“जिनको अपने काम से मुहब्बत होती है फिर उनको फुर्सत नहीं होती है I”
SUCCESS STORY OF BHAGWAN GAWAI : आपने यह कहावत तो जरूर सुनी होगी की किसी व्यक्ति को राजा से रंक बनने मे समय नहीं लगता किन्तु आज की यह कहानी ऐसे रंक के बारे मे है जिसके बारे मे पढ़कर आपको यह विश्वास ही नहीं होगा कि किसी व्यक्ति की किस्मत इस हद तक भी बदल सकती है.
आज की यह कहानी है भगवान गवई (BHAGWAN GAWAI) की जिन्होंने अपने सफलता के इस सफर की शुरुआत बाल-मजदूर के रूप मे की. जी हाँ दोस्तों भगवान गवई का बचपन अत्यंत गरीबी मे बीता ओर इन्हे कम उम्र मे ही अपने पेट की आग को शांत करने के लिए बाल मजदूर बनना पड़ा. इन्होंने अपनी माँ को भूखे पेट मजदूरी करते हुए देखकर यह कदम उठाया था. भगवान गवई ने कभी भी अपनी गरीबी के सामने हथियार नहीं डाले ओर अपने संघर्ष को ही अपनी सफलता का हथियार बना लिया ओर जिंदगी मे आने वाली तमाम कठिनाइयों का सामना हिम्मत के साथ किया ओर आज इसी हिम्मत के कारण वे करोड़ों रुपये की कंपनी के मालिक है.
यह भी पढे : VINEET BAJPAI : 14000 रुपये ओर किराए के दो कंप्यूटर द्वारा एक छोटी शुरुआत से बनाई करोड़ों की कंपनी
BHAGWAN GAWAI का बचपन ओर गरीबी
झुग्गी बस्ती से शुरुआत करते हुए एक वैश्विक उद्योगपति बनने वाले भगवान गवई के जीवन की गाथा किसी बॉलीवुड फिल्म से कम नहीं है. भगवान गवई के का जन्म महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके मे एक बेहद गरीब परिवार मे हुआ था. गवई के पिता विदर्भ मे ही राजमिस्त्री का काम करते थे. मिस्त्री का काम करने के कारण इनके पिता को बहुत ही कम सैलरी मिलती थी, जिससे उनके लिए चार बच्चों के परिवार को चला पाना बहुत मुश्किल था.
घर की परिस्थितियों को देखते हुए आखिर इनकी माँ ने भी मजदूरी करनी शुरू कर दी. माँ के काम करने से इनके घर का गुजारा किसी प्रकार से चल रहा था की तभी साल 1964 में भगवान के पिता की असमय मौत हो गई. पिता की मौत के बाद तो इनके घर पर दुखों का पहाड़ टूट गया. पति की मौत के बाद ऐसी विषम परिस्थितियों में भी भगवान गवई की माँ ने हार नहीं मानी और अपने चारों बच्चों को लेकर कमाई के लिए मुंबई का रुख किया.
यह भी पढे : SAMEER GEHLAUT : एक छोटे कमरे में शुरुआत कर 34 की उम्र में ही बन गए अरबपति
मुंबई मे संघर्ष की शुरुआत
भगवान गवई की माँ अपने बच्चों के साथ मुंबई तो या गई किन्तु इस मायानगरी मे इन्हे रहने के लिए छत का मिल पाना ही एक बड़ी चुनौती थी. मुंबई मे आने के कुछ समय बाद ही भगवान गवई की माँ ने पश्चिमी उपनगर कांदिवली में महिंद्रा एंड महिंद्रा की जीप बनाने वाले कारखाने में मजदूरी करनी शुरू कर दी. उनकी माँ दिन भर मजदूरी करते ओर वहीं पास की ही झुग्गी में अपने परिवार सहित रहने लगी.
जब वे मुंबई आए थे तो उस वक़्त गवई दूसरी कक्षा में पढ़ते थे. उनकी माँ को इस बात का अच्छे से अहसास था कि आज जो संघर्ष उन्हें करना पड़ रहा है अगर वह संघर्ष उनके बच्चे को नहीं करना पड़े तो इसके लिए शिक्षा ही सबसे बड़ा हथियार बन सकती है. इसी सोच के साथ उनकी माँ ने खुद संघर्ष करते हुए अपना पेट काट कर बच्चों को पास के स्कूल में दाखिला दिलवाया.
लेकिन दुर्भाग्य ने इनका यहा भी साथ नहीं छोड़ा ओर इसी दौरान कंपनी का काम पूरा हो गया और इस कारण से सभी मजदूरों की छुट्टी कर दी गई. इस प्रकार से अचानक से नौकरी छूटने के परिणामस्वरुप एक बार फिर से भगवान गवई की माँ पर चुनौतियों का पहाड़ टूट पड़ा. लेकिन इनकी माँ ने इसके बावजूद भी हार नहीं मानी ओर वहां से 100 किमी दूर रायगढ़ जिले में महिंद्रा की शुरू होने वाली स्टील फैक्ट्री मे नौकरी करना शुरू कर दिया ओर इस बार इनकी माँ के साथ में इनके बड़े भाई ने भी मजदूरी करना शुरू कर दिया. कुछ सालों तक यहाँ काम करने के बाद इनके परिवार ने रत्नागिरी की ओर रुख किया. रत्नागिरी आने के बाद उनकी जिंदगी में कुछ स्थिरता आई.
गवई आज भी संघर्ष के दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि ” उनकी आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय थी कि जब गर्मी और दिवाली की छुट्टियों में सारे बच्चे घूमने के लिए जाया करते थे, तब वे अपनी माँ के साथ मजदूरी करने के लिए जाया करते थे. इस दौरान उन्हे 100-200 रूपये मजदूरी मिल जाती, इन रुपयों से उन्हे पढ़ने के लिए किताबे खरीदने में सहायता मिलती थी.
पढ़ाई के बाद शुरू की नौकरी
भगवान गवई ने 85 प्रतिशत अंक से अपनी बोर्ड परीक्षा पास की और इसके बाद इन्होंने न्यूज़पेपर में नौकरी के लिए आए एक विज्ञापन को देखकर उसके लिए अप्लाई किया. इस तरह उन्हें लार्सन एंड टुब्रो में क्लर्क के पद के लिए नौकरी मिल गई. भगवान गवई ने इस दौरान नौकरी करने के साथ-साथ सिविल सेवा की परीक्षा देने के लिए भी तैयारी शुरू कर दी और इस दौरान बैंक की परीक्षा दी ओर उसे पास भी कर लिया.
साल 1982 इनके जीवन मे एक नई सुबह लेकर आया ओर उन्हे हिंन्दुस्तान पेट्रोलियम में मैनेजमेंट ट्रेनी के रूप में नई ओर अच्छी नौकरी मिली. इस नौकरी के दौरान भाग्य ने भी इनका भरपूर साथ दिया और उन्हें कंपनी की और से भारतीय प्रबंधन संस्थान, कोलकाता में ट्रेनिंग प्रोग्राम करने का मौका भी मिला. इस प्रोग्राम के दौरान उन्होंने बिज़नेस के सभी महत्वपूर्ण गुर सीखे और इसके बाद उन्हें कंपनी में प्रमोशन भी मिला.
नौकरी के दौरान वहा पर काम करते हुए भगवान गवई ने वितरण का काम अच्छे से सीखा और इसके बाद कुछ बड़ा करने के लिए साल 1991 में बहरीन की ओर रुख करने का निर्णय किया. बहरीन मे नौकरी करने के दौरान उन्होंने अच्छी सैलरी पर नौकरी की ओर इस दौरान उन्होंने सबसे ज्यादा जोर रुपयों की सेविंग्स पर दिया.
इसके बाद उन्हे एमिरेट्स नेशनल आयल कंपनी के साथ काम करते हुए ही दुबई जाने का मौका मिला और दुबई मे काम करने के दौरान उन्होंने देखा कि वहा पर कई अनपढ़ लोग आयल से संबंधित बिज़नेस को अच्छे से कर रहे थे. अनपढ़ लोगों को बिजनेस करते देख उन्होंने सोचा कि जब यहा पर अनपढ़ होने के बावजूद लोग कारोबार कर सकते है तो फिर मैं क्यों नहीं?
बस फिर क्या था उन्होंने इन लोगों से प्रेरणा लेते हुए वहां के एक लोकल कारोबारी के साथ साझेदारी की ओर एक फ्यूल कंपनी की शुरुआत कर दी. साल 2003 में भगवान गवई ने बकी नाम के व्यक्ति के साथ मिलकर बकी फ्यूल कंपनी की शुरुआत की. इस कंपनी मे उनका शेयर 25 प्रतिशत था. भगवान के पार्टनर बकी की वहा के मार्केट में अच्छी जान-पहचान थी, इससे उनके तेल का कारोबार चल निकला ओर वे दोनों पार्टनर रिफाईनरी से तेल खरीदते ओर बाद मे उसे दुनिया-भर में बेचते थे.
पार्टनर की माँ की मौत के बाद लगा झटका
भगवान गवई का कारोबार अच्छी तरह चल रहा था कि तभी एक दिन उनके पार्टनर बकी की माँ का निधन हो गया और उसके बाद उन्होंने अपने कारोबार को समेट लिया. इसके बाद मे कज़ाकिस्तान में ही एमराल्ड एनर्जी नामक कंपनी के मालिक भगवान गवई को उनके साथ काम करने का ऑफर दिया और उसी के साथ एक-डेढ़ साल में कंपनी के शेयर देने का वादा भी किया. इस प्रपोजल पर मेहनती और होनहार भगवान गवई ने हाँ कर दी ओर काम शुरू कर दिया ओर जल्द ही उनकी मेहनत रंग लाई और साल 2008 तक उस कंपनी का टर्न ओवर 400 मिलियन डॉलर तक पहुँच गया.
जब एक साल बाद शेयर देने का समय आया तो उस वक़्त कंपनी का मालिक मुकर गया, इससे भगवान गवई को झटका लगा ओर इस घटना से आहत होकर उन्होंने फैसला किया कि अब वे अपनी स्वयं की कंपनी शुरू करेंगे. फ्यूल कंपनी की सफलता के बाद उन्होंने अपने बेटे सौरभ के नाम पर “सौरभ एनर्जी” नाम से एक कंपनी की शुरुआत की ओर आज उनकी कंपनी का सालाना टर्नओवर करोड़ों मे है.इसके अलावा उनकी मैत्रेयी डेवलपर्स और बीएनबी लॉजिस्टिक्स दोनों कंपनियों में भी हिस्सेदारी है. मैत्रेयी डेवलपर्स कंपनी दलितों की दोस्ती या मैत्री से बनी है इसे साल 2006 में 50 लाख दलितों ने एक-एक लाख रुपये लगाते हुए 50 लाख के निवेश के साथ शुरू किया. इस कंपनी मे सब बराबर के पार्टनर हैं.
किसी समय 100-200 रुपये की मजदूरी करने वाले भगवान गवई आज करोड़ों रुपये की कंपनी के मालिक हैं, इनकी यह कहानी गरीब किन्तु ऊंचे सपने देखने वाले युवाओ के लिए प्रेरणादायक है.
ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.
तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…