“ज़िंदा वही है जिसके हौशलों के तरकस में कोशिशों की तीर बची है I”
RAJINDER PAUL LOOMBA SUCCESS STORY : आज की यह स्टोरी एक ऐसे 10 साल के मासूम लड़के की है जिसने अपने पिता की मृत्यु के बाद अपनी माँ के संघर्ष को देखते हुए बड़ा हुआ ओर इसी कारण वह कठोर परिश्रम ओर ग़रीबी की क़ीमत जानता था ओर उसी ग़रीबी को मिटाते हुए उस लड़के ने एक ऐसा बिजनेस खड़ा कर लिया की आज उस व्यक्ति की गिनती ब्रिटेन के सबसे प्रभावशाली बिजनेसमेन में होती है.
जी दोस्तों ओर उस व्यक्ति का नाम है राजिंदर पॉल लूम्बा (RAJINDER PAUL LOOMBA) जिन्होंने अपने कठोर परिश्रम ओर दूरगामी सोच के बल पर ग़रीबी से निकलते हुए सफलता का सफ़र तय किया. आइए जानते है उनके इस सफ़र के बारे में….
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RAJINDER PAUL LOOMBA का जन्म ओर बचपन
राजिंदर पॉल लूम्बा का जन्म भारत के पंजाब राज्य के कपूरथला के एक छोटे से शहर में राजिंदर का जन्म हुआ था. उनका शुरुआती बचपन मस्ती में बीता. राजिंदर पॉल लूम्बा के पिता स्थानीय बिज़नेसमैन थे और उनकी माता घर पर ही अपने बच्चों को संभालती थी. उनका सपना था कि वे एक आराम-तलब और संघर्षों से मुक्त जीवन जिए. किंतु भगवान को तो कुछ और ही मंज़ूर था. जब वे 10 वर्ष के थे तब अचानक से उनके परिवार में गंभीर संकट के बादल मंडराने लगे जब एक दिन राज के पिता बीमार पड़ गए और गजरते दिनो के साथ उनकी हालत तेजी से बिगड़ती चली गई.
डॉक्टर भी उनकी इस बीमारी का कुछ भी नहीं कर पा रहे थे और आख़िर एक दिन उनकी बड़ी ही दुःखद मृत्यु हो गई. मात्र 37 वर्ष की उम्र में ही राजिंदर पॉल लूम्बा की माता पुष्पा वती लूम्बा विधवा हो गई ओर इसी के साथ वे अनाथ हो गए. पिता की मृत्यु के बाद सात बच्चों की देखरेख की सारी जिम्मेदारी उनकी माँ के कन्धों पर आ गई.
जब राजिंदर पॉल लूम्बा के पिता की मृत्यु हुई तो वह वर्ष 1953 का समय था. उस समय में महिलाओं से केवल अपने घर को सँभालने की ही उम्मीद रखी जाती थी. राज के पिता ने अपनी पूरी मेहनत ओर कठिन परिश्रम के द्वारा अपना बिज़नेस खड़ा किया था किंतु उनकी मृत्यु के बाद धीरे-धीरे उनका यह साम्राज्य ढहना शुरू हो गया. इन विपरीत परिस्थितियों में राजिंदर पॉल लूम्बा बड़े हुए और वक्त के साथ संघर्ष से तब उन्हें कठोर परिश्रम का पाठ पढ़ने को मिला.
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पुष्पा वती लूम्बा ने बच्चों को दिलाई उच्च शिक्षा
मृत्यु से पूर्व बीमारी के समय राजिंदर पॉल लूम्बा के पिता अपनी पत्नी से कहते थे कि जीवन की लड़ाई में संघर्षो से उभरने के लिए एकमात्र शिक्षा ही सबसे बड़ा अस्त्र होता है. अपने पति की इस बात को पुष्पा ने अपने मन में गांठ बांध ली और अपने सम्बन्धियों की मदद से अपने सभी बच्चों की शिक्षा पर अपना पूरा ध्यान दिया. उस समय रूढ़िवादी सोच के चलते जब केवल कुछ ही लड़कियां पढ़ाई कर पाती थीं तब भी इस धारा के विपरीत पुष्पा वटी लूम्बा ने अपनी लड़कियों को आगे तक पढ़ाने की हिम्मत दिखाई.
अपने पिता के द्वारा कहे हुए शब्दों को याद रखते हुए राजिंदर पॉल लूम्बा ने भी उच्च शिक्षा लेने का फैसला लिया. और 20 वर्ष की उम्र में वे ही वे यूनाइटेड स्टेट चले गए. यह उस समय उनके द्वारा उठाया गाया एक साहसिक कदम था, क्योंकि उस समय उनके पास बाहरी दुनिया का कोई अनुभव नहीं था. परन्तु वे अपने जीवन में सफलता प्राप्त करना चाहते थे और साथ ही साथ अपने परिवार के लिए अच्छा भविष्य भी चाहते थे. उन्होंने उस समय यह सुन रखा था कि विदेश में हमारे देश से बेहतर जीवन है और राज का यह विश्वास था कि वे वहाँ पर एक दिन सफल ज़रूर होंगे.
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पढ़ने के लिए विदेश गए
विदेश में जाने के बाद जब उनकी दो साल की डिग्री ही हो पाई थी की तभी उनकी माँ का सारा पैसा खत्म हो गया था और तब उन्होंने वहां एक फैक्ट्री में काम करना शुरू कर दिया. लूम्बा का वापस अपने देश जाने का कोई इरादा नहीं था. उन्होंने इस दौरान अपनी नौकरी के लिए अपना शत-प्रतिशत दिया और उनकी इस मेहनत को उनके एक चाचा ने देखा जो कि उस समय में यूके में रहते थे. उनकी इसी लगन को देखते हुए उन्होंने राज को इंग्लैंड आने का न्योता दिया और उन्हें उनके जीवन-यापन के लिए एक आइसक्रीम वैन खरीद कर दी. यह उनके जीवन की सफलता की पारी की एक नई शुरुआत थी.
उनके चाचा का उस समय वहाँ पर कपड़ों का होलसेल का बड़ा बिज़नेस था और वे अपने भतीजे राज से काफी प्रभावित हुए थे. आइसक्रीम बेचने के साथ-साथ राज पूरी लगन से और भी कई काम निपटा दिया करते थे. उनकी मेहनत ओर लगन को देखते हुए उनके चाचा ने स्थानीय बाजार में ही राज के लिए एक स्टाल की अलग से व्यवस्था कर दी. यही वह बिज़नेस था जिसकी कि कल्पना राजिंदर पॉल लूम्बा ने अपने बचपन से की थी. उन्होंने अपने बिजनेस को नई बुलंदियो पर पहचाने के लिए अपनी सारी मानसिक और शारीरिक ताकत लगा दी और बहुत जल्द ही अपना बिज़नेस बढ़ा लिया.
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इंटरनेशनल ब्रांड लूम्बा रिंकू ग्रुप की स्थापना
गुजरते समय के साथ उनका बिज़नेस बढ़ता ही चला गया और कुछ सालों में ही उन्होंने सड़क किनारे एक बड़ी दुकान खोल ली थी. उनकी माता के द्वारा उनके पिता की मृत्यु के बाद किया गया संघर्ष और उनके द्वारा उन्हें दिलाई गई शिक्षा ही उन्हें यह सब करने ओर बड़ा आदमी बनने के लिए प्रेरणा देती थी. उनकी ही इस प्रेरणा के बल पर उन्होंने महिलाओं के वस्त्रों के एक इंटरनेशनल ब्रांड लूम्बा रिंकू ग्रुप की स्थापना की. जिनकी की आज 500 रिटेल आउटलेट फैली हुई है. चीन के साथ-साथ भारत में भी इनके ऑफिस हैं जिनमें 300 से ज़्यादा कर्मचारी काम कर रहे हैं.
वर्तमान समय में इतनी बड़ी सफलता हासिल करने के बाद भी लूम्बा अपने बचपन का और अपनी विधवा माँ का के द्वारा किए गए संघर्ष को आज तक नहीं भूले हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए विधवाओं का जीवन बेहतर बनाने के इस अभियान के लिए उन्होने अपने स्तर पर बड़े पैमाने पर काम किया है और उनकी ज़िंदगी को संवारने के लिए करोड़ों रुपये के फण्ड इकट्ठे किये हैं और इसके इस इवेंट्स के लिए उन्होंने हिलेरी क्लिंटन को भी मेहमान के रूप में बुलाया.
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विधवाओं के जीवन में सुधार के कार्य
भारत में उनके द्वारा स्थापित ट्रस्ट का उद्घाटन देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था. राजिंदर पॉल लूम्बा के प्रयासों के द्वारा ही यूएन ने भी विधवाओं के लिए 23 जून को इंटरनेशनल विडो डे मनाने का फैसला लिया. राजिंदर पॉल लूम्बा सफलता प्राप्त करने के लिए चार चीजों को सबसे जरुरी मानते हैं पहला आपका विज़न, दूसरा आपका साधन, तीसरा आपका प्रयास और चौथा थोड़ी मात्रा में आपके भाग्य का साथ. ये चार फैक्टर अगर आपके पास हों तो आप अपना भाग्य स्वयं बदल सकते हैं और ज़िंदगी की सारी बाधाओं को पार कर सकते हैं.
हम सलाम करते हैं राजिंदर पॉल लूम्बा के प्रयासों को जिनकी बदौलत वे गरीबी से बाहर आये और अपना सफल साम्राज्य स्थापित किया. वे एक लोक-हितैषी व्यक्ति हैं और विधवाओं के लिए इस स्तर पर काम करने के बाद उनका क़द और भी बड़ा हो जाता है.
ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.
तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…