“सफलता पाने के लिए केवल स्किल्स से कुछ नहीं होता उस पर एक्शन भी लेना होता है”
अरोकियास्वामी वेलुमणि (AROKIASWAMY VELUMANI) का यह सफर बहुत मुश्किलों भरा था जहा एक समय ऐसा भी था की उनके पास भूख मिटाने के लिए खाना नहीं था, और पहनने को कपडे नहीं थे, और पैसो की तंगी का मंजर तो यह था की उन्हें दो वक़्त की रोटी के लिए भी पिता के साथ खेतो में काम करना पड़ता था.
ऐसी अवस्था में रहकर उन्होंने अपनी मेहनत के बल पर जीवन में वो मुकाम हासिल कर दिखाया जो अन्य लोगो के लिए दिवास्वपन मात्र है.
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AROKIASWAMY VELUMANI का जन्म ओर बचपन
अरोकियास्वामी वेलुमणि का जन्म तमिलनाडु के कोयम्बटूर के पास एक छोटे से गांव पेनुरी में हुआ था, अपने सभी भाई-बहनो में वे सबसे बड़े थे उनके बाद दो भाई और एक बहिन थी.
उनके पिता एक धरतीपुत्र किसान थे जिनके पास स्वयं की जमीन नहीं थी वे दूसरे साहूकारों की जमीन पर खेती का कार्य करते थे जहा से केवल मात्र परिवार का पोषण हो सकता था लेकिन अन्य जरूरते पूरी नहीं हो पाती थी.
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संघर्ष ओर ग़रीबी का सामना
पिता को बचपन से ही मजदूरी और जीवन का संघर्ष करते हुए देखकर उनके मन में ख्याल आता था की कैसे भी हो वे बड़े होकर कुछ ऐसा जरूर करना चाहेंगे की इन सभी समस्याओ से छुटकारा मिल पाए.
अरोकियास्वामी वेलुमणि की स्कूली शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल से हुई. आज भी वो दिन याद करते हुए अरोकियास्वामी वेलुमणि बताते है की उनके पास एक ही शर्ट हुआ करती थी और जब भी वो धुलती थी तब उन्हें उस दिन स्कूल सिर्फ हाफ पेंट में ही भेज दिया जाता था.
बचपन में अरोकियास्वामी वेलुमणि और उनके भाई-बहनो को खाना भी भरपेट नहीं मिल पाता था, घर में बड़े होने के कारण छोटे का ख्याल रखना होता था की उनके लिए भी खाना बचा रह सके इस वजह से कई बार भूख होते हुए भी रोटी नसीब नहीं होती थी.
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जीवन के प्रति सकारात्मक नज़रिया
वेलूमनी बचपन से ही जीवन के प्रति एक आशावादी नजरिया रखते थे जहा उन्हें गिलास हमेशा आधा भरा ही नज़र आता था ना की आधा खाली, वे हमेशा जीवन में कुछ अच्छा ही तलाशते रहते थे.
इसी तरह जीवन में संघर्ष करते हुए जब वे बड़े हुए तो परिवार को आर्थिक मदद देने के लिए वर्ष 1978 में अपने करियर की शुरुआत “जैमिनी कैप्सूल्स” जो एक टेबलेट बनाने की कंपनी थी वहा पर मात्र 150 रुपये की तनख्वाह पर केमिस्ट के तौर पर पहली नौकरी मिली. परन्तु कंपनी चार साल बाद ही बंद हो गयी उनके सामने फिर से रोजगार की समस्या खड़ी हो गयी, इसी जदोजहद में वर्ष 1982 में उन्होंने “भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर” (BARC) में साइंटिफिक असिस्टेंट की नौकरी के लिए अर्जी लगाईं जहा पर उन्हें नौकरी मिल गई.
यहाँ पर उनकी पगार बढ़ कर 880 रुपया प्रति महीना हो गयी और वे इस सैलरी में बड़े अच्छे से जीवन का आनंद लेते हुए परिवार का पालन-पोषण कर रहे थे, अपनी जॉब करते हुए ही उन्होंने अपनी पढाई को जारी रखते हुए अपना पोस्ट-ग्रैजुएशन किया और फिर आगे की पढाई मुम्बई-यूनिवर्सिटी से करते हुए थायरॉइड बायोकेमिस्ट्री में डॉक्टरेट किया.
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जब नौकरी छोड़ बिजनेस शुरू किया
अरोकियास्वामी वेलुमणि की ज़िन्दगी अब बड़े आराम से गुजर रही थी उन्हें नौकरी करते हुए भी लगभग 13 साल हो गए थे जहा उनकी सैलरी भी अच्छी हो गयी थी लेकिन उन्हें लगने लगा की वे कम्फर्ट जोन में जी रहे है. और उन्होंने बचपन में पिता और खुद के कठिन दौर को याद करते हुए सरकारी नौकरी को छोड़ स्वयं का बिज़नेस करने की ठानी.
अरोकियास्वामी वेलुमणि के इस कदम से परिवार वाले नाराज़ हुए लेकिन उनकी पत्नी ने साथ दिया और उन्होंने अपने पी एफ फण्ड से पैसा निकलकर मात्र एक लाख की पूंजी के साथ वर्ष 1995 में साउथ मुम्बई के बायकुल्ला में 200 स्क्वायर फ़ीट के गेराज में “थायरोकेयर” की शुरुआत की.
बिज़नेस के स्टार्टिंग में वे खुद लैब्स और हॉस्पिटल में जाकर सैंपल लेकर आते थे. शुरू में ज्यादा सैंपल भी नहीं मिल पाते थे शुरूआती मुश्किलों को देख कर एक बार लगा की कही कुछ गलत कदम तो नहीं उठा लिया गया है लेकिन हिम्मत ना हारते हुए वे लगे रहे. धीरे-धीरे उनके यहाँ पर सैम्पल्स की संख्या बढ़ने लगी और वर्ष 1998 तक आते आते उनके यहाँ पर 15 स्टाफ काम करने लगे और टर्न ओवर बढ़ कर हो गया एक करोड़ के पार.
इसके बाद उन्होंने अपनी सेवाओं में विस्तार करते हुए वे थायरॉइड टेस्टिंग के अलावा डायबिटीज, आर्थराइटिस जैसे और भी बहुत सारे ब्लड टेस्ट करने लगे, आज उनकी लेब में लगभग 50,000 सैम्पल्स प्रतिदिन आते हैं, जिसमें 80 फीसदी टेस्ट थायरॉइड के होते हैं.
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कंपनी की वेल्यू है 3600 करोड़ से अधिक
आज अरोकियास्वामी वेलुमणि की कंपनी “थायरो केअर टेक्नोलॉजीज़ लिमिटेड” का कुल बाजार पूंजीकरण 3600 करोड़ से ज्यादा का है इसके साथ ही उन्होंने अपनी कंपनी को भारतीय शेयर बाजार में लिस्टेड करवाते हुए
आईपीओ लेकर आये जिसकी सफलता का अनुमान किसी को नहीं था उनका यह आईपीओ 70 गुना से ज्यादा ओवर सब्सक्राइब हुआ था.
इसके साथ ही आज थायरो केअर की पुरे भारत में 1200 से ज्यादा फ्रैंचाइज़ी और 1000 स्टाफ के साथ काम कर रहा है. जहा पर स्टाफ का औसत सालाना वेतन तीन लाख के पार है. वेलुमनी के पास कंपनी के 65 फीसदी शेयर हैं, 20 फीसदी शेयर सामान्य लोगों के पास और 15 फीसदी शेयर प्राइवेट इक्विटी के पास है.
अंत में बस इतना ही की अरोकियास्वामी वेलुमणि की कहानी सफलता के शिखर पर पहली सीढ़ी से चढ़ते हुए शिखर पर पहुंचने की दास्ताँ है जहा हर इंसान को पहुंचने का हक़ है जरुरत है तो केवल वेलूमनी जैसे आशावादी नज़रिये की.
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तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…