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DILIP SAHNI : एक मज़दूर ने अपनी मेहनत के दम पर पाई 8 लाख पैकेज वाली नौकरी

“इम्तेहान तेरे खत्म नहीं होंगे, मेहनत कर ये वक्त अभी नहीं रुकेगा.”

SUCCESS STORY OF DILIP SAHNI : बिहार के पूर्णिया ज़िले में प्रत्येक वर्ष 10,000 से भी अधिक, दरभंगा और मधुबनी से विस्थापित मजदूर मखाना उद्योग में फसल कटाई और उससे संबंधित विभिन्न कार्यों में मजदूरी करते हैं.

इस रोजगार की प्रव्रती के कारण यहाँ काम करने वाले मजदूरों के बच्चों की शिक्षा अनियमित और अस्थिर हो जाती है. यहाँ से स्कूलों की अधिक दूरी और आर्थिक आभावों के कारण उनकी स्थिति और भी ज़्यादा असहाय बनी रहती है.

दिलीप साहनी (DILIP SAHNI) भी इन्ही में से एक ऐसे ही खेतीहर मजदूर के बेटे हैं जो मखाना के खेतों में काम करते हैं. परंतु इन सभी विषम परिस्थितियों के बावजूद उसका सपना इस खेती के कार्यक्षेत्र से समझौता कर लेने का नहीं था.

उसका सपना था शिक्षा प्राप्त करने के साथ स्वयं को सिद्ध करने का. उसकी इस दृढ़ता के आगे कोई आर्थिक अड़चन भी न टिक सकी और उसने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हर चुनौती का डटकर सामना किया.

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DILIP SAHNI ओर उनके परिवार का संघर्ष

अपने परिवार के प्रोत्साहन और संबल से आख़िरकार यह 23 वर्षीय श्रमिक एक मैकेनिकल इंजीनियर बन गया. दिलीप का पूरा परिवार पुर्णिया के हरदा में मखाना उद्योग में मजदूरी करता है और पूरे परिवार को मिलाकर महीने के 2000 से 3000 रुपये ही मज़दूरी कर पाता है.

ग्रामीण बिहार में पले-बढ़े, दिलीप साहनी को खेतों में दिहाड़ी मजदूर के रूप में और कटाई के मौसम में घर से 250 किमी दूर प्रवासी मजदूर के रूप में अपना काम करना पड़ा. फिर भी, उन्होंने अपनी पढ़ाई को जारी रखी, दरभंगा में अपने गांव से स्कूली शिक्षा पूरी करने वाले पहले व्यक्ति बन गए.

दिलीप अब अपने बिसवां दशा के पहले ऐसे सफल इंजीनियर बन गए है जो देश से बाहर सिंगापुर में लाखों की कमाई कर रहे हैं.

DILIP SAHNI की उपलब्धि क्यों है इतनी ख़ास

हालाँकि, उनके गाँव के लिए यह कोई साधारण उपलब्धि नहीं है, क्योंकि लगभग दो दशकों तक, दिलीप ने सामाजिक और आर्थिक मोर्चे पर बहुत सारी लड़ाइयाँ लड़ीं. उदाहरण के लिए, इंजीनियरिंग करने के लिए एक कॉलेज में प्रवेश लेने के बाद, बैंकों ने शिक्षा के लिए ऋण लेने के लिए उसके अनुरोध को ठुकरा दिया. अपने संघर्षों के बारे में बात करते हुए उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया.

“मैंने शिक्षा ऋण के लिए कई बैंकों का दरवाजा खटखटाया, जब मुझे मिलेनियम ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस, भोपाल के एक निजी तकनीकी कॉलेज, मिलेनियम ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस में 2013 में एक इंजीनियरिंग कार्यक्रम में प्रवेश की पेशकश की गई थी. लेकिन मेरे सभी अनुरोधों को ठुकरा दिया गया. अगर मेरे पिता और भाई ने पैसे से मेरी मदद नहीं की होती, तो मैं इंजीनियर नहीं बनता.”

दिलीप के परिवार ने उनके सपने का सदैव समर्थन किया और उनके पिता और छोटे भाई ने उनके कॉलेज की फीस का भुगतान करने के लिए मज़दूरी भी की.

फाइनेंशियल एक्सप्रेस के अनुसार, दिलीप साहनी के पिता, लालतुनी साहनी जब खेत में काम नही होता तो उस समय, नेपाल में आइसक्रीम बेचते थे. उनके छोटे भाई ने चेन्नई में एक टाइल कंपनी में काम किया ताकि उनके भाई को कॉलेज की फीस का भुगतान करने में मदद मिल सके. दिलीप भी उनके साथ खेतों में काम करने के लिए जाते थे जब भी उनकी छुट्टी होती थी.

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गाँव के लोगों के ताने सुनने पड़े

उनके द्वारा यह सब ग्रामीणों द्वारा लगातार उपहास के बावजूद किया गया था क्योंकि वे उनकी बातों पर विश्वास नहीं करते थे और महसूस करते थे कि दिलीप ओर उनके परिवार द्वारा किया गया संघर्ष व्यर्थ था. हालांकि, अंततः, दिलीप और उनके परिवार के प्रयासों ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया, जब उन्हें 2016 में एक टॉपर के रूप में स्नातक होने का पुरस्कार मिला.

ओर कुछ समय बाद ही एक प्रमुख स्टील कंपनी ने उन्हें सिंगापुर में 8 लाख रुपये प्रति वर्ष के हिसाब से नौकरी की पेशकश की. यह राशि 3000 रुपये से कई गुना अधिक है, जिसे पूरा परिवार कुछ साल पहले ही कमा रहा था.

दिलीप खुश है, लेकिन वह संतुष्ट नहीं है. उनकी महत्वाकांक्षा उन हजारों बच्चों की भलाई के लिए काम करने की है जो अभी भी वहाँ पर बाल मजदूर के रूप में काम कर रहे हैं.

“मैं उठना चाहता हूँ, दौड़ना चाहता हूँ, गिरना भी चाहता हूँ… बस रुकना नहीं चाहता.”

यह एक संवाद है जो दिलीप साहनी के द्वारा किए गए संघर्ष को बयान करता हुआ प्रतीत होता है. जिस दलदल से बाहर आने के बारे में कोई सोच भी नहीं पा रहा था वहाँ से निकल कर दिलीप ने सफलता का शिखर प्राप्त किया. दिलीप एक प्रेरणा हैं उन लाखों वंचितों के लिए जो आर्थिक कुचक्र की हताशा में फँस कर रह जाते हैं.

ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.

तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…

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