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SABHAPATI SHUKLA : गन्ने की जूस में दिखा बिज़नेस आइडिया, गांव में ही खोल दी इंडस्ट्री, आज है करोड़ों में कारोबार

“जिसके पास धैर्य है वह जो चाहे वो पा सकता है ।”

SUCCESS STORY OF SABHAPATI SHUKLA : वर्तमान समय में हमारे देश में युवाओं के बीच बढ़ती हुई बेरोजगारी एक जटिल समस्या के रूप में उभर कर सामने आ रही है. इसी बेरोजगारी से त्रस्त युवा गाँव को छोड़कर रोजगार की तलाश में शहरों की ओर कूच कर रहे हैं. हमारे देश में बेरोज़गारी का आलम यह है की पढ़े लिखे ओर डिग्रीधारी युवा वर्ग भी दो वक्त की रोटी के लिए मजदूरी तक करने को मजबूर है.

वहीं इन युवाओं से विपरीत कुछ लोगों ने अपने गांव की मिट्टी में ही सफलता का इतना शानदार बीज बोया कि रोजगार की तलाश में गांव छोड़ शहर की ओर पलायन करने का विचार कर रहे युवाओं को एक बार फिर से अपने फ़ैसले के बारे में सोचने को मजबूर कर दिया.

आप लोगों ने अब तक कौड़ियों से करोड़पति बनने वाले कई किसानों की कहानियाँ अब तक पढ़ी होगी लेकिन आज की यह कहानी उन सब कहानियो में से सबसे अलग है. यह कहानी एक ऐसे किसान की जीवनगाथा है जिसने गन्ने के पेड़ से ही एक बिज़नेस आइडिया की खोज कर ली. और फिर अपने गांव में ही अपने कारोबार की नींव रखते हुए करोड़ों रुपयों का साम्राज्य स्थापित किया ओर इसी के साथ पूरे गांव के लोगों के लिए तरक्की का रास्ता भी खोल दिया.

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SABHAPATI SHUKLA

SABHAPATI SHUKLA के आयडिया ने बदल दी ज़िंदगी

राष्ट्रीय राजमार्ग 28 पर बस्ती से 55 किलो मीटर दूरी पर बसा हुआ गांव केसवपुर कई दशकों से बुनियादी जरूरतों के अभाव से जूझ रहा था. यहां के लोग गाँव में रोज़गार के साधन उपलब्ध नही होने की वजह से रोजगार की तलाश में बड़े शहरों की तरफ पलायन कर रहे थे. तभी सभापति शुक्ला (SABHAPATI SHUKLA) नाम के एक किसान के दिमाग़ में आए एक आयडिया ने पूरे गांव के लोगों के लिए तरक्की का नया रास्ता खोल दिया.

साल 2001 में पारिवारिक कलह की वजह से सभापति शुक्ला ने बहुत सोच-विचार करने के बाद घर से अलग होने का निश्चय किया. अपने इस निर्णय के बाद उन्होंने अपनी पुस्तैनी जमीन में एक छोटी सी झोपड़ी डाल कर नए सिरे से अपनी जिंदगी की शुरुआत करने की सोची. सभापति शुक्ला ने रोजी-रोटी के लिए शहर की ओर पलायन करने की बजाय ग्रामीण बैंक से लोन लेकर अपने खेत में ही एक गन्ने का क्रशर लगाया.

साल 2003 तक तो उनका वह व्यवसाय ठीक से चला लेकिन उसके बाद उन्हें इसी बिजनेस में दोगुनी हानि होने लगी. सभापति शुक्ला ने हताशा के इन्हीं दिनों में एक रात अपनी पत्नी को गन्ने की बोझ में आग लगाने के लिए कह दिया. लेकिन उनकी पत्नी ने आग लगाने की बजाय उनसे कहा की आप ऐसा करो की गन्ने का रस निकालकर उससे सिरका बनाकर लोगों में बाँट दो.

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पत्नी की बात मानते हुए गन्ने के सिरके से शुरू किया नया बिजनेस

उस घटना को याद करते हुए सभापति शुक्ला बताते हैं कि जब मैंने अपनी पत्नी से गन्ने के डेर में आग लगाने को कहा तो मेरी पत्नी ने मुझसे कहा गन्ना को जलाते क्यों हो उसकी बजाय उसके रस से सिरका बनाकर लोगों में बांट देना उचित होगा. उन्होंने अपनी पत्नी कि बात मानते हुए सिरका निकाला ओर उन्हें लोगों में बाँट दिया. घर में बनें सिरके का स्वाद लोगों को इतना पसंद आया कि सब लोग दोबारा से उस सिरके की डिमांड करने लगे.

तभी सभापति शुक्ला को गन्ने के सिरके में एक बड़ी कारोबारी संभावना दिखाई दी और उन्होंने अपनी ढृढ़ इच्छा शक्ति से व्यापक पैमाने पर सिरका बनाने का फैसला कर लिया. सभापति शुक्ला ने सिरके के इस बिज़नेस की शुरुआत अपने एक पुराने क्लाइंट के पास एक लीटर सिरका बेजकर की. उसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे आस-पास की छोटी-छोटी दुकानों तक अपने कारोबार का विस्तार किया.

धीरे-धीरे जिन भी दुकानों में इनका सिरका गया वहां से उस सिरके की डिमांड बढ़ती गई. बस फिर क्या था, सभापति शुक्ला जब से इस व्यवसाय से जुड़े तो उसके बाद से उन्होंने फिर कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा. आज वह लाखों लीटर सिरके का निर्माण करते हुए उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, पंजाब, बंगाल, दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश समेत अन्य कई राज्य में इसकी सप्लाई करते हैं और इससे उन्हें करोड़ों रुपये का वार्षिक टर्न ओवर भी हो रहा है.

शुक्ला बताते हैं कि उनके द्वारा 200 लीटर सिरका का निर्माण करने में करीबन दो हजार रुपये की लागत आती है और इस सिरके की बिक्री से 2 हजार रुपये प्रति ड्रम की बचत होती है.

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आचार के साथ करते है डेयरी का बिजनेस

सिरके की अच्छी बिक्री के बाद से उत्साहित होकर सभापति शुक्ला ने आचार आदि भी बनाने शुरू कर दिए. सभापति शुक्ला ने आज अपने इस कारोबार के द्वारा गांव के सभी बेरोजगार लोगों को रोजगार भी उपलब्ध करवाया है. यह सभापति शुक्ला के ही कठिन परिश्रम का फल है कि दो जून की रोटी के लिए संघर्ष करने वाले ग्रामवासी आज फक्र से अपना सिर ऊंचा कर जीवन जी रहे हैं.

इतना ही नहीं आज राष्ट्रीय राजमार्ग 28 पर उनके दस हजार स्क्वायर फिट की जमीन में उनकी फैक्ट्री चलती है. फैक्ट्री के पीछे के ज़मीन के एक टुकड़े में वे खेती भी करते हैं. इसी के साथ उनकी आधा दर्जन दुधारू पशुओं की एक छोटी सी डेयरी भी है. उन्होंने अपने बिजनेस का विस्तार करते हुए हाईवे पर एक रेस्टोरेंट भी खोला है.

सभापति शुक्ला की इस सफलता पर गौर करें तो हमें यह सीखने को मिलता है कि हमारे आस-पास भी वो सभी तमाम संभावनाएं मौजूद है जो हमारी किस्मत को पूरी तरह से बदलने की ताकत रखती है. अगर किसी इंसान के पास बुलंद हौसला और संभावनाओं को परखने की काबिलियत हो तो इस दुनिया में उसे सफल होने से कोई भी ताक़त नहीं रोक सकती.

ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.

तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…

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