“जो प्रेरित होना चाहते हैं वो किसी भी चीज से हो सकते हैं ।”
SUCCESS STORY OF HARI KISHAN PIPPAL : आप लोग आए दिन शून्य से लेकर शिखर तक का सफर तय करने वाले लोगों की कहानियां पढ़ते होगे. लेकिन इनमे से कुछ लोगों की कहानियां ऐसी भी होती जिसकी जगह कोई दूसरा नहीं ले सकता. कुछ लोग गरीबी और संघर्ष को ही अपनी ताकत बनाते हुए अपने जीवन की राह में इतनी मजबूती से खड़े रहते कि उनके सामने बाधाएं खुद घबराकर अपना रास्ता मोड़ लेती है.
ऐसे लोगों का अपने दृढ़ संकल्प के साथ लक्ष्य प्राप्ति के लिए डटे रहना ही उनकी सबसे बड़ी ख़ासियत होती है जो इन्हें दुनियाँ की भीड़ से अलग खड़ा करती है. आज की हमारी सक्सेस स्टोरी भी एक ऐसे ही शख़्सियत की है जिन्होंने कठिन मेहनत और दूरदर्शिता के बल पर वो मुक़ाम हासिल किया जिसके बारे में कोई व्यक्ति अपने सपने में भी नहीं सोच सकता. यह एक व्यक्ति के रंक से राजा बनने की बेहद प्रेरणादायक जिवनगाथा है.
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HARI KISHAN PIPPAL का बचपन ओर शिक्षा (Education) का संघर्ष
एक छोटे से रिक्शाचालक से एक कामयाब उद्यमी बनने तक का सफर तय करने वाले हरिकिशन पिप्पल (HARI KISHAN PIPPAL) की कहानी अपने आप में कामयाबी की अनूठी मिसाल है. हरिकिशन बचपन से ही छुआछूत, जातिवादी भेदभाव और शोषण का शिकार रहे किंतु इसके बावजूद भी उन्होंने कभी भी खुद को चुनौतियों के सामने झुकने नहीं दिया.
हरिकिशन पिप्पल का जन्म उत्तर प्रदेश के आगरा में एक बेहद ही गरीब दलित परिवार में हुआ. हरिकिशन पिप्पल के पिता एक छोटी सी जूता मरम्मत करने की दुकान चलाते थे. इस दुकान से ही किसी तरह उनके परिवार को दो वक़्त का खाना नसीब हो पाता था. अपने घर की दयनीय आर्थिक हालात को देखते हुए हरिकिशन पिप्पल ने अपने बचपन से ही मेहनत-मजदूरी करना शुरू कर दिया.
हरिकिशन पिप्पल को अपने बचपन में ही इस बात का अहसास हो चुका था कि उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए अच्छी शिक्षा ही एकमात्र सहारा साबित हो सकती है और इसी कारण से उन्होंने खुद की पढ़ाई का खर्चा उठाने के लिए स्वयं मजदूरी करने का रास्ता चुना. वे दिनभर काम करते और रात में जब भी वक्त मिलता तब मन लगाकर पढ़ाई करते.
हरिकिशन पिप्पल उस दौर के अपने संघर्ष को याद करते हुए कहते है कि गर्मी के दिनों में वे आगरा एयरपोर्ट पर खस की चादरों पर पानी डालने का काम किया करते थे और इस काम के लिए उन्हें हर महीने 60 रुपये मिलते थे.
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पिता की मौत के बाद घर की ज़िम्मेदारी
हरिकिशन पिप्पल ने अपने सामने आने वाली तमाम चुनौतियों के बीच अपनी पढ़ाई को जारी रखा. लेकिन उन्हें इस बात का बिलकुल भी अहसास नहीं था कि आने वाला वक़्त उनके लिए पहले से भी अधिक मुश्किल होने वाला है. हर दिन मुसीबतों का सामना तो अब उनकी जिंदगी का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका था.
जब वे दसवीं कक्षा में पहुँचे तभी एक दिन अचानक से उनके पिता बीमार पड़ गए. बीमारी के कारण उनके पिता की तबियत इतनी ज़्यादा बिगड़ गई कि वे काम करने की स्थिति में ही नहीं रहे. उनके पिता की इस स्थिति के कारण उनके परिवार की आय का एकमात्र स्रोत दुकान भी बंद हो गया और उस परिस्थिति में उनके परिवार को चलाने की जिम्मेदारी अचानक से हरिकिशन के कंधों पर आ गई.
अचानक से उत्पन्न हुई करो या मरो की स्थिति में हरिकिशन ने रोजगार की तलाश शुरू कर दी. उन्होंने रोज़गार कि तलाश में काफी मशक्कत की किंतु उसके बाद भी जब उन्हें कोई काम नहीं मिला तो अपने परिवार वालो को बिना बताए उन्होंने अपने एक रिश्तेदार से साइकिल-रिक्शा माँगा ओर उसे चलाना शुरू कर दिया. हरिकिशन लोगों से अपनी पहचान छुपाने के शाम के वक़्त रिक्शा चलाते समय अपने चेहरे पर कपड़ा बाँध लेते.
शादी के बाद दौहरी ज़िम्मेदारी
यह सिलसिला कुछ महीनों तक ऐसे ही चलता रहा. इसी दौरान लम्बी बीमारी से ग्रस्त unke पिता ने एक दिन दम तोड़ दिया. पिता की अचानक हुई मृत्यु के बाद उनकी माँ ने जल्द ही उनकी शादी करवा दी. इस शादी से हरिकिशन के ऊपर परिवार की जिम्मेदारी और भी अधिक बढ़ गई.
शादी के बाद उन्होंने 80 रूपये की तनख्वाह पर आगरा की एक फैक्टरी में मजदूरी करना शुरू कर दिया. हरिकिशन ने इस दौरान आर्थिक, सामाजिक और पारिवारिक हर तहर के दबावों का सामना किया किंतु इसके बावजूद भी उन्होंने अपने सपनो को कभी नहीं मरने दिया और उनके इस हौसले में उनकी पत्नी ने भी उनका पूरा साथ दिया.
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पारिवारिक विवाद के कारण छोड़ना पड़ा घर
साल 1975 में उन्होंने अपनी पत्नी की सलाह के आधार पर पंजाब नेशनल बैंक में लोन का आवेदन दिया और अपने पुश्तैनी दुकान को फिर से शुरू करने का निश्चय किया. इसे उनका भाग्य ही कहिए की उन्हें बैंक द्वारा 15 हज़ार रूपये लोन में मिले लेकिन तभी कुछ पारिवारिक विवादों के कारण उन्हें अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा.
उन्होंने अपना घर छोड़ने के बाद एक छोटा सा कमरा किराये पर लिया और एक बार फिर से अपने सपने की नींव रखी. उन्होंने नए काम की शुरुआत करते हुए छोटे स्केल पर जूता बनाना शुरू किया. एक दिन अचानक उनकी जिंदगी में उस समय टर्निंग पॉइंट आया जब उन्हें स्टेट ट्रेडिंग कार्पोरेशन से एक साथ 10 हज़ार जोड़ी जूते बनाने का ऑर्डर मिला.
हरिकिशन की जिंदगी में यह दिन बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ और उस दिन के बार उन्होंने अपनी ज़िंदगी में फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. हरिकिशन ने इस करार से हुए मुनाफे का सही इस्तेमाल करते हुए उन्होंने हेरिक्सन नाम से अपना खुद का जूता ब्रांड लांच किया.
हरिकिशन ने कम दाम में उच्च गुणवत्ता वाले सामान मुहैया कराते हुए कम समय में ही बाज़ार में अपनी एक अलग पहचान बना ली. और उसके बाद तो उन्हें बाटा समेत कई नामचीन कंपनियों से आर्डर भी मिलने शुरू हो गए. उन्होंने पीपल्स एक्स्पोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड नाम से अपनी स्वयं की कंपनी की आधारशिला रखते हुए कई अन्तराष्ट्रीय ब्रांडों के लिए भारत में जूते का निर्माण करना शुरू किया.
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अग्रवाल रेस्टौरेंट की शुरुआत
अस्सी के दशक में हरिकिशन ने जूतों के कारोबार में मंदी को भाँपते हुए दूसरे क्षेत्रों में भी अपनी किस्मत आज़माने की कोशिश की. इसी कड़ी में उन्होंने अग्रवाल रेस्टोरेंट नाम से अपना एक रेस्तराँ खोला. एक दलित द्वारा इस प्रकार अग्रवाल नाम से रेस्टोरेंट खोलने पर उस समय कई लोगों ने उनके ऊपर सवाल उठाये लेकिन हरिकिशन इसके बावजूद कामयाबी की सीढ़ियों पर चढ़ते चले गए. रेस्टोरेंट की शुरूआती सफलता के बाद उन्होंने इसका विस्तार करते हुए स्वयं का एक शानदार शादीखाना भी बनाया.
हरिकिशन ने बाद में हेल्थकेयर सेक्टर में एक बड़ी कमी को महसूस करते हुए साल 2001 में हैरिटेज पीपुल्स नाम से एक हॉस्पिटल की स्थापना भी की. इसके अलावा उन्होंने वाहन डीलरशिप और पब्लिकेशन फर्म में भी गुजरते वक्त के साथ अपनी पैठ जमाई.
71 वर्ष के हरिकिशन ने अपनी काबिलियत और दूरदर्शिता के द्वारा कई क्षेत्रों में अपनी कामयाबी के झंडे गाड़े. आज वह एक सफल व्यवसायी हैं, जिनकी कंपनी का सालाना टर्नओवर 100 करोड़ से ज़्यादा का है. हरिकिशन की सफलता पर ठीक ढंग से ध्यान दे तो आप लोगों को काफी कुछ सीखने को मिलेगा.
सबसे बड़ी बात यह है कि यदि किसी व्यक्ति के अंदर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने को लेकर ललक है तो उसके मार्ग में आने वाली तमाम तरह की चुनौतियों के बावजूद भी एक न एक दिन उसे सफलता अवश्य हासिल होगी.
ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.
तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…