“जब मनुष्य को जीवन में चारो और से मुसीबतो ने घेर रखा हो, बस वो ही एक समय है जब इंसान या तो मिट जाता है या फिर मिशाल बन जाता है”
IAS GOVIND JAISWAL SUCCESS STORY : कुछ ऐसे ही असली और कटु संघर्ष की दास्तान है आज की स्टोरी के युवा की जिसने मुसीबतो के पहाड़ से टकराकर उसे चकनाचूर कर दिया, उसका इरादा इतना मजबूत और दृढ था की बड़े से बड़ा तूफ़ान भी उसको हिला ना सका.
ये कहानी है एक दृढ संकल्प की, ये कहानी है बहन के त्याग और पिता के अथक परिश्रम की, ये कहानी है बिन माँ के उस लड़के की जिसने आने वाले बेहतर कल के लिए कई राते भूखे रहकर गुजारी.
जी हां आज हम आप को जिस सख्स के बारे में बताने जा रहे है वह और कोई नहीं बल्कि बनारस के एक साइकिल रिक्शा चालक का बेटा गोविन्द जायसवाल (IAS GOVIND JAISWAL) है.
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IAS GOVIND JAISWAL का जन्म ओर बचपन
गोविन्द जायसवाल का जन्म तीर्थ नगरी (कुम्भ नगरी) और देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी (बनारस/काशी) में 8 अगस्त 1983 को हुआ था, उनका पूरा परिवार अलईपुरा इलाके के एक छोटे से किराये के कमरे में रहा करता था.
अपने पांच भाई-बहनो में से एक गोविन्द जायसवाल जब छोटे थे उस समय उनकी माता का निधन वर्ष 1995 में एक बिमारी की वजह से हो गया. जिसके बाद पुरे परिवार की जिम्मेदारी और बच्चो की परवरिश का जिम्मा पिता – नारायण जयसवाल पर आ गया, गोविन्द की बड़ी बहन ने भी हालातो से समझौता कर अपनी पढाई का त्याग कर दिया और घर और छोटे भाई-बहिनो को संभालने लगी.
गोविन्द जायसवाल के पिता अनपढ़ थे इसलिए कोई नौकरी नहीं कर सकते थे उनके परिवार की आजीविका का एक मात्र साधन पिता का साइकिल रिक्शा चलाना ही था. गोविन्द के पिता के पास कुल 35 से ज्यादा साइकिल रिक्शा थे जहा वे दुसरो को अपना रिक्शा किराये पर दिया करते थे किन्तु कुछ रिक्शे पत्नी के इलाज़ में फिर बाकी बचे रिक्शो को अपनी दो बड़ी बेटियों – निर्मला और ममता की शादी के समय बेच दिया और रिक्शा मालिक से रिक्शा चालक बन गए.
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पिता ने पढ़ाने के लिए चलाया साइकिल रिक्शा
गोविन्द जायसवाल के पिता ने भी अपना फर्ज बखूबी निभाया इसके लिए उन्होंने कभी किसी मौसम की परवाह किये बगैर रिक्शा चलाया और अपने पुत्र गोविन्द को पढ़ाया, गोविन्द ने भी परिवार और पिता के त्याग और बलिदान का महत्व समझते हुए उन्हें कभी भी निराश नहीं किया.
गोविन्द की प्रारंभिक शिक्षा बनारस के उस्मानपुरा क्षेत्र के सरकारी स्कूल में हुई फिर उन्होंने जौनपुर से अपना बीएससी (मैथ्स) में ग्रैजुएशन कम्पलीट किया.
अपना ग्रैजुएशन पूरा करने के बाद गोविन्द ने दिल्ली का रुख किया और वहा रहते हुए अपनी तैयारी करने लगे लेकिन यहाँ भी मुसीबातों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा. गोविन्द जायसवाल ने जहा रूम लिया वहा पर लाइट की प्रॉब्लम थी पड़ोस वाले घर में जनरेटर की आवाज़ से शोर होता था.
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UPSC की तैयारी ओर संघर्ष
शोर के कारण वे कमरे के सभी दरवाजे खिड़किया और कानो में रुई डालकर अध्ययन करते थे, इस मुसबित का तो हल निकल गया लेकिन सबसे बड़ी मुसीबत पैसो की थी इसके लिए उन्होंने वहा रहते हुए ट्यूशन पढ़ना स्टार्ट किया और डेली 14 घंटे खुद की तैयारी की.
इस बीच पिता का संघर्ष पुत्र की पढाई के लिए जारी रहा एक बार वर्ष 2006 में ज्यादा साइकिल चलाने से उनके पाव में घाव हो गया जिससे टिटनस की बिमारी हो गयी फिर भी उसकी परवाह किये अपना इलाज़ करवाए बिना वह पैसे भी गोविन्द को भेज दिए यही नहीं कई बार रोटी खाने से पहले भी दो बार सोचते की कही ज्यादा रोटी खा ली तो पैसो की व्यवस्था कैसे कर पाउँगा सच में पिता-पुत्र का रिश्ता ऐसा ही होता है.
एक साल की कोचिंग के बाद वर्ष 2007 में गोविन्द जायसवाल ने अपना पहला प्रयास दिया और सब को चौंकाते हुए अविश्वसनीय सफलता हासिल करते हुए पुरे देश में 48वी रैंक प्राप्त की वही हिंदी मीडियम से परीक्षा देने वालो में वे पहले स्थान पर थे.
रिज़ल्ट से 10 दिन पहले नींद हुई ग़ायब
रिजल्ट आने से 10 दिन पूर्व ही गोविन्द की रातो की नींद गायब हो गई थी साथ ही जब परिणाम आया तो उनके पास पिता से बात करने के लिए शब्द नहीं थे.
गोविन्द जयसवाल वर्तमान में नागालैंड में रेवेन्यू एंड डिजास्टर मैनेजमेंट में ऑफिसर के पद पर कार्यरत है.
IAS ऑफिसर होने के बावजूद अपने अलईपुर के किराये के कमरे को लकी मानते हुए गोविन्द जायसवाल आज भी उसका मासिक किराया 1200 रुपये भरते है, जहा उनके बचपन की यादे जुडी हुई है.
सब्जेक्ट चयन में भी गोविन्द एक किस्सा बताते है की उनके एक मित्र ने हिस्ट्री सब्जेक्ट लिया था इसलिए उन्होंने भी उसी सब्जेक्ट का चुनाव किया जबकि वे साइंस स्ट्रीम से थे.
गोविन्द अपने माता-पिता के साथ देश के पूर्व-राष्ट्रपति स्वर्गीय एपीजे अब्दुल कलाम को अपना रोल मॉडल मानते है.
आईएएस के बारे में भी एक राज़ की बात बताते हुए वे कहते है की जब वे छोटे थे तब मोहल्ले में रहने वाले एक पडोसी के घर चले गए थे वहा दोस्त के पिता ने बहुत बुरा भला कहते हुए उन्हें घर से निकाल दिया था इसका कारण जब पिता से पूछा तो उन्होंने कहा की अपना बैकग्राउंड मजबूत करने के लिए तुम्हे आईएएस बनना होगा बस वही पिता के शब्द उनके कानो में दिन-रात गुंझते रहते थे.
ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.
तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…