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KUNAL SHAH : गरीबी की वजह से एमबीए छोड़ अपनी काबिलियत से खड़ा किया स्टार्टअप, ओर बेचकर कमाया 2700 करोड़ रुपये

“ग़रीबी में पैदा होना हमारे हाथ में नही है किंतु ग़रीबी में नही मारना तो हमारे हाथ में है”

KUNAL SHAH SUCCESS STORY : आपने देखा होगा की हर असफल व्यक्ति अपनी असफलता के लिए हालातों ओर अपने फ़ैमिली बैकग्राउंड का हवाला देते हुए अपनी ज़िम्मेदारियों से बचने का प्रयास करता है. किंतु अगर किसी व्यक्ति का लक्ष्य मज़बूत हो ओर उसमें उसके प्रति लगन हो तो दुनिया की कोई भी ताक़त उसे सफल होने से नही रोक सकती है.

लोगों को सिर्फ़ लक्ष्य की मजबूत शक्ति का अहसास नहीं होता है. हममें से ज्यादातर लोग इसलिए असफल हो जाते है क्योंकि हमारे पास मजबूत लक्ष्य का अभाव होता है, इसलिए हम छोटे-मोटे दैनिक ज़िंदगी के कामों को करते हुए सफलता की राह में पीछे छूट जाते हैं.

आज की सफलता की कहानी में हम आपको जिस सफल उद्यमी की कहानी बताने जा रहे हैं, इन्हें पहले से ही इन सभी बातों का बखूबी अहसास था. आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से आनेवाले इस शख्स ने भी सफलता प्राप्त करने के लिए अपनी जिंदगी में एक साधारण सा किन्तु मजबूत लक्ष्य रखा और वह लक्ष्य था कि 35 वर्ष की उम्र के बाद फिर कभी भी इन्हें पैसे कमाने के लिए काम नहीं करना पड़े.

इसी लक्ष्य के साथ अपनी ज़िंदगी में आगे की और बढ़ते हुए इन्होंने ग्रेजुएशन करने के बाद  एमबीए की पढ़ाई पूरी करने का फैसला किया. लेकिन इन्हें आर्थिक बाधाओं की वजह से बीच में ही MBA की अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी. लेकिन इसके बावजूद इन्होंने विपरीत हालातों के आगे हार नहीं मानते हुए शून्य से शुरुआत कर देश की एक जानी-मानी इंटरनेट कंपनी बना डाली.

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KUNAL SHAH का बचपन ओर शिक्षा (Education)

यह कहानी है ऑनलाइन मोबाइल रिचार्ज वेबसाइट फ्रीचार्ज (freecharge) की आधारशिला रखने वाले कुणाल शाह (KUNAL SHAH) की सफलता के बारे में. कुणाल शाह का जन्म महाराष्ट्र के एक मध्यम-वर्गीय परिवार में हुआ और इसी परिवार में पले-बढ़े कुणाल ने अपनी शुरुआती स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मुंबई के विल्सन कॉलेज से आर्ट्स में अपना ग्रेजुएशन किया.

ग्रेजुएशन की डिग्री लेने के बाद इन्होंने एमबीए करने के लिए दाखिला लिया, किन्तु इनके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से इन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़कर नौकरी करने का फैसला लेना पड़ा. अन्य सफल उद्यमियों की तरह ही कुणाल के संघर्ष की यात्रा भी बेहद छोटी उम्र में ही शुरू हो गई. कुणाल ने अपने पारिवारिक व्यवसाय में शामिल होने के अपने परिवार के फ़ैसले के खिलाफ जाने का निर्णय लेते हुए साल 2000 में एक स्टार्टअप में जूनियर प्रोग्रामर के रूप में नौकरी करने का फैसला लिया.

इसी स्टार्टअप में काम करने के दौरान ही कुणाल की मुलाकात एक दिन संदीप टंडन से हो गई. संदीप उस कंपनी में इन्वेस्टर थे और अमेरिका में रहा करते थे. संदीप, कुणाल के काम करने के तरीके ओर उनकी लगन से काफी प्रभावित हुए. संदीप ने कुणाल के भीतर मौजूद प्रतिभा को देखने ओर परखने के बाद इन्हें बिजनेस हेड के तौर पर पदोन्नति देने का फैसला किया. कुणाल ने 10 साल तक इस कंपनी के साथ काम किया.

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कुणाल द्वारा पैसबैक की शुरुआत

स्टार्टअप में काम करते हुए कुणाल ने साल 2009 में पैसाबैक नाम से एक वेबसाइट की शुरुआत की. उस समय पैसाबैक संगठित खुदरा विक्रेताओं से ऑनलाइन खरीददारी करने पर उनके नकदी वापस करने की सुविधाएं मुहैया कराती थी, यह कांसेप्ट आज आधुनिक रूप में कैशबैक वेबसाइट के रूप में हमारे सामने है. कुणाल द्वारा शुरू की गई इस वेबसाइट को लोगों का अच्छा रेस्पॉन्स मिला ओर इस वेंचर की शुरूआती सफलता से प्रेरित होते हुए कुणाल ने कुछ बड़ा और अनोखा करने का फैसला किया.

अपने इस फ़ैसले के बारे में साल 2010 में कुणाल ने संदीप को अपने इस आइडिया से अवगत कराया. संदीप को कुणाल का यह आइडिया काफी अच्छा लगा और उन्होंने उनकी कंपनी में निवेश करते हुए फ्रीचार्ज की स्थापना की. शुरुआत में फ्रीचार्ज अपने ग्राहकों को मोबाइल रिचार्ज और बिल पेमेंट करने की सुविधा मुहैया कराती थी.

किंतु उस वक़्त और भी कुछ रिचार्ज वेबसाइट उपलब्ध थी जो यही सुविधा पहले से दे रही थी इसलिए कुणाल ने उनसे कुछ अलग करते हुए फ्रीचार्ज के अपने ग्राहकों को रिचार्ज के बदले में फ्री वाउचर उपलब्ध करवाने शुरू किए. कुणाल का यह कांसेप्ट उनके लिए बेहद कारगर साबित हुआ और फ्रीचार्ज धीरे-धीरे देश की सबसे अग्रणी रिचार्ज पोर्टल बन गई.

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स्नेपडील द्वारा फ्रीचार्ज का अधिग्रहण

धीरे-धीरे फ्रीचार्ज के आकर्षक ऑफ़र के कारण कई करोड़ ग्राहक बनते चले गये और इस तरह से यह भारत की सबसे सफल स्टार्टअप कम्पनी में शूमार की जाने लगी. इसी दौरान देश की सबसे अग्रणी ऑनलाइन शॉपिंग पोर्टल स्नैपडील ने मोबाइल मार्केट में अपनी सबसे बड़ी प्रतिद्वंदी फ्लिपकार्ट को टक्कर देने के उद्देश्य से फ्रीचार्ज को खरीदने की कोशिश शुरू कर दी. आख़िर में अप्रैल 2015 में स्नैपडील ने 2700 करोड़ की अनुमानित राशि में फ्रीचार्ज का अधिग्रहण कर लिया.

फ़्रीचार्ज कंपनी के अधिग्रहण के बाद भी कुणाल ही फ्रीचार्ज के सीईओ नियुक्त हुए. कुछ समय पहले ही फ्रीचार्ज ने अपनी वॉलेट सेवा भी प्रारंभ कर दी है. आज फ्रीचार्ज भारतीय बाज़ार में एक बड़ी टेक कंपनी के रूप में अपनी मज़बूत पहचान बना चुकी है और यह सबकुछ संभव हो पाया है कुणाल शाह के दृढ़-निश्चय और अन्य लोगों से कुछ अलग करने की कोशिश की बदौलत.

कुणाल के सफलता की यह कहानी अपना स्वयं का कारोबार खड़ा करने की चाह रखने वाले भावी युवा लोगों के लिए काफी प्रेरणादायक है.

ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके. 

तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…

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