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AMIT KUMAR DAS – 250 रूपये लेकर घर से निकले और बना डाला 500 करोड़ से ज्यादा का कारोबार

“अमीर पैदा होना हमारे हाथ में नहीं है लेकिन अमीर होकर मरना तो हमारे हाथ में है” 

AMIT KUMAR DAS SUCCESS STORY : आज की हमारी कहानी के हीरो अमित कुमार दास की कहानी पर भी यह बात लागू होती है, अमित कुमार ने गरीब होने के बावजूद कभी भी बड़े सपने देखना नहीं छोड़ा और घर से 250 रूपये लेकर निकल गए अपने सपने को पूरा करने और अभावो का रोना रोने वाले युवाओ के लिए एक मिशाल बन गए.

AMIT KUMAR DAS का जन्म ओर बचपन

अमित कुमार दास का जन्म बिहार के अररिया जिले के छोटे से कस्बे फारबिसगंज के छोटे गाँव में हुआ था. उनका परिवार गाँव में पिछड़ा हुआ और गरीब था. यहाँ के लोगो के लिए खेती ही एक-मात्र आजीविका का साधन था और गाँव के छोटे बच्चे भी पढाई की जगह पर अपना गुजारा करने के लिए खेतो में काम करते थे.

लेकिन अमित कुमार दास उन सबसे अलग थे. गरीब होने के बावजूद उनके सपने बहुत बड़े थे. उन्होंने अपनी स्कूल की पढाई सरकारी स्कूल से किसी तरह की और उसके बाद में एएन कॉलेज से साइंस से इंटर पास किया. अमित कुमार का सपना इंजीनियर बनना था लेकिन गाँव में इससे आगे पढाई संभव नहीं थी.

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AMIT KUMAR DAS

जब AMIT KUMAR DAS ने खेती ओर अपने सपने में से अपने सपने को दी प्राथमिकता

अमित कुमार दास के सामने अब दो रास्ते थे या तो वह गाँव में रहकर खेती करे या फिर अपने सपने को पूरा करने के लिए शहर जाए. और आखिर में अमित कुमार ने अपने सपने को पूरा करने का निर्णय लिया और अपने पारिवारिक हालातो को देखते हुए घर से 250 रूपये लेकर निकल गए अपने सपने को पूरा करने.

अमित कुमार दास घर से निकल देश की राजधानी दिल्ली आ गए लेकिन यहाँ पर उनके 250 रूपये कब ख़त्म हुए मालूम ही नहीं चला. यही से शुरू हुआ उनका संघर्ष, अमित कुमार को यहाँ पर दो वक्त की रोटी के लिए दर-दर की ठोकरे खानी पड़ी लेकिन उन्होंने हालातो के सामने हार नहीं मानी और उन्होंने पार्टटाइम ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया. 

AMIT KUMAR DAS

नौकरी से पैसे इकट्ठे कर की BA की पढ़ाई

कुछ समय बाद कुछ पैसे इकट्ठे कर उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी में दाखिला लेकर बीए की पढ़ाई शुरू कर. इस दौरान उन्होंने पढ़ाई और ट्यूशंस दोनों साथ-साथ किया. पढाई करते हुए उन्हें अपने सपने को पूरा करने के लिए कंप्यूटर सीखने की इच्छा हुई. 

अमित कुमार इसके लिए दिल्ली के एक प्राइवेट कंप्यूटर ट्रेनिंग सेंटर में एडमिशन लेने गए लेकिन वहा पर रिसेप्शनिस्ट ने उनसे अंग्रेजी में सवाल पूछे लेकिन गाँव से होने और अंग्रेजी में कमजोर होने की वजह से वे जवाब नहीं दे पाए और रिसेप्शनिस्ट ने उन्हें कंप्यूटर ट्रेनिंग के लिए प्रवेश देने से इनकार कर दिया.

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AMIT KUMAR DAS
AMIT KUMAR DAS

अंग्रेज़ी को लिया चुनौती के रूप में

अमित कुमार ने इसे एक चुनौती के तौर पर लिया और निश्चय किया की वह सबसे पहले अंग्रेजी में महारत हासिल करेंगे. और उन्होंने अंग्रेजी सिखने के लिए इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स ज्वाइन किया और मात्र तीन महीने के बाद ही वह फर्राटेदार अंग्रेजी में बात करने लगे. 

अंग्रेजी सिखने के बाद अमित कुमार का आत्मविश्वास बहुत बढ़ गया था और वह फिर से पहुंच गए कंप्यूटर सिखने के लिए उसी कंप्यूटर कोचिंग सेंटर में जहा उन्हें मना कर दिया गया था. इस बार उन्हें कोचिंग के लिए एडमिशन दे दिया गया और कंप्यूटर के छह महीने के कोर्स में अमित कुमार ने टॉप किया.

अमित कुमार की असाधारण उपलब्धि को देखते हुए उसे कोचिंग इंस्टिट्यूट ने उन्हें तीन साल के लिए प्रोग्रामर की नौकरी दी. यहाँ पर अमित कुमार को प्रतिभा के आधार पर फैकल्टी के रूप में ज्वाइनिंग दी गई. 

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AMIT KUMAR DAS
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जब AMIT KUMAR DAS ने की 500 रुपए महीने में नौकरी

अमित कुमार को इस दौरान 500 रूपये महीने सैलरी मिलती थी जो की कम थी. लेकिन अमित कुमार ने सैलरी को प्राथमिकता न देकर वहा पर नौकरी करते हुए कंप्यूटर के काम में मास्टरी हासिल की. यहाँ पर अमित कुमार के काम को देखते हुए उन्हें इंग्लैंड जाने का ऑफर भी मिला लेकिन उसे अमित कुमार ने बड़ी ही नम्रता से मना कर दिया.

अमित कुमार दास ने कंप्यूटर कोडिंग में महारत हासिल करने के बाद में अब खुद की कंपनी शुरू करने का मन बना लिया और 21 वर्ष की उम्र में एक छोटी सी पूंजी के साथ में छोटी सी किराये की जगह से उन्होंने अपनी कंपनी आइसॉफ्ट (ISOFT) की शुरुआत की. लेकिन यहाँ पर भी उन्हें संघर्ष करना पड़ा.

अमित कुमार को शुरू में कोई भी प्रोजेक्ट नहीं मिला और उन्हें किराये के पैसे और अपना खर्चा चलाने के लिए फिर से ट्यूशन शुरू करना पड़ा. इस तरह से अमित कुमार दिन भर ट्यूशन लेते और रात में सॉफ्टवेयर के लिए कोडिंग का कार्य करते. जहा अमित कुमार की जगह पर कोई और होता तो ऐसे में वह काम को छोड़ देता लेकिन अमित कुमार ने यह सिलसिला जारी रखा और आखिरकार उन्हें प्रोजेक्ट मिलने लगे.

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AMIT KUMAR DAS
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AMIT KUMAR DAS ने शुरू किया SOFTWARE का काम

कुछ समय बाद में अमित कुमार ने इआरसिस सॉफ्टवेयर डवलप किया और उसे पेटेंट भी कराया. बाद में वर्ष 2006 में अमित कुमार ऑस्ट्रेलिया में एक सॉफ्टवेयर फेयर में गए और यहाँ से उन्होंने कंपनी को भारत से बाहर सिडनी लेकर जाने का फैसला किया. 

अमित कुमार के इस फैसले से उन्हें बहुत फायदा हुआ और उनकी कंपनी देखते ही देखते एक मल्टीनेशनल कंपनी बन गई. आज उनके पास में करोडो के प्रोजेक्ट है और उनकी कंपनी दुबई, सिडनी, पटना, और दिल्ली में ऑफिस के साथ 500 करोड़ से ज्यादा के सालाना वैल्यू के साथ में काम कर रही है.

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AMIT KUMAR DAS
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पुराने दिन अभी भी याद है

लेकिन अमित कुमार आज भी वह दिन नहीं भूले जब उनके पास लेपटॉप के पैसे नहीं होने के कारण क्लाइंट्स को सॉफ्टवेयर के प्रजेंटेशन के लिए दिल्ली की बसों में सीपीयू साथ लेकर जाते थे.

अमित कुमार का कहना है की उनका इंजीनियर बनने का सपना भले ही अधूरा रह गया लेकिन किसी और का सपना अधूरा न रहे इसीलिए फारबिसगंज में अपने पिता के नाम से 150 करोड़ रूपये से “मोती बाबू इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी” इंजीनियर कॉलेज खोला. इतना ही नहीं वह बिहार में एक विश्वस्तरीय अस्पताल भी खोलना चाहते है

इस कहानी के अंत में हमारा युवा साथियो से यही कहना है की आप आपके सपने जरूर पुरे होंगे इसी सोच के साथ में अपने सपनो को पूरा करने के लिए प्रयत्न कीजिये, आपके सपने जरूर पुरे होंगे.

ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.

तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…

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