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PABIBEN REBARI : जानिए कैसे गाँव की एक चौथी पास महिला ने 300 रुपये से शुरुआत कर बनाया वैश्विक ब्रांड

“अवसर उसी को मिलता है जिसमें काबिलियत होती है.”

SUCCESS STORY OF PABIBEN REBARI : आज की सक्सेस स्टोरी में एक ऐसी साधारण महिला की कहानी है जो एक छोटे से समुदाय से आने के बावजूद लोगों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है इस महिला ने धागों से कढ़ाई करते हुए कई महिला कारीगरों के जीवन में परिवर्तन कर दिया है.

जी दोस्तों हम बात कर रहे है पाबिबेन रबारी (PABIBEN REBARI) के बारे में, जो पाबिबेन डॉट कॉम (pabiben.com) की संस्थापक हैं, पाबिबेन ने गुजरात के कच्छ में स्थित महिला कारीगरों की पहली फर्म को जन्म दिया.

PABIBEN REBARI का जीवन परिचय

पाबिबेन रबारी कच्छ के अंजार तालुका के एक छोटे से गांव भदरोई से आती हैं. उनका बचपन बड़े ही संघर्ष में बिता. जब वे मात्र पांच वर्ष की थीं तभी एक दिन उनके पिता का आकस्मिक देहांत हो गया. जब उनके पिता की मृत्यु हुई उस समय उनकी माँ को तीसरा बच्चा होने वाला था.

घर में अकेली कमाने वाली होने के कारण उन्हें उसी अवस्था में अपने बच्चों का पेट पालने के लिए मजदूरी करनी पड़ती थी. पाबिबेन ऊम्र में छोटी भले ही थी किंतु उसके बावजूद भी उन्हें अपनी माँ के संघर्षों को समझने में ज्यादा वक्त नहीं लगा.

पाबिबेन अपने बचपन के बारे में बताती हैं —

“मैंने कक्षा चार के बाद स्कूल छोड़ दिया क्योंकि हममें इससे ज्यादा शिक्षा प्राप्त करने की हैसियत नहीं थी. जब में दस साल की हुई तब अपनी माँ के साथ मैं भी लोगों के घर काम करने के लिए जाने लगी. हमें उस समय लोगों के घरों में पानी भरने के लिए उपयोग में लाया जाता था और उसके लिए हमें हर दिन का सिर्फ एक रुपया मिलता था. कुछ समय बाद मैंने माँ से हमारी पारम्परिक कढ़ाई सीखा.”

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PABIBEN REBARI

PABIBEN REBARI का संबंध आदिवासी समुदाय ढेबरिआ रबारी से है

पाबिबेन रबारी आदिवासी समुदाय ढेबरिआ रबारी से आती हैं यह समुदाय पारम्परिक कढ़ाई को जानने वाले होते हैं. इस समुदाय में शादी करने के लिए एक ऐसा रिवाज होता है कि लड़कियां कपड़ों पर कढ़ाई करती है ओर उन्हें अपने ससुराल में दहेज़ के रूप में लेकर जाती हैं.

इनके द्वारा बनाए जाने वाले परिधान में इतनी ज़्यादा कारीगरी होती है जिसकी वजाह से एक-दो महीने में एक परिधान ही तैयार होता है. इसका मतलब पाबिबेन को अपने दहेज़ के लिए कपड़े बनाने के लिए अपने माता-पिता के घर 30-35 वर्ष रहना पड़ता. इस समस्या को ख़त्म करने के लिए उनके समुदाय के बुजुर्ग लोगों ने यह तय किया है कि वे कढ़ाई का उपयोग अपने खुद के लिए नहीं करेंगे.

1998 में पाबिबेन ने रबारी महिला समुदाय ज्वाइन किया जिसे की एक एनजीओ (NGO) फण्ड करती थी. वे चाहती थीं कि उनकी यह कला भी ख़त्म न हो और उनके समुदाय का नियम भी भंग न हो. इसलिए पाबिबेन ने हरी जरी की खोज की यह ट्रिम और रिबन की तरह रेडीमेड कपड़ों पर किया जाने वाला एक मशीन एप्लीकेशन होता है.

छह-सात साल तक यहाँ काम करने के बाद उन्होंने कुशन कवर, रजाई और कपड़ों पर डिज़ाइन बनाना शुरू किया जिसके लिए पाबिबेन को हर महीने में 300 रुपये मिलते थे.

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PABIBEN REBARI

PABIBEN REBARI का शादी के बाद बदला जीवन

पाबिबेन जब 18 वर्ष की थीं तब ही उनकी शादी कर दी गई थी और उनकी शादी के बाद से ही उनके जीवन में बदलाव आना शुरू हुआ. कुछ विदेशी टुरिस्ट उनकी शादी देखने आये. उन्होंने उनकी शादी में उनके द्वारा बनाये बैग्स देखे, जो की उन्हें बेहद पसंद आये. पाबिबेन ने उन्हें यह बैग उपहार स्वरुप देने का निश्चय किया. इस प्रकार वे टुरिस्ट जो बैग अपने साथ लेकर गए उन्हें पाबी बैग के नाम से जाना जाने लगा और यह बाद में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत ज़्यादा हिट हो गए.

पाबिबेन रबारी ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि उनके पति भी उनके इस काम की तारीफ करते हैं और उन्हें गांव की महिलाओं के जीवन-स्तर को बेहतर करने के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं. अपनी शादी के पांच साल बाद पाबिबेन ने इसके लिए एक और कदम उठाते हुए प्रदर्शनियों में भाग लेना शुरू किया और अपने कौशल को निखारने के साथ अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाया.

इस प्रकार प्रदर्शनियो में भाग लेने से वे पहले से ज्यादा निडर होने के साथ-साथ आत्मविश्वास से भी भर गई है. कुछ समय के बाद ही उन्होंने गांव की महिलाओं के साथ मिलकर काम शुरू किया और इसी के साथ पाबिबेन डॉट कॉम (pabiben.com) का जन्म हुआ. इस वेबसाइट के ज़रिए उन्हें पहला आर्डर 70,000 रूपये का मिला था, जो की अहमदाबाद से मिला था. बाद में उन्हें ओर उनकी कला को देखते हुए गुजरात सरकार की तरफ से भी उन्हें ग्रांट मिला.

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PABIBEN REBARI AT KAUN BANEGA CAROREPATI

PABIBEN REBARI की सफलता ओर पुरस्कार

आज पाबिबेन की टीम में 100 के क़रीब महिला कारीगर हैं और वे लगभग 25 तरह की डिज़ाइन बनाती हैं. उनकी वेबसाइट का टर्न-ओवर भी लाखों रुपयों में है. पाबिबेन को उनके अच्छे कार्य के लिए साल 2016 में ग्रामीण इंटरप्रेन्योर के लिए जानकी देवी बजाज पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था.

पाबिबेन के द्वारा बनाये गए बैग्स की प्रसिद्धि का अनुमान आप इस बात से भी लगा सकते है की उनके द्वारा बनाए गए बैग बहुत सी बॉलीवुड और हॉलीवुड फिल्मों में देखने को मिलते है. पाबिबेन अपने साथ-साथ गांव की दूसरी महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाने में मदद करती है.

पाबिबेन उन तमाम महिलाओं के लिए आदर्श हैं जो अपने जीवन में अपना कुछ अलग ओर अनोखा करना चाहती हैं. उन्होंने बहुत सारी रबारी महिलाओं के जीवन जो पूरी तरह से बदल कर रख कर रख दिया,  ओर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही साथ परिवार का कमाऊ व्यक्ति भी बनाया.

उनकी वेबसाइट पाबिबेन डॉट कॉम (pabiben.com) आज अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी काफ़ी ज़्यादा लोकप्रिय हो गई है. पाबिबेन चाहती हैं कि पाबिबेन डॉट कॉम (pabiben.com) उस मक़ाम तक पहुँचे जहां उनके जरिये कम से कम 1000 महिलाएं आत्मनिर्भर बन पाएं.

ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.

तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…

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