“आपका लक्ष्य आपके मेहनत करने के तरीके से पता चलता है ।”
CAPTAIN RAKESH WALIA SUCCESS STORY : मुश्किलें तो हर किसी व्यक्ति के जीवन में आती है लेकिन इन मुश्किलों से जीत वही पाते हैं जिनका खुद पर विश्वास होता है ओर अपने कर्म पर आस्था होती है. जो व्यक्ति संघर्षो से लड़कर अपने आप को स्थापित करता है वही व्यक्ति इतिहास बनाता है.
कुछ ऐसी जीवन कथा है कैप्टेन राकेश वालिया (CAPTAIN RAKESH WALIA) की जिन्होंने अपने जीवन में आए हुए कठिन दौर में भी हिम्मत न हारते हुए अपने बुलन्द इरादों और आत्मविश्वास के दम पर अपनी सफलता की कहानी लिख डाली.
CAPTAIN RAKESH WALIA का बचपन ओर संघर्ष
कैप्टेन राकेश वालिया का बचपन आम बच्चों की तरह मनोरंजन और सुख सुविधाओं के साथ आराम से व्यतीत हो रहा था, अपने माता-पिता उनकी हर आवश्यकता को पूरी करते थे. तभी अचानक से एक दिन एक ऐसी दुर्घटना घटित हुई, जिसने कैप्टेन राकेश वालिया के जीवन को पूरी तरह से बदल कर कर रख दिया.
एक अत्यंत ही भीषण सड़क हादसे ने कैप्टेन राकेश वालिया के सर से उनके माँ और पिता का साया हमेशा के लिए छीन लिया. माता-पिता की मृत्यु के बाद उनके रिश्तेदारों के व्यवहार में हुए अप्रत्याशित परिवर्तन और अपने प्रति बेरुखी ने छोटे से राकेश के मन पर बहुत ज़्यादा विपरीत प्रभाव डाला क्योंकि यही रिश्तेदार उनके सुख के समय में उनके साथ थे परन्तु जैसे ही उनके मता-पिता की मृत्यु के बाद दुःख की घड़ी आइ तो उन्होंने उन्हें अकेला छोड़ दिया.
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जब CAPTAIN RAKESH WALIA ने की बाल मज़दूरी
राकेश ने निराशा के इस दौर में भी स्वयं को सम्भालते हुए अपने माता-पिता के सपनों को पूरा करने की ठान ली क्योंकि अब उनके वही सपने राकेश के जीवन की आख़िरी उम्मीद थी.
माता-पिता की मौत के बाद मात्र 6 साल की उम्र में राकेश ने करखानो में बाल मज़दूर के रूप में काम करना शुरू कर दिया. जीवन के इस कठिन दौर में भी उन्हें उनकी माँ की बातें सदैव प्रेरणा देती और वे हर परिस्थिति ओर मुश्किल का सामना करने को तैयार रहते थे.
कुछ समय बाद उन्होंने एक साइकिल की दुकान में काम करना शुरू किया जहाँ पर वे पंचर बनाने का काम करते थे. यह सारे कार्य करने के बावजूद भी उन्हें पेट भर खाना तक मुश्किल से नसीब होता था तो ऐसी स्थिति में शिक्षा प्राप्त करने की तो कल्पना भी नही की जा सकती थी. लेकिन इन परिस्थितियों के बावजूद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारते हुए अपनी शिक्षा के लिए हर सम्भव प्रयास करने लगे.
कक्षा 6 तक की शिक्षा के बाद उन्होंने कक्षा 7 की पढ़ाई के लिए ग्वालियर का रुख किया. कैप्टेन राकेश वालिया किसी तरह से अपने भोजन और पढ़ाई के खर्च को संभाल रहे थे किंतु उनके पास धन भी नहीं था कि वे अपने स्वास्थ्य के बारे में सोच सके.
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ग्वालियर में मिला जीवन जीने का लक्ष्य
ग्वालियर आने के बाद साल 1971 में उनकी जिंदगी में सुकून का क्षण तब आया जब एक दिन उन्होंने कुछ भारतीय सैनिकों को यूनिफार्म में परेड करते हुए देखा और उनके मुँह से “भारत माता की जय” के नारे को सुना.
उस नारे को सुनकर राकेश के मन में एक चमत्कारिक असर हुआ और उन्होंने उसी क्षण यह ठान लिया कि उन्हें अपनी मृत्यु से पहले अपनी मातृभूमि के लिए कुछ करना है. उन्होंने उसी क्षण भारतीय सेना में शामिल होने का पक्का मन बना लिया. जब कैप्टेन राकेश वालिया ने भारतीय सेना में शामिल होने का लक्ष्य तय किया तब उनकी उम्र केवल 10 वर्ष की थी.
समय अपनी गति से ऐसे ही बढ़ने लगा और कैप्टेन राकेश वालिया का सैनिकों के परेड को देखना प्रतिदिन का कार्य बन गया. एक दिन उन्होंने हिम्मत करके आर्मी केम्प में जाने का निश्चय किया और वहाँ पर जाकर सेना के जवानों से भारतीय सेना में शामिल होने की योग्यता के बारे में पूछा.
जवानों ने राकेश को बताया कि वे अपनी हाई स्कूल की शिक्षा पूर्ण करके सेना में शामिल हो सकते हैं. बस फिर क्या था सेना में जाने के उत्साह में राकेश ने 8वीं कक्षा के बाद सीधे ही कक्षा 10 की परीक्षा दी और अपनी सम्पूर्ण मेहनत के बल पर उसमें सफल हुए.
भारतीय सेना में बने अधिकारी
10 वीं का परिणाम आने के बाद राकेश ने ट्रेनिंग के बाद भारतीय सेना में कदम रखा लेकिन वहाँ पर जाकर उन्हें पता चला कि सेना में अधिकारी बनने की योग्यता स्नातक की परीक्षा पास करने के बाद होती है. परन्तु उस समय राकेश के पास इतने रूपये भी नहीं थे कि वे नियमित रूप से कॉलेज जाकर शिक्षा प्राप्त कर सके इसलिए उन्होंने प्राइवेट विद्यार्थी के रूप में शिक्षा प्राप्त करने की सोची.
राकेश अपने बारे में कहते है कि
“जीवन संघर्षो से भरा हुआ है इन संघर्षो में आपकी क्षमता और मजबूत इरादे ही आपको प्रेरणा प्रदान करती है।”
अपनी कॉलेज की शिक्षा पूरी होते ही राकेश ने आर्मी की परीक्षा दी और वे उसमे सफल हुए ओर आख़िर में आर्मी में शामिल हुए. राकेश वालिया से कैप्टन राकेश वालिया का सफर अब शुरू हो गया था. कैप्टन राकेश इस बारे में बताते हैं कि
“मुझे अपनी माँ की सेवा करने का अवसर तो नहीं मिला, इसलिए ही मैंने भारतीय सेना ज्वॉइन किया ताकि मैं अपनी मातृभूमि की सेवा तो कर सकूँ.“
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पत्नी के स्वास्थ्य के कारण लेना पड़ा सेवा अवधि पूर्व रिटायरमेंट
भारतीय सेना में 10 साल अपनी सक्रिय सेवा देने के बाद कैप्टन राकेश वालिया को अपनी पत्नी के खराब स्वास्थ्य के कारण सेवा अवधि पूर्ण होने से पहले ही रिटायरमेंट लेना पड़ा. कैप्टन वालिया कहते हैं कि
“मेरे जीवन का एक सपना अधूरा रह गया. मैं चाहता था कि मेरा शरीर भी दूसरे फ़ौजी की तरह ही तिरंगे में लिपट कर दुनिया को अलविदा कहे.“
भारतीय सेना से रिटायरमेंट लेने के बाद कैप्टेन राकेश वालिया ने आम नागरिक के रूप में लौटकर स्टॉक मार्केट में ब्रोकर के रूप में काम करना शुरू किया. कुछ समय बाद उन्होंने मेजर एयरलाइन नामक ट्रैवेलग्रुप में कार्य करना आरम्भ किया.
अपनी मेहनत के दम पर जीवन के संघर्षो से जूझने वाले राकेश के भाग्य का सितारा भी यहाँ पर आकर चमका. इस बार उनकी क़िस्मत का रुख बदला और कैप्टन राकेश मैट्रिक्स सेल्युलर कंपनी में बतौर मुख्य प्रशासनिक अधिकारी शामिल हुए. इस कंपनी की वर्तमान वैल्यूएशन 1200 करोड़ के पार है.
इतने ऊँचे मुकाम पर पहुँचने के बाद भी कैप्टेन राकेश वालिया हर रात सोने से पहले ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं कि
“जो संघर्षो और निराशा का दौर उनके जीवन में आया वह दौर ईश्वर किसी और को ना दिखाये क्योंकि आवश्यक नहीं कि हर व्यक्ति उनकी तरह से उन परिस्थियों का सामना कर सके.“
मुश्किल हालातों का सामना करना और उन्हें अपने हौंसलो के दम पर हराकर जीत का परचम लहराना केवल स्वयं पर विश्वास और कठिन परिश्रम के बल पर ही सम्भव है. कैप्टन राकेश वालिया इस बात का प्रत्यक्ष और प्रेरणास्पद उदहारण हैं.
ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.
तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…