“जितना आप प्रकृति के ओर जाएंगे वो उतना ही आपकी ओर आएगी I”
Success story of Rajagopalan Vasudevan : दोस्तों जैसे-जैसे मानव ने अपने मस्तिष्क के उपयोग के द्वारा तरक्की की है उसी अनुपात मे हमने इस धरती का अत्यधिक दोहन भी किया है ओर उसी का परिणाम है की आज पर्यावरण प्रदूषण इतना ज्यादा बढ़ गया है कि शहरों मे सांस लेना भी मुश्किल होता जा रहा है.
बढ़ते हुए प्रयावरण प्रदूषण के बीच एक इंसान ऐसा भी है जिसने धरती को प्लास्टिक के प्रदूषण से मुक्त करने के लिए प्रयास किए है ओर वे है मशहूर प्रोफसर राजगोपालन वासुदेवन (RAJAGOPALAN VASUDEVAN) जिन्होंने अपने प्रयास के द्वारा प्लास्टिक की सड़क बनाने की तकनीक ईजाद की है.
क्या इससे पहले आपने कभी सुना है कि प्लास्टिक का उपयोग करके भी सड़क का निर्माण किया जा सकता है? इससे पहले मनुष्य इस तरह की बात सोचता तो उसे यह केवल काल्पनिक दुनिया में ही संभव लगता था किन्तु प्रोफेसर राजगोपालन वासुदेवन ने प्लास्टिक की सड़क को सच में देश में बनाते हुए इसे काल्पनिक दुनिया से हकीकत मे उतारा. प्रोफेसर कचरे का पुनः प्रयोग करते हुए बेहतर, अधिक टिकाऊ और कम से कम कीमत में सड़कों का निर्माण करते हैं. 72 वर्षीय प्रोफेसर राजगोपालन वासुदेवन के इस सोच के पीछे प्रयावरण मे बढ़ रहे प्लास्टिक को सही तरीके से रिसायकल करना है.
यह भी पढे : ASHISH THAKKAR : सफलता की अद्भुत मिसाल पेश करते हुए शून्य से 1800 करोड़ का विशाल साम्राज्य खड़ा किया
RAJAGOPALAN VASUDEVAN – प्लास्टिक मैन के नाम से है मशहूर
“प्लास्टिक मैन ऑफ़ इंडिया” के नाम से मशहूर प्रोफसर राजगोपालन वासुदेवन मदुरई के पास ही स्थित त्यागराजार कॉलेज ऑफ़ इंजिनीरिंग में केमिस्ट्री के प्रोफेसर हैं. प्रोफेसर राजगोपालन वासुदेवनसे ताल्लुक रखते वहा पर हर दिन लगभग 400 मीट्रिक टन ठोस कचरा एकत्रित किया जाता है. प्रोफेसर ने इन्हीं कचरों के ढेर को देखा ओर उसे एक अवसर मे बदल दिया. उन्होंने अपने दिमाग ओर बुद्धिमत्ता से आम प्लास्टिक, जिसमें ग्रोसरी बैग्स और रेपर जैसे उत्पाद जो रिसायकल करने योग्य नहीं है उन्हे डामर में कोलतार के लिए उपयोग में लाने के लिए रूपांतरित किया. प्रोफ़ेसोर ने अपनी प्रयोगशाला में जब बेकार प्लास्टिक को डामर के साथ गरम किया और उसके बाद मे उसे पत्थरों के ऊपर डाला गया तब उन्हे उत्साहजनक परिणाम प्राप्त हुए.
प्रोफेसर राजगोपालन वासुदेवन ने अपने प्रयोग मे सफल होने के बाद पहली प्लास्टिक सड़क अपने कॉलेज कैंपस में ही बनाई जो कि आशा के अनुरूप सफल रही. प्रोफेसर ने इस सड़क के निर्माण के लिए पहले बेकार प्लास्टिक को मशीन के द्वारा कतरनों में बदला और उसके बाद कंकर या बजरी को 165 डिग्री पर गर्म किया और फिर दोनों को एक मिक्सिंग चैम्बर में डाला. इस तरह अधिक तापमान की वजह से प्लास्टिक पिघलने लगता है और फिर इसमें 160 डिग्री पर गर्म डामर को मिलाया जाता है और तैयार हुए मिक्सर को सड़कों पर फैलाया जाता है.
यह भी पढे : SAHIL BARUA : 5 दोस्तों ने मिलकर खड़ा किया 11 हजार करोड़ से ज्यादा का बिजनेस एम्पायर
साधारण सड़कों से अधिक टिकाऊ
प्रोफेसर के द्वारा तैयार प्लास्टिक की यह सड़क डामर के मुकाबले ज्यादा मजबूत होती है और यह सड़क बारिश और गर्मी दोनों से ही जल्दी ख़राब नहीं होती. इस विधि द्वारा तैयार सड़कें 10 सालों तक खुरदुरी नहीं होती, ओर इनमें इतनी आसानी से क्रैक भी नहीं आता और गड्ढे भी नहीं बनते और इसी वजह से इन सड़कों के रख-रखाव पर ज्यादा खर्च नहीं आता.
प्रोफ़ेसर द्वारा निर्मित तकनीक द्वारा प्लास्टिक से निर्मित सड़कों से जहा एक ओर पर्यावरण से कचरा कम होता है वही दूसरी ओर पैसे की भी बचत होती है; क्योंकि प्लास्टिक की ये सड़के डामर की सड़कों के मुकाबले 15% कम खर्च मे बन जाती है. इस विधि से बनने वाली सड़कों का दूसरा लाभ यह है कि इन्हे बनाने के तरीके के लिए कोई टेक्निकल ज्ञान की जरूरत नहीं होती. इस तकनीक के द्वरा अब तक 11 से अधिक राज्यों में 10,000 किलोमीटर से अधिक पक्की सड़क बन चुकी हैं. इस प्रकार प्रोफ़ेसोर वसुदेवां के इस अनोखे इनोवेशन से जहाँ कम खर्च में मजबूत सड़क का निर्माण हो रहा है वहीं दूसरी ओर पर्यावरण के लिए खतरनाक माने जाने वाले प्लास्टिक का सदुपयोग भी हो रहा है.
यह भी पढे : LILLY SINGH : साधारण दिखने वाली यह लड़की घर बैठे करती है 50 करोड़ से ज़्यादा की कमाई
मुफ़्त मे अपनी तकनीक भारत सरकार को दी
आपको यह जानकर बहुत ही ज्यादा आश्चर्य होगा कि कई देशी-विदेशी कंपनियों ने प्रोफेसर राजगोपालन को अपनी तकनीक के पेटेंट खरीदने का ऑफर दिया लेकिन इसके बावजूद उन्होंने पैसों का मोह छोड़ते हुए भारत सरकार को यह टेक्नोलॉजी मुफ्त में दी. उनके इसी योगदान को देखते हुए साल 2018 के लिए भारत सरकार द्वारा पद्म पुरस्कारों की सूची में उन्हें देश के चौथे सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया.
हमारे भारत देश में जहाँ 15,000 टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा प्रतिदिन निकलता है वहीं हमारे देश में बड़े आधारभूत ढांचे की कमी भी है. ऐसे मे प्रोफेसर वासुदेवन का यह नया प्रयोग इस बढ़ते हुए अंतर को भरने के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है. प्रोफेसर वासुदेवन ने हमारे साथ-साथ देश को एक बहुमूल्य तोहफ़ा दिया किन्तु उसके बावजूद अफ़सोस की बात यह है कि आज भी हममे से अधिकांश लोग न उनका नाम जानते और न ही उनकी उपलब्धियों को. प्रोफेसर राजगोपालन वसुदेवां ने वैश्विक मंच पर हिंदुस्तान का सर गर्व से ऊँचा किया है, ओर अब हमारी भी यह जिम्मेदारी है कि हम उनके काम को अन्य लोगों तक पहुंचाए.
ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.
तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…