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NARAYANAN KRISHNAN : लाखों की नौकरी छोड़कर करोड़ों भूखे लोगों की थाली में भोजन परोसने वाला एक मसीहा

बारिश की बूँदें भले ही छोटी हों
लेकिन उनका लगातार बरसना
बड़ी नदियों का बहाव बन जाता है
वैसे ही हमारे छोटे छोटे प्रयास भी
जिंदगी में बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं.

NARAYANAN KRISHNAN SUCCESS STORY : हीरो एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल उन लोगों के लिए किया जाता है जो अन्य साधारण लोगों से कुछ अलग ओर अन्य लोगों के लिए प्रेरणादायक कार्य करते हैं.

हालांकि हर अलग-अलग व्यक्ति के लिए हीरो के मायने भी अलग-अलग होते लेकिन असली ज़िंदगी में हीरो वही व्यक्ति होता है जो अपने मन में दूसरे लोगों की सलामती और समाज सेवा के भाव के साथ कुछ अनोखा काम करने की हिम्मत रखता है.

वर्तमान समय की मतलबी दुनिया में एक और जहाँ लोग अपने माता-पिता तक के त्याग और बलिदान को भूल जाते हैं ओर उनके बुड़ापे में उनकी सेवा करना तो दूर उन्हें घर से निकालकर व्रधाश्रम में डाल देते है ऐसे में दूसरों के लिए खुद के त्याग की बात करने का तो कोई औचित्य ही नहीं है.

किंतु इन सबके बावजूद आज भी हमारे समाज में ऐसे कुछ लोग हैं जिन्होंने समाज सेवा के भाव को सर्वोपरि रखते हुए अपना सम्पूर्ण जीवन लोगों के हित के लिए न्योछावर कर दिया है. 41 वर्षीय नारायण कृष्णन (NARAYANAN KRISHNAN) भी उन्ही कुछ चंद समाजसेवक लोगों में एक हैं। पिछले 22 वर्षों से नारायण कृष्णन ने करोड़ों बेघर, अनाथ और भूखे लोगों की थाली में भोजन परोसा है.

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NARAYANAN KRISHNAN

NARAYANAN KRISHNAN के कैरियर की शुरुआत ओर घटित घटना

नारायणन कृष्णन ने भारत के प्रतिष्ठित ताज होटल में बतौर शेफ अपने कैरियर की शुरुआत की थी और उसके बाद उन्हें उनकी अच्छी कुकिंग के लिए स्विट्जरलैंड में एक पांच सितारा होटल में काम करने का न्योता मिला. इसी बीच में साल 2002 में उनके साथ हुए एक वाकये ने उनकी जिंदगी को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया.

दरसल हुआ यूँ कि नारायणन कृष्णन यूरोप रवाना होने से पहले, अपने माता-पिता से मिलने के लिए मदुरै गए, वहां पर उन्होंने देखा कि एक भूख से व्याकुल वृद्ध आदमी अपनी भूख को शांत करने के लिए अपना मलमूत्र ही खा रहा था.

नारायणन कृष्णन आज भी उस वाकये को याद करते कहते हैं कि उस दिन मेरी आँखो द्वारा देखी गई उस घटना ने वाकई में मुझे इतना दुख पहुँचाया कि मैं सचमुच कुछ समय के लिए स्तब्ध सा रह गया. कुछ समय बाद जब मुझे होश आया तो मैंने उस आदमी को भोजन खिलाया और उसी क्षण यह फैसला किया कि अब मैं अपने जीवनकाल के बाकी समय को जरुरतमंदों की सेवा के लिए अर्पित कर दूँगा.

इसी विचार के कारण नारायणन कृष्णन ने विदेश जाने के अपने फैसले को को बदलते हुए ‘अक्षय’ नाम से एक सामाजिक संगठन की शुरुआत की. उनके द्वारा स्थापित इस संगठन का एकमात्र उद्येश्य था कि उनकी नज़र के सामने कोई भी गरीब व्यक्ति उनके रहते हुए भूखा नहीं सोए.

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NARAYANAN KRISHNAN

प्रतिदिन सुबह चार बजे उठकर खाना बनाते है

नारायणन कृष्णन रोजाना सुबह चार बजे उठकर अपने हाथों से ग़रीबों को खिलाने के लिए खाना बनाते हैं, फ़िर अपनी टीम के साथ एक वैन में सवार होकर मदुरै की सड़कों पर करीब 200 किमी का चक्कर लगाते हैं तथा उन्हें सड़क किनारे जहाँ कहीं भी भूखे, नंगे, पागल, बीमार, अपंग, बेसहारा, बेघर लोग दिख जाते है वे वही पर उन्हें खाना खिलाने लग जाते हैं.

नारायणन कृष्णन ओर उनकी पूरी टीम हर दिन में दो बार चक्कर लगाती है और करीब 400 से अधिक लोगों को खाना खिलाती है. इसके अलावा वे भिखारियों के बाल काटना और उन्हें नहलाने का काम भी अपने पूरे मन के साथ करते है.

नारायणन कृष्णन को इस कार्य के लिए रोजाना 20 हजार रुपए का खर्च उठाना पड़ता है. हालांकी इस कार्य के लिए उन्हें डोनेशन भी मिलता है किंतु उससे मिलने वाला पैसा करीब 22 दिन ही चल पाता है जिसके बाद महीने के बाकि के दिनों का खर्च वे स्वयं ही उठाते हैं.

वे अपने घर से आने वाले किराये को भी गरीबों का पेट भरने में इस्तेमाल करते हैं. और स्वयं ट्रस्ट के किचन में अपने कर्मचारियों के साथ ही सोते हैं. 41 वर्षीय कृष्णन अब तक मदुरई के एक करोड़ से भी ज्यादा लोगों को सुबह का नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात का खाना खिला चुके हैं. वह नि:स्वार्थ भाव से जन की सेवा करने में लगे हुए हैं. ऐसे समाज सेवकों पर पूरे देश को गर्व होना चाहिए.

ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.

तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…

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