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IAS NAVJIVAN PAWAR : बीमारी के बावजूद यूपीएससी परीक्षा की तैयारी कर ऐसे बने IAS OFFICER

“मेहनत पर ऐतबार करने वालों को अपने काम में खुदा नजर आता है.”

Success Story Of IAS NavJivan Pawar : महाराष्ट्र के रहने वाले नवजीवन पवार (IAS NAVJIVAN PAWAR) की कहानी ऐसी है जिसे सुनकर कोई भी दांतों तले उंगली दबाने पर मजबूर हो जाए.

नवजीवन पवार का यूपीएससी का सफ़र ऐसा था जहां परिस्थितियाँ उन्हें यह सफ़र बीच में छोड़ने पर आमदा थी ओर वे किसी भी क़ीमत पर हार मानने को तैयार नही थे, जहां हर बार उनके सामने कुछ न कुछ नये चैलेंज सामने आते ही जा रहे थे.

नवजीवन कुमार एक समस्या से उबरते नहीं थे की उससे पहले उनके सामने दूसरी समस्या खड़ी होती थी. परंतु इसके बावजूद नवजीवन की हिम्मत की भी दाद देनी होगी कि उन्होंने हार परिस्थिति का डटकर सामना किया किंतु कभी हार नहीं मानी और बुरे से बुरे वक्त में भी कभी आशा का दामन नहीं छोड़ा.

उन्हें उनके इस संघर्ष का फल भी मिला ओर सब परेशानियों पर विजय पाकर वे अंत में पहली ही बार में सीधे आईएएस ऑफिसर बन गए. आज जानते हैं नवजीवन पवार की यूपीएससी के संघर्ष की कहानी…

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IAS NAVJIVAN PAWAR का जीवन परिचय

नवजीवन पवार साधारण परिवार से आते है. उनके पिताजी खेती करते हैं और उनकी मां प्राइमरी स्कूल में टीचर हैं. उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन कम्प्लीट करने के बाद यूपीएससी (UPSC) परीक्षा देने का मन बनाया और इसकी तैयारी के लिए दिल्ली चले गए.

नवजीवन पवार ने दिल्ली में जमकर एक-डेढ़ साल तक यूपीएससी की तैयारी करते हुए बहुत मेहनत की और अपना सबकुछ तैयारी में झोंक दिया. उनका बस एक ही उद्देश्य था की किसी भी तरह से वे यूपीएससी की परीक्षा में सफल हो जाएं. उनकी तैयारी के दौरान ही उनके सीनियर का रिजल्ट आया जो उस साल सेलेक्ट नहीं हुए.

अपने सीनियर की असफलता को देख नवजीवन बहुत ज़्यादा निराश हो गए ओर यह सोचने लगे कि इतना पढ़ने के बाद जब इनका सेलेक्शन नहीं हुआ तो मेरा तो पता नही क्या होगा. लेकिन उन्होंने इस निराशा को खुद पर ज़्यादा देर तक हावी नहीं रहने दिया और दोगुनी मेहनत से तैयारी करने लगे. नवजीवन को अपना घर छोड़े करीब डेढ़ साल हो रहा था और वे दिन-रात सिर्फ़ अपने लक्ष्य को पाने के लिए मेहनत कर रहे थे.

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IAS NAVJIVAN PAWAR

तैयारी के दौरान हुआ डेंगू  

एक दिन नवजीवन कोचिंग से आकर बिस्तर पर लेटे तो 48 घंटे तक उठे ही नहीं. उनके दोस्तों को जब उनकी चिंता हुई तो वे उन्हें पास के अस्पताल ले गए. वहाँ पर जाँच कराने पर पता चला की उन्हें डेंगू हुआ है. नवजीवन जब बीमार हुए तो उस समय वे प्री पास कर चुके थे और मेन्स के लिए करीब एक महीना बचा था.

जब उनके परिवार को इस बारे में पता चला तो परिवार वालों ने उन्हें सीधा नासिक बुला लिया और डेढ़ साल बाद नवजीवन घर आकर भी अपने घर नहीं पहुँच पाए और सीधा अस्पताल के आईसीयू में भर्ती हुए. इस प्रकार से बीमार होने पर वे खूब रोयें और परेशान हुए तब उनके पिता ने उन्हें एक मराठी कहावत सुनायी जिसका मतलब था कि जब जीवन में ऐसे पल आएं तो या तो रो या फिर खड़े होकर लड़ो. बस नवजीवन ने यह तय किया कि वे रोएँगे नही बल्कि लड़ेंगे.

अस्पताल के बेड पर पड़े हुए भी नवजीवन ने अपनी तैयारी नही छोड़ी ओर उनके बांये हाथ से इंजेक्शन, सलाइन चढ़ रहा था (दांया हाथ छूने को उन्होंने सिस्टर को मना किया था), ओर वे अपने दांये से उत्तर लिख रहे थे. कुछ समय उनके शरीर ने भले ही उनका साथ नहीं दिया परंतु नवजीवन मन से अभी भी नहीं हारे थे.

जब वे बीमार थे तो उस समय उनकी भांजी ने उनकी तैयारी के लिए नोट्स बनाए. उनकी छोटी बहन ने उन्हें यू ट्यूब पर तैयारी के लिए वीडियो सुनाए और खुद भी सुनकर उनके द्वारा कहे अनुसार शॉर्ट नोट्स भी तैयार किए. यही नहीं उनके दोस्तों ने भी उनका बहुत साथ दिया ओर किसी दोस्त ने फोन पर पढ़ाया तो किसी ने अपने नोट्स उनके साथ शेयर किए. कुछ इस प्रकार से नवजीवन ने अस्पताल की टेबल पर लगे किताबों के अंबार के बीच तैयारी की.

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ज्योतिषि ने कहा तुम कलेक्टर नही बन सकते  

नवजीवन पवार अपने दोस्तों के द्वारा अधिक जिद करने पर एक ज्योतिषी के पास चले गए. उस ज्योतिषी ने उनका हाथ देखकर कहा कि तुम 27 साल के पहले तो कलेक्टर बन ही नहीं सकते और तूम यहाँ पर पढ़ने नहीं मस्ती करने के लिए आये हो. नवजीवन पवार ने जब अपने बारे में यह सुना तो उनका फस्ट्रेशन चरम पर पहुंच गया क्योंकि उन्हें पहले से ही यह लग रहा था कि उनकी बीमारी ने उनका बहुत समय ख़राब कर लिया है.

नवजीवन पवार पहले से ही अपनी सफलता को लेकर आशंकित थे उस पर ज्योतिषी के इस कथन, पर वे कुछ नहीं कर सकते थे. काफ़ी सोच-विचार के बाद अपने मन को समझाने के लिए वे अपने टीचर के पास गए जिन्होंने उन्हें समझाया ओर हौसला बंधाया व पीठ पर हाथ रखकर कहा कि तुम एक दिन बहुत ही अच्छे ऑफिसर बनोगे.

टीचर द्वारा कही गई इस बात से उन्हें थोड़ा सुकून मिला. दरअसल डेंगू होने और अस्पताल पहुंचने के बीच नवजीवन के जीवन में दो बुरी घटनाएं और भी घटित हो चुकी थी. एक बार तो उन्हें कुत्ते ने काट लिया था और दूसरी बार उनका मोबाइल चोरी हो गया था परंतु नवजीवन ने इसके बावजूद अपना संयम बनाए रखा और सिर्फ अपनी परीक्षा पर फोकस किया. उन्हें बस किसी भी प्रकार से यूपीएससी परीक्षा में सफल होना था.

इस डायलॉग से मिलती है आगे बढ़ने की प्रेरणा

नवजीवन पवार कहते हैं कि उनके जीवन में जो भी समस्याएं उनके सामने आइ उन्होंने सिर्फ़ एक मूवी का यह डायलॉग हमेशा अपने मन में याद रखा कि “अगर किसी चीज को पूरे दिल से चाहो तो पूरी कायनात तुम्हें उससे मिलाने में जुट जाती है.” उन्होंने इस बात पर भरोसा करते हुए शुरू से लेकर अंत तक कभी हार नहीं मानी और बुरे से बुरे हालात में भी कोशिश करना नही छोड़ा.

नवजीवन पवार कहते हैं कि जब वे अस्पताल पहुंच गए ओर जब उन्हें कुत्ते ने काट लिया या जब मोबाइल चोरी हुआ ओर सबसे बड़ी निराश करने वाली बात तो यह थी की जब ज्योतिषी ने उनसे कहा कि तुमसे न हो पाएगा तो इन सब मौकों पर वे चाहते तो बड़ी ही आसानी से हार मानकर या दुखी होकर बैठ सकते थे.

परंतु उन्हें अपने पिता की बात याद थी कि या तो लड़ना है या रोना है, इसलिए उन्होंने हमेशा पहला विकल्प चुना. नवजीवन पवार कहते हैं विश्व का कोई भी ज्योतिषी आपका भविष्य नहीं लिख सकता परंतु आप खुद अपना भविष्य अवश्य लिख सकते हैं.

इसलिए आपके सामने जीवन में कितनी भी परेशानियां क्यों न आ जाएं पर कभी भी घबराएं नहीं, ओर उनका डटकर सामना करें. रोने से आपको कभी भी कुछ हासिल नहीं होता बल्कि कोशिश करने से होता है. नवजीवन पवार ने अंततः साल 2018 की परीक्षा में सफलता हासिल करते हुए आईएएस ऑफ़िसर बने.

ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.

तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…

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