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IAS SHUBHAM GUPTA : जूतों की दुकान पर काम करने वाला लड़का कैसे बना IAS OFFICER

“समस्या का गुलाम बनने वाले कभी खुद के भाग्य का निर्माता नहीं बन पाते.”

Success Story Of IAS Shubham Gupta : हमारे देश में बहुत से बच्चे ऐसे होते हैं, जिनके जीवन में बचपन बहुत ही कम समय के लिए आता है या कई बार तो आता ही नहीं है. इसका कारण है की ज़्यादातर बच्चे कम ऊम्र में ही जिम्मेदारियों के बोझ तले इस कदर दब जाते हैं कि उनके पास अपनी उम्र के बच्चों के जैसा करने के लिए कुछ नहीं होता है.

कई बार यह चुनाव स्वयं बच्चों का भी होता है कि वे असल में क्या चाहते हैं, क्या वे परिवार की मदद करने के लिए आगे आना चाहते हैं या फिर जो जैसा चल रहा है उसी का हिस्सा बनकर रहना चाहते हैं. शुभम गुप्ता (IAS SHUBHAM GUPTA) के पास भी ये दोनो च्वॉइस थी. उनके परिवार ने उन्हें कभी जिम्मेदारियों की भट्टी में नहीं झोंका.

लेकिन उन्होंने स्वयं परिवार के हालात को समझते हुए यह निर्णय लिया और अपने परिवार का सम्बल बन गये. आज की सक्सेस स्टोरी में जानते हैं यूपीएससी (UPSC) में ऑल इंडिया रैंक 6 पाने वाले शुभम गुप्ता की कहानी जिनका बचपन भी अपने परिवार की जिम्मेदारियां निभाते हुए बीता परंतु इसके बावजूद वे अपने जीवन में कभी भी हताश नहीं हुए.

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IAS SHUBHAM GUPTA

IAS SHUBHAM GUPTA बचपन ओर पढ़ाईं के लिए संघर्ष

शुभम गुप्ता की प्रारंभिक शिक्षा जयपुर, राजस्थान से पूरी हुई परंतु काम के सिलसिले में उनके पिताजी को महाराष्ट्र में घर लेना पड़ा. अपने तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे शुभम और उनकी बहन भाग्यश्री का स्कूल उनके घर से काफी दूर स्थित था.

इस कारण से उन्हें हर दिन स्कूल पहुंचने के लिये सुबह ट्रेन पकड़नी पड़ती थी. ओर स्कूल से वापस आते-आते उन्हें शाम के तीन बज जाते थे.

शुभम गुप्ता के पिताजी का जूतों का काम था. आर्थिक तंगी के दिन होने के कारण शुभम को ऐसा लगा कि उनके बड़े भाई कृष्णा आईआईटी की तैयारी करने के लिये अपने घर से दूर हैं ऐसी स्थिति में उनकी यह जिम्मेदारी बनती हैं कि वे अपने पिताजी की व्यापार करने में मदद करें.

शुभम 3 बजे तक स्कूल से आने के बाद चार बजे तक अपने पिताजी की दुकान पहुंच जाते थे और रात को दुकान बंद होने तक वहीं रहते थे. शुभम अपने पिताजी की दुकान पर ही समय निकालकर पढ़ाई भी करते थे. उस समय शुभम 8वीं कक्षा में पढ़ रहे थे.

8वीं कक्षा से 12वीं कक्षा तक पांच साल उन्होंने ऐसे ही अपने पिताजी की दुकान चलाने में मदद की. इसी वजह से उनके अधिक दोस्त भी नही बने, न ही इस दौरान उन्होंने कोई खेल खेला, क्योंकि उनके पास दुकान में काम करने के कारण इन सब चीजों के लिये समय ही नहीं था.

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IAS SHUBHAM GUPTA

श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में नही मिला एडमिशन

शुभम का दसवीं का रिजल्ट आया तो उस परीक्षा में उन्होंने बहुत ही अच्छे अंक प्राप्त किए थे. अच्छे नंबर आने की वजह से उन्हें सभी ने यह सलाह दी कि तुम्हें साइंस चुनना चाहिए परंतु उन्हें तो कॉमर्स पसंद थी इसलिए उन्होंने कॉमर्स चुनने का निर्णय लिया.

शुभम गुप्ता 12वीं के बाद आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली आ गए. यहां पर वे आगे की पाधाइ के लिए श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में एडमीशन लेना चाहते थे, किंतु किसी कारण से उसमें उनका एडमीशन नहीं हो पाया. इससे वे काफी ज़्यादा हताश हो गए. तब उनके बड़े भाई ने हमेशा की तरह उनकी हताशा को दूर करते हुए उन्हें समझाया कि तुम्हें जहां पर एडमीशन मिला है, वहीं पर अच्छा करो.

शुभम गुप्ता ने अपने बड़े भाई की बात मानी ओर ठीक वैसे ही किया. इसके बाद उन्होंने दिल्ली के एक कॉलेज से बी.कॉम की डिग्री हासिल की और उसके बाद एम.कॉम की डिग्री भी हासिल की.

कॉलेज की पढ़ाई के बाद उन्होंने सिविल सर्विसेस में जाने का पक्का मन बना लिया. इसके पीछे का कारण यह था कि उनके पिता के जीवन में कई बार ऐसी स्थितियां आयीं जब उन्हें लगा कि काश उनका बच्चा एक बड़ा अफसर बने.

शुभम गुप्ता के पिता ने यही सोचकर एक बार शुभम से यूं ही कह दिया की तुम कलेक्टर बन जाओ. शुभम के मन में उसी दिन से आईएएस ऑफिसर बनने की एक इच्छा दबी हुई थी, ओर सही समय आने पर उन्होंने अपनी उस दबी हुई इच्छा को पूरा करने के लिए काम करना शुरू किया.

शुभम ने यूपीएससी के लिए बहुत अधिक मेहनत की ओर उन्हें इसमें सफलता भी मिली और जिस कॉलेज में किसी समय उन्हें एडमीशन नही मिला था उसी कॉलेज की तरफ से उनके लिये सेमिनार में बोलने का न्यौता आया था.

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IAS SHUBHAM GUPTA

UPSC के चौथे प्रयास में मिली सफलता

शुभम ने यूपीएससी के लिए सबसे पहली बार साल 2015 में प्रयास किया पर पहले प्रयास के दौरान वे प्री की परीक्षा भी पास नहीं कर पाये थे. यूपीएससी के दूसरे प्रयास में शुभम गुप्ता का सेलेक्शन तो हो गया पर उन्हें इस बार रैंक मिली थी 366.

अधिक रैंक आने के कारण उन्हें मिलने वाले पद से वे संतुष्ट नहीं थे. उन्हें दूसरी बार सलेक्ट होने पर इंडियन ऑडिट और एकाउंट सर्विस में चुना गया था जहां उनका मन नहीं लगा.

शुभम गुप्ता ने तीसरी बार साल 2017 में फिर से यूपीएससी की परीक्षा दी. इस साल भी उनका सिविल सेवा में चयन नहीं हुआ. हर बार असफलता का सामना करने के बावजूद भी शुभम गुप्ता का हौंसला बिल्कुल भी कम नहीं हुआ और उल्टा इस बार उन्होंने यूपीएससी की तैयारी दोगुनी मेहनत से की.

उनके पूर्ण समर्पण से की गई मेहनत का ही परिणाम था कि चौथे प्रयास में शुभम न केवल सिविल सेवा के सभी चरणों से सेलेक्ट हुये बल्कि उन्होंने 6वीं रैंक भी हासिल की.

शुभम ने अपने आख़िरी प्रयास के दौरान तैयारी करते वक्त अपनी पिछली गलतियों से सबक लिया और हिम्मत हारने की बजाय दुगुने जोश के साथ तैयारी करते हुए परीक्षा दी.

आख़िरकार इस बार उन्हें उनकी सालों की मेहनत का फल मिला और उनका और उनके पिताजी का IAS OFFICER बनने का सपना साकार हुआ. शुभम गुप्ता की यह कहानी हमें यह सीख देती है कि कोई व्यक्ति अपने मन में कुछ ठान ले तो उसके लिए इस दुनियाँ में कुछ भी मुश्किल नहीं है.

फिर चाहे आपको अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कितनी भी हार का सामना क्यों न करना पड़े पर तब आप तब तक लगे रहो जब तक की आपको अपनी मंजिल न मिल जाये.

ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.

तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…

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