“संसार में मानव सेवा से बढ़कर कुछ नहीं है”
DR. DESH BANDHU GUPTA SUCCESS STORY : इस दुनिया का हर व्यक्ति अपने जीवन में सफल होना चाहता है. उसके लिए वो दिन-रात पूरी लगन और जोश के साथ मेहनत भी करता है और सफल बन जाता है. लेकिन इनमे से ज्यादातर लोग अपने अतीत और संघर्ष के दिन भूल कर दुनिया की झूठी चकाचौंध में लिप्त हो जाते है, वही कुछ ऐसे भी है जो अपने जीवन में भले ही कितना भी सफल बन जाए धरातल पर ही रहते है साथ ही निर्धन और असहाय लोगो का दर्द समझते हुए उनके लिए ही अपना पूरा जीवन समर्पण कर देते है.
कुछ ऐसा ही किया है डॉ.देशबंधु गुप्ता (DR. DESH BANDHU GUPTA) ने, उन्होंने भी अपने सफर की शुरुआत कम पैसो से करते हुए सफलता के नए मुकाम खड़े किये लेकिन कभी भी अपनी जमीन को नहीं छोड़ा.
1968 में हुई LUPIN LIMITED की शुरुआत –
डॉ. देशबंधु गुप्ता ने अपने फार्मा बिज़नेस कंपनी की शुरुआत वर्ष 1968 में “लूपिन लिमिटेड” नाम से की थी. तब उनका मकसद देश में मौजूद गरीब लोगो और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए लोगो के लिए कम कीमत पर बेहतर मेडिसिन उपलब्ध करवाना था साथ ही जिस नॉन-प्रॉफिटेबल फील्ड में अधिकतर कंपनियां काम नहीं कर रही थी, देशबंधु ने उन्ही दवाओं को बनाने का काम शुरू किया.
धीरे-धीरे उनका कारवाँ बढ़ता चला गया और उन्होंने नित नए कीर्तिमान स्थापित करते हुए वर्ष 2007 में जापान की जानी-मानी फार्मा कंपनी “क्योवा” का भी अधिग्रहण कर लिया.
आज डॉ.देशबंधु गुप्ता का यह सफर जो मात्र 5000 की एक मामूली रकम एवं 4 लोगो की टीम के साथ शुरू हुआ था, अब लगभग 100 से अधिक देशो में इनका व्यापार है जिसका की टर्न ओवर 70000 करोड़ से भी ज्यादा का है.
इनकी फार्मा कंपनी वर्ल्ड की टॉप फार्मा कंपनियों में शुमार होती है, साथ ही इनके द्वारा संचालित “लूपिन मानव कल्याण और अनुसंधान फाउंडेशन” साउथ एशिया का सबसे बड़ा एनजीओ (NGO) है.
जब पिता चाहते थे करे कृषि की पढाई –
देशबंधु गुप्ता का जन्म राजस्थान के अलवर जिले में स्थित राजगढ़ कस्बे में हुआ था. उनका परिवार सामान्य श्रेणी का था जहा हर पिता अपने बच्चे से एक उम्मीद लगा कर रखता है ठीक उसी तरह गुप्ता के पिता ने भी देशबंधु को हमेशा फर्स्ट आने की हिदायत दी वे कहते थे की सेकंड आने वालो के लिए कोई जगह ही नहीं है.
इसी वजह से ही सही लेकिन देशबंधु गुप्ता की पढाई में निखार आया और देशबंधु गुप्ता ने मात्र 20 वर्ष की आयु में ही मास्टर डिग्री की पढाई शुरू कर दी. उन्हें कॉलेज में प्रवेश लेने के लिए भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था. देशबंधु गुप्ता का एडमिशन स्पेशल रिक्वेस्ट पर हो पाया था.
इसके पश्चात उनके पिता ने उन्हें कृषि क्षेत्र की पढाई करते हुए उसमे करियर बनाने की सलाह दी किन्तु देशबंधु का झुकाव और लगाव रसायन की तरफ था अतः उन्होंने रसायन विज्ञानं में डॉक्ट्रेट की उपाधि ली.
देशबंधु गुप्ता ने अपनी पढाई को खत्म करने के बाद सबसे पहली जॉब “बिरला इंसीट्यट ऑफ़ टेक्नोलॉजी एन्ड साइंस”, पिलानी में एक असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में की उस समय देश को युवाओ के साथ की जरुरत थी अतः देशबंधु ने सेवा भाव के नाते भारतीय सेना में रासायनिक टीचर के रूप में काम करने के लिए आवेदन किया लेकिन वो रिजेक्ट कर दिया गया.
सेवा भाव और असहाय लोगो के लिए खोला NGO –
सेना का आवेदन निरस्त होने के पश्चात देशबंधु गुप्ता ने मुंबई जाने का फैसला किया जहा उन्होंने “में एन्ड बेकर” ब्रिटिश दवा कंपनी में काम करना शुरू किया. वहा पर उन्हें महसूस हुआ की अभी भी हमारे समाज का एक बड़ा वर्ग जो की आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है, उनके लिए दवा खरीद पाना भी असंभव है.
इसी के साथ ही देशबंधु गुप्ता को उस समय यह भी पता चला की कोई भी बड़ी देसी-विदेशी फार्मा कंपनी कम मुनाफे वाली दवा बनाने पर फोकस नहीं कर रही थी एवं उनके द्वारा निर्मित मेडिसिन भी आम आदमी की पहुंच के बाहर की होती थी.
इन्ही सब बातो के चलते देशबंधु गुप्ता का मन और मजबूती के साथ खुद की दवा कंपनी खोलने के लिए प्रेरित हो गया और उन्होंने वर्ष 1968 में मात्र 5000 की मामूली रकम और 4 साथियो के साथ मिलकर “लूपिन लिमिटेड” की नीव रखी.
शुरुआती मुसीबत –
शुरूआती दौर में थोड़ी मुसीबत जरूर आई लेकिन देशबंधु गुप्ता की सूझ-बुझ से काम निकल पड़ा, इसके लिए उन्होंने कई बड़े पूंजीपतियों और बैंकर्स से भी मुलाकात कर व्यापार को बारीक से जांचा परखा.
वर्तमान में साउथ एशिया में किसी कॉर्पोरेट द्वारा पोषित सबसे बड़ा एनजीओ “लूपिन मानव कल्याण और अनुसंधान फाउंडेशन” (LHWRF) की आधारशिला वर्ष 1988 में देशबंधु के द्वारा गरीब और पिछड़े लोगो के समाज कल्याण के उद्देश्य के लिए रखी गयी थी. जहा आने वाले हर व्यक्ति का कम लागत में बेहतर स्वस्थ सुविधाए प्रदान कर रहा है.
डॉ देशबंधु गुप्ता को वर्ष 2011 में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में “अर्न्स्ट एंड यंग एंटरप्रेन्योर और फ्रॉस्ट एंड सुलिवन” और वर्ष 2013 में लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया है, इसके साथ ही अप्रैल 2018 में, उन्हें मरणोपरांत 2018 CNBC TV18 इंडिया बिजनेस लीडर में “हॉल ऑफ फेम पुरस्कार” में शामिल किया गया था.
देश में फार्मा इंडस्ट्री को बुलंदियों पर ले जाने वाले डॉ देशबंधु गुप्ता का निधन 26 जून 2017 में हो गया था. अभी वर्तमान में उनके बिज़नेस की सारी बागडोर उनकी पत्नी “मंजू देशबंधु गुप्ता” के हाथो में है. इनके परिवार में एक पुत्र – नीलेश गुप्ता एवं चार पुत्रिया है.
अंत में डॉ देशबंधु गुप्ता की कहानी हमें पैसा कमाने के साथ-साथ उस पैसो का सही उपयोग की एक नेक सलाह देती है.
ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.
तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…