AMAZING FACTS : आप अक्सर देखते होंगे की OLYMPIC में एथलीट्स मेडल जीतने के बाद अपने दांतों से काटते हुए नजर आते है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों किया जाता है.
AMAZING FACTS :
आधुनिक ओलंपिक गेम्स की शुरुआत 1896 में एथेंस से हुई थी. उस समय सिर्फ सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल ही दिए जाते थे.
आपने अक्सर देखा होगा की किसी ओलंपिक्स में मेडल जीतने के बाद एथलीट्स अपने मेडल को दांतों से काटते हुए नजर आते है. आजकल यह एक ट्रेडिशन बन गया है. लेकिन क्या आप जानते है की ओलंपिक्स में इसकी शुरुआत भी काफी दिलचस्प तरीके से हुई. इसके साथ यह बात भी दिलचस्प है कि ज्यादातर एथलीट ऐसा करते तो हैं, लेकिन इसके पीछे के कारण के बारे मे उन्हे भी जानकारी नहीं होती. तो आज हम आपको बताएंगे कि यह परंपरा कैसे शुरू हुई. ओर, मेडल को दांतों से काटने के पीछे की वजह क्या है?
मेडल को काटने की परंपरा कैसे शुरू हुई, ओर सिर्फ एथलीट ही ऐसा क्यों करते हैं, साथ ही जनेगे की इन मेडल के आकार और डिजाइन पर मुहर कौन लगाता है.
वजह जानने से पहले समझते है मेडल का इतिहास
ओलंपिक्स की गिनती विश्व के प्राचीन खेलों में की जाती है. शुरुआत दौर में एथलीट इसे सम्मान पाने के लिए खेलते थे. उस समय सिल्वर ओर ब्रॉन्ज मेडल नहीं होते थे. अगर ओलंपिक के सही मायने मे आधुनिक रूप की शुरुआत की बात करे तो वह एथेंस से 1896 में हुई. इसके शुरुआत मे सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल ही दिए जाते थे. गोल्ड मेडल की शुरुआत 1904 से हुई थी. यह गोल्ड मेडल ठोस होने के साथ अन्य दोनों मेडल के मुकाबले थोड़ा छोटा हुआ करता था. वर्तमान समय मे, मेडल कैसा होगा, यह कितना भारी होगा और इसकी डिजाइन कैसी होगी इसके बारे मे इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी ही तय करती है.
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कुछ इस प्रकार दांतों से काटते हैं मेडल
Anybody else with fillings cringe every time they see an Olympian bite their medal?#TokyoOlympics2021 pic.twitter.com/G5j694BYOU
— Kerri Johannson MD MPH (@KerriBerriKerri) July 23, 2021
समझिए,एथलीट क्यों काटते है मेडल को
स्पोर्ट्स कीड़ा की एक रिपोर्ट के अनुसार, मेडल को दांतों से काटने की शुरुआत के पीछे इसकी टेस्टिंग का संबंध है. उस समय इसे दांत से काटकर यह जांचा जाता था कि काही इसमें मिलावट तो नहीं की गई. खास तौर पर सोने के मेडल्स के साथ ऐसा किया जाता था, उस दौर में सोने को दूसरी कठोर धातुओं के साथ मिलाया जाता था ताकि इसे ओर अधिक सख्त बनाया जा सके.
मेडल के दाहिने हिस्से पर दांतों से काटने पर अगर निशान बन जाते थे तो यह साफ हो जाता कि मेडल में लेड या उसके जैसी धातुओं की मिलावट की गई है. एक असली मेडल हार्ड होता है और काटने के बावजूद उसके ऊपर पर निशान नहीं पड़ते.
यह तो थी मेडल के असली ओर नकली होने को पहचानने की बात. अब जानते है की खिलाड़ी ऐसा क्यों करते हैं?
ओलंपिक्स में मेडल जीतने के बाद जब फोटोग्राफर्स एथलीट से फोटो के लिए पोज देने के लिए कहते थे तो ज्यादातर एथलीट अपने मेडल को पकड़कर मुस्कुराते हुए फोटो खिंचाते थे. एक ही पोज होने के कारण जब फोटोग्राफर्स उनसे बार-बार पोज बदलने को कहते थे, तो आसपास कुछ भी न होने के कारण एक ही तरह ही तस्वीरें आती थी. बाद मे अलग पोज देने के लिए मेडल को दांतों से काटने की परंपरा शुरू हुई, इसका लक्ष्य केवल तस्वीरों में कुछ अलग ओर अनूठापन लाना था. तो कुछ इस तरह से मेडल को काटने की परंपरा शुरू हुई ओर यह आज भी जारी है.
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