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IAS ASHUTOSH DWIVEDI : छोटे से गांव से निकालकर कैसे तय किया IAS ऑफिसर तक का सफर

अकेले ही तय करने होते हैं कुछ सफर;
ज़िंदगी के हर सफर में हमसफ़र नहीं मिला करते!

Success Story Of IAS Ashutosh Dwivedi : रायबरेली के रहने वाले आशुतोष द्विवेदी (IAS ASHUTOSH DWIVEDI) का जीवन भी पूरी तरह से किसी फिल्मी कहानी जैसा ही है. जहां जीवन के शुरुआत में इतने संघर्ष हैं और उसके बाद में इतनी सफलता की लगता है भगवान ने उनके लिए कोई स्क्रिप्ट लिखकर ही उन्हें धरती पर भेजा है.

किंतु इस कहानी में सबसे बड़ा रोल आशुतोष द्विवेदी का ही है क्योंकि अपने जीवन की स्क्रिप्ट उन्होंने खुद लिखी है वो भी परिस्थितियों के सामने घुटने न टेकते हुए अपनी मेहनत के द्वारा.

किसी समय में साइकिल चलाकर लंबा सफर तय करते हुए सरकारी स्कूल जाने वाला और तेल के दिये की रोशनी में पढ़ने वाला यह लड़का आज एक आईएएस ऑफिसर (IAS OFFICER) है. आशुतोष द्विवेदी ने अपनी छोटी सी जिंदगी में इतने अधिक उतार-चढ़ाव देखे है कि शायद ही कोई अन्य व्यक्ति लंबी आयु व्यतीत करने के बाद भी उन्हें देख पाएगा.

आशुतोष के साथ सबसे अच्छी बात यह थी कि इन संघर्षों को उन्होंने हमेशा ही अपनी बेहतरी का माध्यम समझा. वे कभी भी अपने सामने आने वाली विपरीत परिस्थितियों ओर कठिनाइयों से निराश नहीं हुए और न ही कभी स्वयं को अभावों के बावजूद अपने समकक्ष बच्चों से कम समझा.

आशुतोष ने यूपीएससी के अपने चौथे प्रयास में आईएएस (IAS) परीक्षा को पास किया परंतु उसके बावजूद भी कभी हिम्मत नहीं हारी.

यूपीएससी के पहले दो प्रयासों में उनका सेलेक्शन नहीं हुआ ओर तीसरे प्रयास में उनका सिलेक्शन तो हुआ किंतु उन्हें अपनी रैंक के अनुसार आईपीएस की सेवा मिली परंतु आशुतोष को तो आईएएस ऑफ़िसर (IAS OFFICER) ही बनना था इसलिए उन्होंने अपनी कोशिशों को तब तक जारी रख, जब तक की उन्हें अपनी मंजिल नहीं मिल गई.

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IAS ASHUTOSH DWIVEDI

IAS ASHUTOSH DWIVEDI का बचपन ओर संघर्ष

आशुतोष के माता-पिता का बाल विवाह हुआ था. उनके पिताजी पढ़ने में अच्छे थे और माता जी लगभग अनपढ़ ही थीं परंतु इसके बावजूद वह शिक्षा के महत्व को भली-भांति से समझती थी.

आशुतोष के पिताजी ने अपनी बाकी की पढ़ाई बहुत संघर्ष के साथ शादी और बच्चों की ज़िम्मेदारी को पूरी तरह से निभाते हुए पूर्ण की जिसमें उनकी माता जी ने भी अपने पति का पूरा साथ दिया था.

अपने पैरेंट्स के जीवन के इस संघर्ष को आशुतोष बहुत अच्छे से जानते थे और हमेशा इनसे प्रेरणा लेते थे. आशुतोष को लगता था कि उनके मां-बाप की मेहनत के आगे उनकी मेहनत तो कुछ भी नहीं है.

आशुतोष की स्कूल उनके घर से बहुत दूर थी इस कारण उन्हें घंटों साइकिल चलाकर गांव के छोटे से स्कूल आना-जाना और बगैर लाइट के लालटेन या तेल के दिए में पढ़ना बहुत ही साधारण सी बात लगती थी.

उन्होंने शुरू से ही हिंदी मीडियम से अपनी पाधाइ की थी परंतु उन्हें इस बात का कभी भी दुख नहीं हुआ. वे एक कांफिडेंट स्टूडेंट थे जो यह मानते थे कि अपने साथियों की तुलना में उन्होंने जिस स्थिति में पढ़ाई की है, वे उनसे कहीं अधिक बेहतर हैं.

आशुतोष ने पहली बार अपनी उच्च शिक्षा के लिए गाँव से दूर कानपुर जैसे बड़े शहर में में कदम रखा. यहां एचबीटीआई से उन्होंने अपना बीटेक कम्प्लीट किया और उसके बाद नौकरी करने लगे. उस  समय उनका आईएएस बनने का सपना नौकरी ओर हालातों के कारण कहीं पीछे छिप गया था.

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IAS ASHUTOSH DWIVEDI

कलेक्टर’ शब्द की और बचपन से थे आकर्षित

आशुतोष द्विवेदी अपने बचपन से ही कलेक्टर शब्द के प्रति आकर्षित थे क्योंकि गांव में सामान्यतः पढ़ाई में अच्छे बच्चे को बात-बात पर कलेक्टर बनने की दुआ या आशीर्वाद ही दिया जाता है. अपने बचपन से उन्हें यह लगता था कि यह कलेक्टर कोई बड़ी चीज होती है.

आशुतोष द्विवेदी के बाद उनके बड़े भाई भी उन्ही की तरह से आईएएस ही बनना चाहते थे उन्होंने भी यूपीएससी की परीक्षा ड़ी ओर इंटरव्यू तक पहुंचे पर इसके बावजूद उनका सिलेक्शन आगे नहीं हुआ.

आशुतोष द्विवेदी ही उस समय उनका रिजल्ट देखने गए थे. उस समय अपने भाई को निराश देखकर आशुतोष द्विवेदी ने सोचा कि वे अपने बड़े भईया का सपना वे पूरा करेंगे.

इन घटनाओं के अलावा भी एक घटना ऐसी घटित हुई की जिसने आशुतोष द्विवेदी का जीवन बदल दिया जब एक गांव की औरत ने उनसे कुछ काम करने को कहा और अंत में यह शब्द भी जोड़ दिया की अगर आपसे यह कार्य न हो तो आप कलेक्टर साहब से कह दीजिएगा, वे आपका कार्य जरूर करा देंगे.

उस समय आशुतोष को पहली बार यह लगा कि अभी भी आम आदमी को नेता, नौकर, और सरकार किसी पर ऐसा भरोसा नहीं है जो की कलेक्टर पर है.

बस उसी दिन के बाद आशुतोष ने अपनी नौकरी छोड़ दी और सिविल सर्विसेस की तैयारी पूरी तरह से लग गए. आशुतोष द्विवेदी के पास इस क्षेत्र में आने के बहुत से अन्य कारण भी थे.

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IAS ASHUTOSH DWIVEDI

असफलताओं के बावजूद नही मानी हार

आशुतोष द्विवेदी दूसरे कैंडिडेट्स से अलग सोचते है वे कभी भी यह नहीं मानते थे कि यूपीएससी बहुत मुश्किल है बल्कि उनका यह मानना है कि यह तो एक ऐसा सफर है जो आपको कहीं न कहीं तो जरूर लेकर जाता है. वे यूपीएससी के बारे में कहते हैं,

“यूपीएससी एक तपस्या है, इसमें अगर आपको वरदान नहीं भी मिलता, फिर भी आप सिद्धि प्राप्त कर लेते हैं.’

अपने पहले दो प्रयासों में सफल न होने के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपनी गलतियों को पहले ढूँढा ओर उसके बाद उसे दूर किया.

तीसरी बार में उनका सेलेक्शन तो हो गया परंतु आईपीएस में हुआ परंतु उन्हें तो आईएएस ही बनना था इसलिए उन्होंने फिर से तैयारी करते हुए यूपीएससी की परीक्षा दी और साल 2017 में अपने चौथे अटेम्पट में 70वीं रैंक के साथ यूपीएससी की परीक्षा पास की.

तैयारी के दौरान ही उनकी शादी भी हो गई थी. वे अपनी इस आईएएस बनने की सफलता का श्रेय परिवार को देते हैं, जिनका उन्हें हमेशा बहुत सपोर्ट रहा. अंत में आशुतोष दूसरे कैंडिडेट्स को यह सलाह देते हैं कि कभी भी अपने बैकग्राउंड, अपनी भाषा को लेकर मन में हीन-भावना न लेकर आए.

यूपीएससी में सिलेक्शन के लिए यह सब महत्व नहीं रखता बल्कि आपकी ईमानदारी, आपकी मेहनत अधिक महत्व रखती है.

ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके. 

तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…

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