 वाली कांग्रेस (O) को तोड़कर कांग्रेस (R) का गठन कर लिया था. वहीं 1977 में पुरानी कांग्रेस (O) भारतीय जनता पार्टी के साथ मर्ज हो गई थी. 1978 में इंदिरा गांधी की पार्टी नई कांग्रेस (I) अस्तित्व में आई, जिसे बाद मे उस समय के चुनाव आयोग ने 1984 में असली कांग्रेस के तौर पर मान्यता दी. बाद मे 1996 में पार्टी के नाम से आई हटाया गया और इस तरह यह इंडियन नेशनल कांग्रेस के रूप में जानी जाने लगी.

जब इंदिरा गांधी को बनाया गया देश का प्रधानमंत्री

यह कहानी 60-70 के दशक में शुरू होती है. वर्ष 1966 में कांग्रेस सिंडिकेट ने सर्वसम्मति से इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाया था, उस समय वह उतनी अनुभवी नहीं थीं. साथ ही वह संगठन में भी बहुत मजबूत नहीं थीं. उनके लिए उस समय जवाहर लाल नेहरू की बेटी होना और जनता का उनके प्रति भावनात्मक लगाव उनके पक्ष में गया. इंदिरा गांधी इन सबके बावजूद बहुत कम समय में राजनीति की माहिर खिलाड़ी बन चुकी थीं. वर्ष 1967 के चुनावों ने उस समय उन्हें काफी राहत दी और इस तरह सरकार पर उनका नियंत्रण स्थापित हो गया.

1967 में पार्टी के अध्यक्ष बदले गए, उस समय कामराज गए ओर उनकी जगह निजलिंगप्पा आए. ये सिंडिकेट के संस्थापक सदस्यों में से थे. इन्ही के कारण उस समय इंदिरा गांधी अपने लोगों को नई कार्यसमिति में शामिल नहीं करा पाईं. उस समय पीएम होने के बावजूद संगठन में उनकी स्थिति बहुत मजबूत नहीं हो पाई थी ओर उस संगठन में उनकी स्थिति लगातार कमजोर बनी हुई थी.

इंदिरा गांधी को पीएम पद से हटाने की फिराक में था सिंडिकेट

1968-69 के दौरान सिंडिकेट के कई सदस्य इंदिरा गांधी को पीएम पद से हटाने की फिराक में ताक लगाए बेटहे हुए थे. इस बात का जिक्र निजलिंगप्पा ने अपनी डायरी में भी किया है. उन्होंने 12 मार्च 1969 को लिखा था कि मुझे अब नहीं लगता कि इंदिरा पीएम बने रहने के लायक हैं. इंदिरा गांधी भी उस समय अपने विरोध को लेकर सतर्क थीं. वह पीएम के पद की ताकत से वाकिफ हो चुकीं थी ओर इस कोशिश में थीं कि न सरकार जाए और न ही पार्टी टूटे.

इस बीच मई 1969 में एक बड़ी घटना घटी ओर तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन का निधन हो गया. ऐसे मे अब सिंडिकेट यह चाहता था कि इस कुर्सी पर उनका आदमी बैठे. इंदिरा गांधी ने इस बात का विरोध किया. फिर भी सिंडिकेट के मुख्य सदस्यों में शामिल नीलम संजीव रेड्डी का राष्ट्रपति के रूप में मनोनयन किया गया. इस घटना के बाद इंदिरा भी खुलकर मैदान में आ गईं.

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जब इंदिरा गांधी ने दिखाई अपनी ताकत

उस समय की तमाम परिस्थितियों से वाकिफ इंदिरा ने भी उस समय मोर्चा खोलते हुए मोरारजी देसाई से वित्त मंत्रालय छीना ओर इसी के साथ 14 बैंकों के राष्ट्रीयकरण की घोषणा कर दी. इंदिरा ने राजाओं के प्रिवीपर्स बंद किए. पब्लिक के बीच इंदिरा के इन महत्वपूर्ण फैसलों से उनके प्रति अच्छा मैसेज गया और उनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी.

बाद मे राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी की जगह पर वे वीवी गिरि के पक्ष में खड़ी हो गईं और लोगों से अपने अंतरात्मा की आवाज पर वोट देने की अपील की. दूसरी ओर कांग्रेस अध्यक्ष निंजलिगप्पा ने रेड्डी के लिए जनसंघ और स्वतंत्र पार्टी के नेताओं से मुलाकात करना शुरू कर दिया.

इंदिरा को मौका मिल गया. अब उन्होंने खुलकर सिंडिकेट सदस्यों पर वार किया. कहा- वो रेड्डी की जीत के लिए सांप्रदायिक ताकतों से मिलकर उन्हें सत्ता से हटाने की साजिश रच रहे हैं. उन्होंने संसद में कांग्रेस सदस्यों से अंतरात्मा की आवाज पर वोट करने को कहा और कम वोटों से ही सही, लेकिन वीवी गिरी 20 अगस्त को राष्‍ट्रपति चुन लिए गए.

जब इंदिरा को पार्टी से निकाला

कांग्रेस सिंडिकेट की तगड़ी हार के बाद पार्टी में टूट खुले तौर पर सामने आ गई थी. पार्टी सदस्यों ने इंदिरा गांधी पर अपने व्यक्तिगत हितों को ऊपर रखने और अनुशासनहीनता का आरोप लगाकर 12 नवंबर 1969 को पार्टी से बाहर कर दिया. इससे आहात इंदिरा गांधी ने तुरंत अपना अलग कांग्रेस संगठन बनाया, ओर उन्होंने इसे नाम दिया कांग्रेस (R) यानी कांग्रेस रिक्विजिशनिस्ट. ओर इस तरह सिंडिकेट के प्रभुत्व वाली कांग्रेस का नाम पड़ा कांग्रेस (O) कांग्रेस यानी ऑर्गनाइजेशन.

इंदिरा गुट की जीतके बाद बनी असली कांग्रेस

कांग्रेस (R) के अधिवेशन के मौके पर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के 705 सदस्यों में 446 ने इंदिरा गांधी खेमे यानि कांग्रेस (R) के अधिवेशन में हिस्सा लिया ओर इस तरह दोनों सदनों के 429 कांग्रेसी सांसदों में से 310 पीएम इंदिरा के गुट में शामिल हो गए. इसमें 220 लोकसभा भी सांसद थे. ऐसे मे इंदिरा गांधी को सदन में बहुमत के लिए 45 सांसद कम पड़ रहे थे. उस समय इंदिरा ने वामदल और निर्दलीय सांसदों से समर्थन मांगा. ओर उन्होंने अपना समर्थन दिया भी, इस तरह इंदिरा गांधी ने अपना वर्चस्व साबित किया.

इस पूरी कहानी का सार यह है कि 1969 में इंदिरा गांधी ने अपने गुट के नेताओं संग नई पार्टी बनाते हुए तत्कालीन कांग्रेस को जबरदस्त चुनौती दी थी. बाद में हुए आम चुनावों में इंदिरा गांधी ने अपनी पार्टी को जीत दिलाई और कांग्रेस सरकार बनाई. इस प्रकार से अनुशासनहीनता के आरोप में उन्हें पार्टी से निकालने वाली सिंडिकेट को ही उन्होंने ठिकाने लगा दिया और अपनी पार्टी कांग्रेस (R) को असली कांग्रेस साबित कर दिया.

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