“जिंदगी मे बड़ा कार्य वही व्यक्ति करते है जो बड़ा सपना देखते है”
LIBERTY SHOE COMPANY SUCCESS STORY : जिंदगी मे कुछ बड़ा करने के लिए पहले आपको बड़ा सपना देखना होगा फिर उस सपने को अपने लक्ष्य तक पहुचाने के रास्ते पर चलना होगा. बड़ा सपना तो हर व्यक्ति देखता है किन्तु उसे पूरा करने मे सफल होने वाले लोग कम ही होते है.
यह कहानी भी ऐसे दो भाइयों की है जिन्होंने अपने लिए पहले एक बड़ा लक्ष्य निर्धारित किया फिर उस लक्ष्य को पूरा करने के लिए कठिन मेहनत, द्रढ इच्छाशक्ति के साथ कभी हार न मानने के अपने एटीट्यूट के साथ एक ऐसी कंपनी की शुरुआत की जिसका कारोबार आज 20 से ज्यादा देशों मे फैला है.
यह बात सच है की कोई भी आइडीया कभी भी बड़ा नहीं होता है बड़ी होती है व्यक्ति की सोच की वह उसे पूरा करने के लिए कितना गंभीर है, इसी गंभीर सोच के साथ दो भाइयों ने एक ऐसे बिजनेस की शुरुआत की जिसके बारे मे लोगों ने शुरुआत मे उनका खूब मझाक उड़ाया किन्तु उन्होंने भी अपना मझाक उड़ाने वाले लोगों की बातों पर ठीक उसी तरह ध्यान नहीं दिया जैसे कोई हाथी कुत्तों के भोंकने पर नहीं देता है.
गुप्ता भाइयों का बचपन ओर संघर्ष
इस कहानी के दोनों पात्र हरियाणा से है जिन्होंने लिबर्टी शू कंपनी (LIBERTY SHOE COMPANY) की आधारशिला रखते हुए उसे इंटरनेशनल ब्रांड तक पहुंचाया. पीडी गुप्ता और डीपी गुप्ता आज भारतीय उद्योग जगत के जाने-माने चेहरों में से एक हैं. लेकिन इन दोनों गुप्ता भाइयों का बचपन हरियाणा के करनाल में एक मध्यम-वर्गीय परिवार में बीता.
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने खुद का कारोबार शुरू करने का प्लान बनाया किन्तु उनके सामने सबसे बड़ी मुश्किल पूंजी को लेकर थी. लेकिन उन्होंने सारे उपाय करने के बाद अंत में कुछ पैसे लोन लेकर करनाल के कमेटी चौक पर साल 1944 में पाल बूट हाऊस के नाम से एक जूते बनाने की दुकान खोली.
जब घर वालों ने किया इनके आइडीया का विरोध
दोनों भाइयों के जूते बनाने के इस आइडिया का सबसे पहले इनके परिवार वालों ने ही विरोध किया. लेकिन दोनों भाइयों ने किसी की फिक्र नहीं की और अपने आइडिया पर दिन-रात एक करते हुए काम करना शुरू कर दिया. लेकिन उस वक़्त इनके सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि मशीन नहीं होने के कारण इनके कारीगरों को हाथ से ही जूते बनाने होते थे.
गुप्ता बताते हैं कि उनके शुरुआती दिनों मे मोचीयों की मदद से पूरे दिन में सिर्फ चार जोड़ी जूते ही बन पाते थे और इन्हीं को बेच कर किसी प्रकार से उनका काम चलता था.
ऐसे एक छोटी सी दुकान से बनी एक (LIBERTY SHOE COMPANY) मल्टीनेशनल कंपनी
एक छोटी सी दुकान से शुरुआत करने वाले भाइयों ने 10 सालों तक पाल बूट हाउस को चलाने के वहां के लोकल बाज़ार में अच्छी पैठ जमा ली. किन्तु इसके बाद उन्होंने अपने कारोबार का विस्तार करने के उद्देश्य से पाल बूट हाउस को एक नया नाम देते हुए उसका नया नाम लिबर्टी (LIBERTY) रखा.
साल 1954 में इन्होंने लिबर्टी फुटवियर (LIVERTY SHOES) नाम से अपनी कंपनी का शुभारंभ किया. कंपनी शुरू करने के बाद इन्होंने ज्यादा मात्रा मे जूत्ते बनाने के लिए कुछ मशीने भी खरीदी.
नई मशीनों से अधिक मात्रा मे जूतों का उत्पादन होने लगा ओर धीरे-धीरे इन्होंने अपने आस-पास के शहरों में कंपनी के नए-नए स्टोर खोलने शुरू कर दिए. इन्होंने कम कीमत पर अधिक गुणवत्ता और टिकाऊ माल उपलब्ध करवाते हुए भारतीय फुटवियर बाज़ार में क्रांति लाते हुए लिबर्टी को एक नए पायदान पर पहुंचा दिया. आपको आपको यह जानकर यकीन नहीं होगा आज लिबर्टी आधुनिक मशीनों के साथ करीब एक लाख से अधिक जोड़े फुटवियर प्रतिदिन तैयार करती है.
अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका सहित खाड़ी देशों में फैलाया साम्राज्य
देश मे इनके द्वारा बनाए गए जुतों को अच्छा रिस्पॉन्स मिलने पर गुप्ता भाइयों ने इसे अन्य देशों में भी लांच करने का प्लान बनाया. इसी कड़ी में इन्होंने सबसे पहले अमेरिका, फिर यूरोप, अफ्रीका और खाड़ी देशों में अपना प्रोडक्ट एक्सपोर्ट करने शुरू कर दिया. देश की तरह इनके फुटवेयर ने अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भी धुँआधार प्रदर्शन किया ओर आज लिबर्टी दुनिया की एक अग्रणी कंपनी है.
इस कंपनी में आज के समय 4 हजार कंपनी के कर्मचारी के अलावा 15 हजार एसोसिएट कर्मचारी काम करते हैं. आज लिबर्टी (LIBERTY) कंपनी के 407 आउटलेट और 150 डिस्ट्रीब्यूटर पूरे भारत में फैले हुए हैं. इसके अलावा लगभग 6 हजार मल्टी ब्रांड स्टोर भी हैं. इसके अलावा इनके 10 देशों में एक्सक्लूसिव आउटलेट हैं और 20 से अधिक देशों में लिबर्टी का माल एक्सपोर्ट होता है. वर्तमान समय मे लिबर्टी कंपनी का सालाना टर्न ओवर लगभग 500 करोड़ के पार है.
गुप्ता भाइयों ने जब सबसे पहले जूते बनाने के आइडिया के साथ आगे आये थे तो उन्हें चारो तरफ से विरोध कर सामना करना पड़ा था. ओर इतना ही नहीं उनके खुद के दुकान में काम करने वाले लोगों तक ने उनके जूता बनाने को देश की परंपरा के विरुद्ध बताया था. लेकिन अपने लक्ष्य के साथ आगे बढ़ते हुए गुप्ता बंधुओं ने साबित कर दिया कि कोई भी काम बड़ा या छोटा नहीं होता.
ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.
तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…