International Yoga Day (Maharishi Patanjali) : महर्षि पतंजलि एक ऐसे महान व्यक्ति थे जिन्होंने योग के 195 सूत्रों को एकसूत्र में पिरोने के साथ इन्हें व्यवस्थित करके आष्टांग योग की शुरुआत की. आज 21 जून है ओर यह दिन अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाता है, इस दिन के मौके पर जानिए, योग को सबसे आसान रूप में लोगों तक पहुंचाने वाले योग के पिता कहलाए जाने वाले महर्षि पतंजलि की कहानी…
योगासन क्या है? इस बारे में योग के पितामह कहे जाने वाले महर्षि पतंजलि (Maharshi Patanjali) ने इसे सरल रूप में परिभाषित करते हुए लिखा है, स्थिरं सुखम् आसनम् यानी आसन वो है जिसे करने से मन और शरीर में स्थिरता आए और व्यक्ति को सुख की अनुभूति हो. हमारा इतिहास कहता है, पतंजलि पहले और एकमात्र ऐसे ज्ञानी एवं योगी थे जिन्होंने योग (Yoga) को आस्था, धर्म और अंधविश्वास से अलग करने के साथ उसे एक व्यवस्थित रूप दिया.
महर्षि पतंजलि ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि प्राचीन भारत में योग के सूत्र अव्यवस्थित थे जिन्हें आम इंसान के लिए समझना मुश्किल था. महर्षि पतंजलि ने योग के इन 195 सूत्रों को व्यवस्थित करते हुए आष्टांग योग (Ashtanga Yoga) की शुरुआत की. वैसे तो इनके जन्म की तारीख को लेकर इतिहासकारों में अलग-अलग मत हैं, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि इनका जन्म पुष्यमित्र शुंग (195-142 ई.पू.) के शासनकाल में हुआ था.
महर्षि पतंजलि के जन्म की सबसे प्रचलित कहानी
महर्षि पतंजलि का जन्म कैसे हुआ, इसको लेकर एक कहानी हमारे यहाँ सबसे ज्यादा प्रचलित है. उनके बारे में मान्यता है कि एक समय सभी ऋषि और मुनि एकजुट होकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे. उन्होंने भगवान विष्णु से कहा, आपने धन्वन्तरि के रूप में जन्म लेते हुए शारीरिक रोगों के उपचार के लिए आयुर्वेद की नींव रखी.
वर्तमान में धरती पर रहने वाले लोग क्रोध, काम और मन की वासनाओं में बुरी तरह से उलझे हुए हैं. एवं इनसे पीड़ित हैं. धरती पर रहने वाले लोग सिर्फ शरीर ही नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक विकारों से भी दुखी हो रहे हैं. इस समस्या का हल क्या है?
मुनियों का अनुरोध सुनते समय भगवान विष्णु आदिशेष सर्प की शैया पर लेटे हुए थे. श्री हरि ने मुनियाे की समस्या का समाधान करने के लिए आदिशेष को महार्षि पतंजलि के रूप में धरती पर भेजा. इस तरह से योग महर्षि पतंजलि का जन्म हुआ. महर्षि पतंजलि योग के पितामह होने के साथ-साथ एक महान चिकित्सक भी थे और इन्हें ही ‘चरक संहिता’ का प्रणेता भी माना जाता है।
कहा जाता है, गोनिका नाम की एक महिला योग के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित थीं. वह पुत्र की कामना के साथ मुट्ठीभर जल के साथ भगवान की प्रार्थना कर रही थीं, तभी उनके हाथ में एक छोटा सांप घूमते हुए दिखाई दिया. देखते ही देखते वह सांप मानव रूप में बदल गया. इस तरह महर्षि पतंजलि ने जन्म लिया.
कई धातुओं का परिचय कराने का श्रेय भी है महर्षि पतंजलि के नाम
महर्षि पतंजलि एक चिकित्सक होने के साथ रसायन शास्त्र के महान आचार्य भी थे. उन्होंने इस क्षेत्र में बहुत काम किया. अभ्रक, धातुयोग और लौहशास्त्र का परिचय कराने का श्रेय भी महर्षि पतंजलि को ही जाता है.
राजा भोज ने अपने कार्यकाल में इन्हें मन के चिकित्सक की उपाधि से सम्मानित किया था. महर्षि पतंजलि ने इस दुनियाँ को अष्टांग योग के महत्व के बारे में समझाया. उनके मुताबिक, इसके 8 अंग होते हैं – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, ध्यान, धारणा, प्रत्याहार और समाधि. हालांकि वर्तमान समय में इनमें से आसन, प्राणायाम औए ध्यान ही चलन में हैं.
भारतीय दर्शन शास्त्र के इतिहास में इनके द्वारा लिखे गए तीन ग्रंथों का जिक्र किया गया है, ये नाम हैं योगसूत्र, आयुर्वेद पर ग्रन्थ एवं अष्टाध्यायी पर भाष्य।