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RAMESH AGARWAL : एक रुपये से शुरू होकर करोड़ों रुपयों की एक नामचीन कंपनी बनने की कहानी

“शानदार जीत के लिए, बहुत मेहनत करनी पड़ती है।”

RAMESH AGARWAL SUCCESS STORY : अगर कोई व्यक्ति आपसे कहे कि किसी कंपनी की एक रुपये से शुरुआत होकर वह 450 करोड़ की एक नामचीन ब्रांड में बदल गई है तो आपको उस व्यक्ति की बात पर बिलकुल भी विश्वास नहीं होगा.

ऐसा सिर्फ़ आपके साथ ही नही है अगर किसी से भी यह बात कही जाए तो उसके लिए इस बात पर यक़ीन करना मुश्किल होगा की किसी कंपनी की शुरुआत 1 रुपए से भी हो सकती है.

किंतु एक ऐसा वक्ति भी है जिसने इस सपने को हकीकत में तब्दील कर दिखाया है. रमेश अग्रवाल (RAMESH AGARWAL) नाम के एक भूतपूर्व भारतीय वायुसैनिक ने अपनी दूरदर्शी, सोच के दम पर सफलता की ऐसी मिसाल क़ायम की है जो लोगों की सोच से भी बाहर की बात है.

साल 1987 में वायुसेना की नौकरी छोड़कर मात्र 1 रुपये से शुरुआत करते हुए देश की एक नामचीन कूरियर कंपनी की शुरुआत करने वाले रमेश अग्रवाल की सफलता उनके सपनों को हकीकत में बदलने की जीवंत कहानी है.

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RAMESH AGARWAL

कैसे हुई “अग्रवाल पैकर्स एंड मूवर्स” शुरुआत

साल 1987 में रमेश अग्रवाल ने अपनी भारतीय वायुसेना की नौकरी छोड़ दी. जब उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ी तो उस समय उनके पास सिर्फ 1 रुपया था. ऐसा इसलिए क्योंकि रमेश अग्रवाल अपनी सारी संपत्ति पहले ही गरीब और जरुरतमंद लोगों के नाम पर कर चुके थे. जब उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ी तो उसके बाद उनके मन में खुद का छोटा सा कारोबार शुरू करने की इच्छा हुई.

उन्होंने अपने मन की इच्छा से अपने प्यारे मित्र सुभाष गुप्ता को अवगत करवाया. उस समय रमेश अग्रवाल के सामने कारोबार खड़ा करने के लिए सबसे बड़ी चुनौती पूंजी को लेकर थी. क्योंकि किसी भी कारोबार की शुरुआत करने के लिए पूंजी सबसे पहले चाहिए क्योंकि शून्य से कैसे कोई कारोबार शुरू हो सकता है? ऐसे समय में उनके मित्र गुप्ता ने उन्हें पैकर्स एंड मूवर्स कंपनी शुरू करने की सलाह दी.

रमेश अग्रवाल ने अपने मित्र की बात मानते हुए सिकंदराबाद के एक छोटे से ऑफिस से “अग्रवाल पैकर्स एंड मूवर्स” की शुरुआत की. रमेश अग्रवाल को शुरुआत में इस छोटे से कमरे का किराया चुकाने के लिए भी काफी मशक्कत का सामना करना पड़ा था. रमेश अग्रवाल स्वयं भी वायुसेना में काम कर चुके थे ओर इस कारण से उन्हें एक जगह से दूसरी जगह पर ट्रांसफ़र होने पर सामान के शिफ्ट होने के दौरान होने वाली परेशानियों का अच्छी तरह से अनुभव था.

रमेश अग्रवाल ने लोगों को होने वाली इस परेशानी को दूर करने को ही अपने बिज़नेस का पहला उद्येश्य बना लिया. अग्रवाल पैकर्स एंड मूवर्स ने सबसे पहले एयरफोर्स के लिए ही काम करना शुरू किया और उन्होंने इस काम को करने के लिए एयरफोर्स के ही ट्रक्स का इस्तमाल किया.

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4,000 रूपये का लोन लेकर कंपनी को आगे बढ़ाया

रमेश अग्रवाल की कंपनी “अग्रवाल पैकर्स एंड मूवर्स” को भारतीय वायु सेना के भीतर तो काम मिल चुका था किंतु इसके बाहर कंपनी का विस्तार के लिए उन्हें कुछ पैसों की जरुरत थी. रमेश की कंपनी की उस समय शुरुआत ही हुई थी इस कारण से उनकी कंपनी को प्रचार की आवश्यकता थी ओर उन्हें प्रचार के लिए सर्वप्रथम 4,000 रूपये की सख्त ज़रूरत थी.

लेकिन उस समय में 4000 रुपए की राशि कोई मामूली राशि नहीं थी. उस समय में रमेश के दोस्त विजय और उनकी माँ ने उन्हें मदद की पेशकश की. रमेश ने उनकी मदद लेना स्वीकार कर लिया ओर मदद के बदले में उन्होंने विजय को अपनी कंपनी की संस्थापक टीम का हिस्सा बना दिया.

रमेश अग्रवाल इस बारे में बताते हैं कि पहले चार सामान को उनके गंतव्य तक पहुँचाया उससे उनके ऑफिस का शुरुआती खर्च निकल जाता था. शुरुआती दौर में उन्हें 8,000 रुपये का लाभ हुआ, जिसमे से उन्होंने 4,000 रुपये विजय की माताजी को वापस लौटा दिये, और बचे हुए 4000 की राशि को ऑफिस चलाने में खर्च किया.

“अग्रवाल पैकर्स एंड मूवर्स” (agarwalpackers) की उस समय शुरुआत ही हुई थी ओर शुरुआती समय में ही कंपनी के लिए नए आयाम पर स्थापित करना रमेश अग्रवाल के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण था. उस समय में उन्हें ना सिर्फ कंपनी को सुचारू ओर बेहतरीन रूप से चलाना था बल्कि उस समय मौजूद  बाज़ार में अपने प्रतिद्वंदी से भी बेहतर करना था.

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कस्टमर की आवश्यकता को प्राथमिकता देते हुए चड़ी सफलता की सीढ़ियाँ

रमेश अग्रवाल का मानना है कि लोगों को लुभावने ओर ग़लत विज्ञापनों से अपनी ओर आकर्षित करने से बेहतर है कि आप उन्हें उच्च गुणवत्ता की सुविधा प्रदान करें. यदि आप अपने ग्राहक को आपके द्वारा दी जाने वाली सेवाओं से संतुष्ट करने में सफल हो जाते तो फिर उस स्थिति में आपका प्रचार खुद-बखुद शुरू हो जाता है.

किसी भी व्यक्ति की ट्रांसफ़र होने पर उनके घर के सामान को स्थानांतरित करने के वक़्त इनकी कंपनी इस बात पर खासा ध्यान रखती है कि उस घर की हर एक नई-पुरानी चीजों का अच्छे से स्थानातरण हो. रमेश की कंपनी का मानना है कि सामान के साथ-साथ इंसान अपनी यादों को भी दूसरी जगह पर स्थानांतरित करता है, और लोगों की यादों के साथ भावनाएँ हमेशा जुड़ीं रहती है.

उदाहरण – जैसे यदि किसी मकान मालिक के पास 30 साल पुराना रेडियो है ओर वह वर्तमान में बेकार हो चुका है और अब उसकी कीमत शून्य है, लेकिन अब भी वह इतना कीमती है कि इसे पैक किया गया है, ऐसी स्थिति में हो सकता है कि वह उसके पिता या उसके दादा की आख़िरी निशानी हो जिसे वह संभालकर रखे हुए है.

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साल 1993 रहा टर्निंग पॉइंट

साल 1993 “अग्रवाल पैकर्स एंड मूवर्स” कंपनी के लिए टर्निंग पोइंट रहा क्योंकि इस साल उनकी कंपनी ने जीई कैपिटल की मदद से भारी मात्रा में ट्रक्स ख़रीदे और उसी के साथ राष्ट्रीय स्तर पर अपनी सेवाएं भी प्रारंभ की. इसी साल से उन्होंने अपने ग्राहकों को ओर अच्छी गुणवत्ता की सुविधा देने के लिए कई नए-नए प्रयास किये.

अगले साल 1994 में रमेश अग्रवाल ने अपने एक मित्र की सहायता से स्टील के बने हुए डब्बों को अपनी कंपनी के ट्रक में जुड़वाना चालू किया जो कि लोजिस्टिक बिज़नेस के लिए बहुत अच्छा कदम साबित हुआ.

उस समय सिमित संसाधन और कम लोगों के वजह से उन्हें लगभग 2,000 बॉक्स पैक में 18 घंटे लग जाते थे लेकिन आज रमेश अग्रवाल की कंपनी के पास लोगों की एक बड़ी फौज है. महज 10 लोगों की एक छोटी सी टीम से शुरू होकर आज यह कंपनी देश की एक अग्रणी ओर जाना-माना ब्रांड बन चुकी है. इतना ही नहीं वर्तमान समय में इनकी कंपनी का सालाना टर्नओवर 450 करोड़ के पार है.

हर सफल व्यक्ति की सफलता के पीछे एक कहानी होती है. लेकिन रमेश अग्रवाल की सफलता सिर्फ एक कहानी ही नहीं बल्कि उनकी कड़ी मेहनत, दृढ़-संकल्प और कभी ना हार मानने वाले एक जज्बे की मिसाल है. यह कहानी खुद पर कभी न टूटने वाले विश्वास का उदाहरण है जो हक़ीक़त में नई पीढ़ी के युवाओं के लिए एक मजबूत प्रेरणास्रोत है.

ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.

तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…

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