“सफल व्यक्ति कभी निराश-हताश नहीं होता.”
HRITESH LOHIYA SUCCESS STORY : कई बार किसी व्यक्ति की क़िस्मत रातों-रात बदल जाती है कुछ ऐसी ही क़िस्मत है आज की सक्सेस स्टोरी की सख़्सियत हृतेष लोहिया (HRITESH LOHIYA) की जिन्होंने हर तरह के व्यवसाय में अपना हाथ आजमाया किंतु उसके बावजूद भी उन्हें कभी आशातीत सफलता नहीं मिल रही थी.
2009 की मंदी के दौर में तो उनकी हताशा और निराशा और भी अधिक बढ़ने लगी. ऐसे समय में कुड़े और कबाड़ से तैयार होने वाले साजो सज्जा का सामान बनाने का उनका आइडिया आज देश विदेशों में बहुत नाम कमा रहा है और इससे उन्हें हर साल करोड़ों का बिजनेस भी मिल रहा है.
कई बार हमारे यहाँ कबाड़ जो घर के कोने में महत्वहीन पड़ा रहता है उसे साफ सफाई में ऐसे ही फेंक दिया जाता है या फिर रद्दी के भाव में बेच दिया जाता है. मगर इसी कबाड़ में अपनी कलात्मकता को जोड़ कर पश्चिमी राजस्थान के जोधपुर शहर के एक व्यक्ति हृतेष लोहिया न सिर्फ करोड़ों रुपयों का कारोबार कर रहे हैं बल्कि देश विदेशों में अपने इस अनोखे आइडिया के दम पर अपना लोहा भी मनवा रहे हैं.
2005 में हृतेष लोहिया इंटरनेशनल फर्निचर और हैंडीक्राफ्ट का व्यवसाय करते थे. मगर धीरे-धीरे यह व्यवसाय उनके लिए घाटे का सौदा साबित होने लगा. फिर उन्होंने कैमिकल फैक्ट्री, वाशिग पाउडर और स्टोन कटिंग जैसे व्यवसायों में भी अपनी क़िस्मत आज़माई. लेकिन उन्हें कही पर भी सफलता हाथ नहीं लग रही थी और उनके ऊपर आर्थिक बोझ भी बढ़ता ही जा रहा था.
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पत्नी के साथ मिलकर शुरू की PRITI INTERNATIONAL
39 वर्षीय हृतेष लोहिया ने उसी समय अपनी पत्नी प्रीति (37) के साथ मिलकर एक छोटी सी प्रोडक्शन यूनिट बनाते हुए कबाड़ से कुर्सी, अलमारी, मेज, सोफा, स्टूल, बैग आदि बनाना शुरु किया. 2009 में उनका कारोबार 16 करोड़ का था, ओर यही कारोबार वर्तमान में कई गुना बढ़ गया है ओर उनकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा चाईना, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, जापान, कोरिया जैसे देशों में अपने सामान का निर्यात करने से होता है.
हृतेष अब स्टूल, मेज के साथ-साथ सोफा, कुर्सी, अलमारी, दरी, कारपेट, तकिया जैसे कई अन्य घरेलू उत्पाद भी बनाते हैं. आज इनके द्वारा शुरू की गई प्रीति इंटरनेशनल की तीन बड़ी प्रोडक्शन यूनिट है. इनकी बोरानाडा यूनिट में जुट का सामान बनता है तो वहीं बासनी में टेक्स्टाईलस का काम होता है.
हृतेष की कंपनी में वर्तमान समय में लगभग 500 श्रमिक काम करते है. इनके द्वारा हर साल लगभग 50 कंटेनर सामान अमेरिका और यूरोपीय देशों में सप्लाई के लिए जाता है. इसी के साथ चाइना भी इनके उत्पादों का सबसे बड़ा उपभोक्ता है. वर्तमान समय में लगभग हर बड़े देश में इनके ग्राहकों का विस्तार है.
वर्तमान समय की युवा पीढ़ी को भी ऐसे साज सज्जा के सामान बहुत पसंद आ रहे हैं. क्लब, बार, पब, रेस्टोरेंट्स, कैफे आदि में इस प्रकार के सामान की आजकल ज्यादा ही डिमांड होने लगी है.
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एक ग्राहक ने दी कबाड़ से डिजाइन तैयार करने की सलाह
किसी समय मंदी के बुरे दौर में डेनमार्क से आए ह्रितेश के एक ग्राहक की ऐसे ही कोने में पड़े एक डब्बे पर रखे गद्दे पर नजर गई जो की एक बहुत ही कलात्मक और आकर्षक कुर्सी के समान दिखाई दे रही थी. उसने हृतेष लोहिया को वैसे ही कबाड़ से डिजाइन तैयार करने की सलाह दी.
आर्थिक तंगी से जूझ रहे हृतेष लोहिया को उस समय उनका यह आइडिया बहुत पंसद आया क्योकिं उस समय उनके पास अधिक विकल्प नहीं बचे हुए थे. इनके यहाँ के उत्पादों की खासियत यह है कि यह पूरी तरह से हाथों से तैयार किया जाता है. ओर इसी वजह से इसकी कीमत थोड़ी अधिक है.
वर्तमान समय में विदेशों में प्रीति इंटरनेशनल के उत्पादों की इतनी जबरदस्त माँग है कि कई बार तो कबाड़ नहीं मिल पाने के कारण इनके द्वारा उनकी मांग को पूरा करने के लिए नए समान को कबाड़ बना कर उसे नया डिजाईन दिया जाता है.
एक बार तो कोरिया से 2000 दरी के ऑर्डर को पूरा करने के लिए हृतेष को सेना के टेंट और दूसरे कपड़े नीलामी में खरीदने पड़े. उस समय इनका दरी का खर्च 500 रुपये हुआ ओर उसे 2000 रुपये में बेचा गया.
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HRITESH LOHIYA की वजह से मिला कई लोगों को रोज़गार
हृतेष की इस बड़ी सफलता ने जोधपुर में इसे एक नए उद्योग का दर्जा दिया है. वर्तमान समाय में इनको देखकर कई युवा उद्यमी इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं और अपना भविष्य सफल बना रहें है. इनके मध्य प्रतिस्पर्द्धा और लगातार माँग बढ़ने से कबाड़ से जुड़े लोगों की कमाई में भी निरंतर वृद्धि हो रही है.
शुरुआत में जहाँ इन्हें 30-50 रुपये में तेल के खाली टिन मिल जाते थे वहीं अब ये टिन 100 रुपये और उससे भी अधिक में बिकते हैं. मगर उसके बावजूद भी व्यवसायी खुश हैं कि उनके इस धंधे में हो रहे लाभ का एक उचित हिस्सा इस व्यवसाय में जुड़े अंतिम व्यक्ति तक भी पहुंचता है. वर्तमान समय में जोधपुर में 2000 से अधिक छोटे और गरीब लोग इससे जुड़ कर अपना जीवन स्तर बेहतर बना रहे हैं.
ह्रितेश द्वारा शुरू किया गया यह अनोखा आइडिया जहाँ एक ओर रोजगार के नए अवसर पैदा कर रहा है वहीं मशिनों का प्रयोग नहीं होने की वजह से छोटे से छोटे तबके के अनपढ़ गरीबों के हाथों को भी रोज़गार मिल रहा है.
किसी व्यक्ति ने यह सच ही कहा है
“नज़र को बदलो नजारे बदल जाएँगें.”
कबाड़ जिसे किसी समय बेकार समझा जाता था उसे एक पारखी नजर और कुशल हाथों ने दुनिया के कोने-कोने में नया रूप देकर विख्यात कर दिया. कलात्मकता और कुशलता का यह अनोखा उदाहरण हमें यह प्रेरणा देता है कि यदि हम अपने आस-पास की चीजों का करीब से अध्ययन करें तो हमें वहीं पर कई बेहतर अवसर प्राप्त हो सकते है.
ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.
तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…