बीते कुछ समय से सूर्य में हलचलें अधिक बढ़ गई हैं। इस बारे में कहा जा रहा है कि हमारा सूर्य अपने 11 साल के सौर चक्र से गुजर रहा है। इस कारण से सूर्य में विस्फोट हो रहे हैं। कोरोनल मास इजेक्शन (CME) और सोलर फ्लेयर्स की घटनाएं सामने आ रही हैं। हालांकि हमेशा ऐसा नहीं होता है।
कई बार सूर्य की सतह पर मौजूद धब्बे पूरी तरह से गायब हो जाते हैं इस दौरान हमारे सौर मंडल का यह तारा हमारा सूर्य ‘सोया’ हुआ लगता है। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER), कोलकाता में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन स्पेस साइंसेज इंडिया के रिसर्चर्स ने इस बारे में कुछ दिलचस्प बातें बताई हैं। उन्होंने इस बारे में खुलासा किया है कि जब सूर्य में होने वाली गतिविधियां पूरी तरह से गायब हो जाती हैं, तब क्या होता है।
आईआईएसईआर के पीएचडी स्टूडेंट द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला है कि जब सूर्य में सभी गतिविधियां बंद हो जाती हैं, तब भी सूर्य के आंतरिक भाग में चुंबकीय क्षेत्र व्यस्त रहते हैं। हालांकि यह इतनी कमजोर होती है कि उसकी वजह से कोई सनस्पॉट नहीं बन पाता।
यह स्टडी रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी की मंथली नोटिस मैगजीन में पब्लिश हुई है। इस मैगज़ीन में पब्लिश हुए निष्कर्ष बताते हैं कि जब सूर्य ‘गहरी नींद’ में होता है, तब भी उसके ध्रुवीय और आंतरिक क्षेत्रों में लगातार मंथन होता है। सूर्य का इंटरनल डायनेमो मैकनिज्म जो सौर चक्र को बनाए रखता है, वह सूर्य के शांत रहते हुए भी लगातार अपना काम करता है।
शोध बताता है कि इससे पूर्व में भी कई बार सूर्य में होने वाली गतिविधियां अपने निचले लेवल पर रही हैं। इस पीरियड को ग्रैंड मिनिमम नाम से पुकारा जाता है। इस दौरान सोलर रेडिएशन में भी काफी कमी आ जाती है। खगोलविदों को पता चला है कि साल 1645 से 1715 के दौरान सूर्य में देखे गए स्पॉट की संख्या में बहुत अधिक कमी आ गई थी। ऐसा इससे पूर्व भी कई बार हुआ है।
यह स्टडी भविष्य में सूर्य से जुड़े हुए मिशनों के लिए मददगार हो सकती है। स्टडी में सूर्य के आंतरिक और ध्रुवीय क्षेत्रों पर फोकस किया गया है। दुनियाभर की एजेंसियां या तो सूर्य पर अपने मिशन भेज रही हैं या फिर उसकी तैयारी में जुटी हुई हैं। नासा का पार्कर सोलर प्रोब और यूरोप का सोलर ऑर्बिटर लगातार सूर्य पर नजर रखे हुए हैं।