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V P Lobo : पेशे से एक दिहाड़ी मजदूर, मगर सपने बड़े थे, जानिए कैसे 6 वर्षों में किया 75 करोड़ का टर्नओवर

“अगर आप खुद ही खुद पर भरोशा नहीं करोगे तो कोई और क्यों और करेगा I”

V P LOBO SUCCESS STORY : आज की यह कहानी आपको फिल्मी लग सकती है किन्तु यह एक ऐसे व्यक्ति की है जिसने दिहाड़ी मजदूर से लेकर अपनी मेहनत के द्वारा करोड़ों रुपयों का साम्राज्य स्थापित किया है. वी पी लोबो (V P LOBO) पेशे से एक दिहाड़ी मजदूर और कब्र खोदने वाले के बेटे है, किन्तु इन सबके बावजूद उन्होंने अपने मेहनत ओर हौंसलों की बदौलत सिर्फ 6 साल मे ही एक बड़े रियल स्टेट बिज़नेस की स्थापना करने के साथ मात्र छह सालों में 75 करोड़ का वार्षिक टर्न-ओवर भी किया.

लोबो की यह जीवन-यात्रा कठिनाइयों के खिलाफ एक सकारात्मक सोच के साथ एक योग्य जीवन का निर्माण करते हुए अन्य व्यक्तियों के लिए प्रेरणा से भरी हुई है.

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V P LOBO

V P LOBO का जन्म ओर बचपन का संघर्ष

वी पी लोबो का जन्म कर्नाटक के मंगलुरू के पास स्थित बोग्गा गांव मे रहने वाले एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ. वी पी लोबो के माता-पिता दोनों ही अनपढ़ थे. लोबो ने अपने बचपन से ही आर्थिक विषमताओ का सामना किया. इनकी गरीबी का अंदाज आप इस बात से भी लगा सकते है की इनके माता-पिता दोनों ही मजदूरी करते थे किन्तु इन्हे प्रतिदिन मजदूरी मे रुपये नहीं मिलते थे बल्कि चावल ओर रोज उपयोग मे आने वाली वस्तुए दी जाती थी.

V P LOBO की EDUCATION

खराब आर्थिक स्थिति ओर पैसों की तंगी के चलते इनकी प्रारंभिक शिक्षा लोकल मीडियम स्कूल में हुई थी. प्रारम्भिक शिक्षा के बाद मे कुछ लोगों की मदद से के किसी तरह से दसवीं तक पढ़ पाए. इसके बाद इनका हाई स्कूल इनके गांव से 25 किलोमीटर दूर था. जिसके कारण से वे आगे की पढ़ाई के लिए मंगलुरू चले गए. मंगलुरु के लोबो संत थॉमस चर्च के पादरियों और नन्स की सहायता से इन्होंने संत मिलाग्रेस स्कूल से अपनी बारहवीं की पढ़ाई पूरी की.

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घर पर बताए बिना 50 रुपयों के साथ घर से मुंबई निकल गए

लोगों ने किसी तरह से अपनी 12 वीं की पढ़ाई तो कर ली किन्तु अपनी जिंदगी मे कुछ बड़ा करने की चाह मे वे एक दिन अपने बचाए हुए 50 रुपयों के साथ अपने घर पर बताए बिना ही मुंबई के लिए निकल गए. मुंबई के लिए निकलते वक्त वे जिस बस मे बेठे थे उसका बस ड्राइवर मंगलुरु का था ओर उसने लोबो की मदद की ओर उसे कोलाबा के सुंदरनगर स्लम तक पहुंचा दिया.

यहा पर लोबो उत्तर-प्रदेश के एक ड्राइवर के साथ मे रहने लगे ओर उनके साथ घूमते-घूमते कई सारे छोटे-मोटे काम भी सीख लिए. बाद मे वे एक जगह पर टेक्सी धोने का काम करने लगे ओर दिन भर मे लगभग 10 गाड़िया तक धो लेते थे इससे उन्हे 20 रुपये मिल जाते थे. इस तरह मजदूरी करते-करते ही उन्होंने एक छोटी पॉकेट डिक्शनरी खरीदी ओर उससे हिन्दी ओर अंग्रेजी पढ़ना शुरू किया.

इसी के साथ इन्होंने इंग्लिश के न्यूजपेपर भी खरीदकर पढ़ने शुरू कर दिए ओर धीरे-धीरे वहा पर कई दोस्त भी बना लिए ओर बाद मे उन्होंने कपड़े आयरन करने शुरू कर दिए ओर इससे उन्हे महीने मे 1200 रुपये तक की कमाई होने लगी ओर अब उन्होंने अपने घर वालों को भी अपने बारे मे बता दिया ओर घर पर 200 रुपये प्रतिमाह भी भेजने लगे.

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एक व्यक्ति की राय से बदली जिंदगी  

लोबो कपड़े आयरन करने का काम करते थे वहा अपर एक समृद्ध सज्जन के कपड़े भी आयरन करवाने के लिए आते थे, उन्ही सज्जन ने लोबो की पढ़ाई मे रुचि को देखते हुए उन्हे आगे पढ़ने के लिए प्रोत्साहन दिया.

लोबो ने शुरू से ही बड़ा आदमी बनने का सपना देखा था इस बारे मे वे कहते है कि, “मैं हर दिन कल्पना करता था कि मैं सूट और टाई पहनकर दूसरे लोगों के जैसे एक दिन एक ऑफिस में नौकरी करूँगा और हर दिन मजबूत ओर बड़ा होता जाऊँगा।” मुम्बई में छह महीने बिताने के बाद उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई के लिए नाईट कॉलेज में जाना शुरू किया और वही से उन्होंने कॉमर्स में स्नातक की डिग्री भी हासिल की.

अपने संघर्ष के दिनों के बारे मे लोबो कहते है कि “मैं उस दौरान सिर्फ 4-5 घंटे ही सो पाता था, उस समय मेरा हर दिन का काम टैक्सी धोना, कपड़े आयरन करना, खाना बनाना और सफाई और फिर रात में कॉलेज जाना और पढ़ाई करना था. मेरे पास बहुत कम समय होता था ऐसे मे मैं लंच ब्रेक में पांच मिनट में खाना खाकर टाइपिंग क्लास जाता था”.

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लोबो को मिली नौकरी

लोबो के द्वारा कॉमर्स से स्नातक डिग्री के बाद उनकी पहली नौकरी जनरल ट्रेडिंग कारपोरेशन में मिली, इस जगह से वैज्ञानिक प्रयोगशाला के उपकरण देश के सभी शिक्षण संस्थानों में भेजे जाते थे. यहा पर काम करने के दौरान इनके मालिक ने इनके सीखने के उत्साह को देखते हुए उन्हें सेल्स एक्सक्यूटिव की नौकरी दे दी.

इस प्रमोशन के बाद उन्होंने फिर कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा. पांच साल तक लोबो ने यह नौकरी की उसके बाद इसे छोड़कर गोराडिया फोर्जिंग लिमिटेड कंपनी में रीजनल मेनेजर के पद पर काम करने लग गए.

देश मे काम करने के बाद लोबो वर्ष 1994 में मस्कट चले गए और वहाँ से लौटने के बाद उन्होंने एक रियल स्टेट कंपनी एवर शाइन को ज्वाइन कर लिया. उसके पश्चात् भी उन्होंने कई कंपनियों के साथ काम किया और प्रगति करते हुए वर्ष 2007 में एवर शाइन ग्रुप के सीईओ बनकर मुम्बई लौट आये.

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स्वयं की कंपनी की शुरुआत

लोबो ने कई वर्षों तक रियल स्टेट के बिज़नेस मे काम करने के बाद उसमे परिपक्व होने के पश्चात अपने इसी अनुभव का उपयोग करते हुए वर्ष 2009 में अपनी कंपनी शुरू की ओर उसका नाम T3 अर्बन डेवलपर्स लिमिटेड रखा. इनके कंपनी शुरू करने के बाद मे शुरुआती दिनों के लिए पैसों की दिक्कत उनकी पत्नी के भाई ने और दोस्तों ने मिलकर पूरी कर दी.

बाद में उन्होंने शेयर मार्केट से अपनी कंपनी के लिए पैसे इकट्ठे करने का काम शुरू किया और धीरे-धीरे उनकी कंपनी में बहुत सारी कंपनियों ने भी इन्वेस्ट करना शुरू कर दिया. उनकी कंपनी के द्वारा शुरू किए गए प्रोजेक्ट में नौ से ज्यादा पूरे हो चुके है इनमे शिमोगा, हुबली और मंगलुरू के मुख्य प्रोजेक्ट शामिल है.

वर्तमान समय मे उनकी कंपनी टी-3 अर्बन डेवलपर्स, उच्च गुणवत्ता से सुसज्जित सुविधाओं वाले बजट घरों का निर्माण करती है. इनके टियर-3 प्रोजेक्ट मे इंटरकॉम, वाईफाई और पुस्तकालय शामिल हैं.

गरीब लोगों के लिए खोल एनजीओ लोबो ने अपनी प्रगति के साथ ही गरीब बच्चों की मदद करने के लिए एक एनजीओ भी शुरू किया ओर अपने इस एनजीओ का नाम उन्होंने T3 होप फाउंडेशन रखा. इनके एनजीओ के द्वारा गरीब बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल में पढ़ाया जाता है.

लोबो ने आज इतना ऊँचा मक़ाम हासिल कर लिया है इसके बाद भी वे अपने पुराने दिनों को नहीं भूले है. अपनी प्रगति के बावजूद जड़ों से जुड़े हुए इस रियल हीरो की कहानी हमारे समाज के लिए बेहद प्रेरणादायक है.

ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.

तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…

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