DR. KUMAR BAHULEYAN SUCCESS STORY : भूख ओर गरीबी के असली मायने आपको वही व्यक्ति बताया सकता है जिसने इस परिस्थिति को स्वयं अनुभव किया है ऐसी ही कहानी है DR KUMAR BAHULEYAH (डॉक्टर कुमार बहुलेयन) जो घर के आर्थिक हालात खराब होने के कारण अपने बचपन मे गटर का पानी पीने के लिए मजबूर थे, किन्तु उन्होंने न सिर्फ गरीबी से लड़ाई जीती बल्कि अपने लिए एक बेहतर कल की शुरुआत भी की.
हर व्यक्ति अपनी जिंदगी मे सफलता प्राप्त करना चाहता है ओर इसके लिए कोई व्यक्ति ईमानदारी ओर संघर्ष का रास्ता चुनता है तो कोई व्यक्ति बेईमानी ओर झूठ का. लेकिन कुमार बहुलेयन ने अपने लिए संघर्ष ओर ईमानदारी का रास्ता चुना.
गरीबी से देश के प्रसिद्ध न्यूरोसर्जन तक का सफर
कुमार बहुलेयन की कहानी बाकी सब कहानियों से अलग है, आप जब भी किसी सफेद कोर्ट पहने हुए डॉक्टर को देखते है तो सबसे पहले आपके मन मे यही खयाल आता है की वह एक अच्छी ओर पैसे वाली फॅमिली से होगा किन्तु बहुलेयन ने इस कहावत को गलत साबित करते हुए अपनी गरीबी से संघर्ष करते हुए देश के प्रसिद्ध न्यूरोसर्जन तक का सफर तय किया है.
बहुलेयन के जीवन मे एक समय ऐसा भी था तब उनके पास अपना तन ढंकने तक के लिए पैसे नहीं होते थे. किन्तु उनके संघर्ष ओर डॉक्टर बनने तक के सफर की कहानी भी बहुत ही दिलचस्प ओर हौंसलों वाली है.
DR. KUMAR BAHULEYAN का बचपन
डॉक्टर कुमार बहुलेयन का जन्म एक हरिजन परिवार में हुआ था, उनका गाँव देश के पिछड़े इलाकों में आता था जहाँ पर बिजली, पीने के साफ़ पानी, शौचालय, स्कूल और अस्पताल जैसी कोई सुविधा नहीं थी.
डॉक्टर बहुलेयन के पिता मजदूर थे इस वज़ह से उनके घर की आर्थिक हालत बहुत ज्यादा खराब थी. उनके पिता को जब कभी काम मिलता था तो परिवार के लिए एक वक़्त की रोटी का बंदोबस्त हो जाता, वरना कई दिनों तक भूखे पेट रातें गुजारनी पड़ती. डॉक्टर कुमार के परिवार और गाँव वालों के हालात इतने बुरे थे कि पीने का साफ़ पानी न मिलने पर उन्हें गटर का पानी पीकर प्यास बुझानी पड़ती थी.
भुखमरी और गंदे पानी की वज़ह से खोए अपने भाई-बहन
एक गरीब व्यक्ति की जिंदगी कैसी होती है, यह बात डॉक्टर कुमार से बेहतर कोई नहीं समझ सकता. क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में भूख और प्यास की तड़प को बहुत करीब से महसूस किया है, वहीं कई दिनों तक भूखे रहने और गटर का गंदा पानी पीने की वज़ह से अपने 3 भाई-बहनों की मौत का ग़म भी झेला है. यहा तक की ख़ुद डॉक्टर कुमार ने भी अपना बचपन दूषित पानी पीने की वज़ह से होने वाली हैजा, चेचक और टाइफाइड जैसी गंभीर बीमारियों से जूझते हुए बिताया है.
क्योंकि उनके गाँव मे खाने पीने के सामे के साथ-साथ अस्पताल भी नहीं था. गाँव की हालत इतनी खराब थी की जिस व्यक्ति का शरीर बीमारी को झेल जाता था वह व्यक्ति बच जाता ओर जिसका शरीर बीमारी को सहन नहीं कर पाता वह व्यक्ति मर जाता था.
DR. KUMAR BAHULEYAN की EDUCATION
डॉक्टर कुमार को बचपन से ही पढ़ने का शौक था, उनकी इसी रुचि को देखते हुए उनके पिता जी ने एक छोटी जाति के टीचर से कुमार को पढ़ाने की गुजारिश की. डॉ. कुमार ने उन्हीं शिक्षक के जरिए शुरूआती स्कूल शिक्षा प्राप्त की और इसी शिक्षा से उनकी ज़िंदगी को एक नई दिशा प्राप्त करने में सफलता हासिल हुई. डॉक्टर कुमार के शिक्षक उन्हें किताबी ज्ञान के साथ-साथ जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते थे और कई बार ज़रूरत पड़ने पर उन्हें आर्थिक सहायता भी देते थे.
अपनी मेहनत और शिक्षक के सही मार्गदर्शन के कारण ही डॉक्टर कुमार ने ईसाई मिशनरियों द्वारा चलाए जा रहे मेडिकल कॉलेज में एडमिशन प्राप्त करने मे सफलता सफलता प्राप्त की. ओर इस प्रकार कॉलेज से डॉक्टर कुमार ने मेडिकल की पढ़ाई पूरी की, कॉलेज में अच्छे अंकों से पास होने पर उन्हें सरकार की तरफ़ से न्यूरोसर्जन की पढ़ाई के लिए स्कॉटलैंड भेजा गया.
डॉक्टर कुमार ने इस अवसर का फायदा उठाते हुए एक नई आशा और उम्मीदों के साथ स्कॉटलैंड में न्यूरोसर्जन की पढ़ाई करते हुए 6 साल मे अपनी डिग्री प्राप्त की ओर वापस अपने देश भारत लौट आए. किन्तु यहा भी उन्हे कठिनाई हुई, भारत आने के बाद उन्हें न्यूरोसर्जन की नौकरी नहीं मिली, क्योंकि उस समय हमारे देश में न्यूरोसर्जिकल का क्षेत्र सीमित था.
विदेश में नौकरी करते हुए देश का नाम रोशन किया
भारत में नौकरी न मिलने की स्थिति में डॉक्टर कुमार फिर से दूसरे देश कनाडा चले गए और वहाँ कुछ समय तक न्यूरोसर्जन के रूप में नौकरी की, हालांकि इसके बाद में वह न्यूयॉर्क चले गए जहा पर वे अल्बेनी मेडिकल कॉलेज में काम करने लगे. यहीं से डॉक्टर कुमार के करियर की असल शुरूआत हुई और इसके बाद वे न्यूयॉर्क में ही बस गए. बाद मे साल 1973 में डॉक्टर कुमार ने प्रसिद्ध बफैलो यूनिवर्सिटी में बतौर न्यूरोसर्जन एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर काम किया.
डॉक्टर कुमार ने इस पद पर रहते हुए न सिर्फ़ अपनी अलग पहचान बनाई, बल्कि बेशुमार पैसा भी कमाया. हालांकि कई सालों के बाद डॉक्टर कुमार ने फिर से अपने गाँव लौटने का फ़ैसला किया, जब डॉक्टर कुमार अपने गाँव फिर से पहुँचे, तो उन्हे वहाँ की दयनीय हालात देखकर बहुत बुरा लगा. ओर डॉक्टर कुमार की आंखों के सामने उनका बचपन एक बार फिर दौड़ने लगा, लेकिन इसके बाद उन्होंने अपने गाँव की स्थिति बदलने का संकल्प किया.
DR. KUMAR BAHULEYAN ने बदल दी गाँव की सूरत
डॉक्टर कुमार ने गाँव मे पहुचते ही सबसे पहले अपने गाँव में स्वास्थ्य हालातों को सुधारने का फ़ैसला किया, क्योंकि उन्होंने बचपन में अपने तीन भाई बहनों को दम तोड़ते हुए देखा था, ओर वे नहीं चाहते थे की किसी ओर परिवार के साथ भी ऐसा हो ओर इसके तहत उन्होंने साल 1993 में बहुलेयन चैरिटेबल फाउंडेशन की स्थापना की, इसमे छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं के इलाज़ के लिए पूरी सुविधाए मौजूद थी. डॉक्टर कुमार ने अपने गाँव की स्थिति को सुधारने के लिए ओर भी कई अहम क़दम उठाए और इसी को ध्यान मे रखते हुए साल 2007 में गाँव के विकास के लिए 130 करोड़ रुपए दान करने का ऐलान किया. डॉक्टर कुमार ने उन पैसों के जरिए गाँव में शौचालय, सड़क निर्माण और पीने के साफ़ पानी सम्बंधी ज़रूरतों को पूरा किया गया, ओर उनका यह काम अभी भी जारी है.
ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.
तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…