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VIJAY SANKESHWAR : कैसे बने देश के सबसे बड़े ट्रांसपोर्टर, आईए जानते है ‘लिम्का बुक्स ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ धारी विजय संकेश्वर की जीवन-गाथा

VIJAY SANKESHWAR SUCCESS STORY : आज की कहानी का हमारा हीरो सच में एक नायक है जिसने खेलने कूदने की उम्र से ही अपनी सोच को इतना विशाल बना दिया की हमेशा उन्हें बिज़नेस का ही ख्याल आता था उसके बिना जीवन अधूरा लगता था.

बचपन भविष्य की नींव होती है अगर इसे सशक्त कर लिया तो जीवन संवर जाता है

19 वर्ष की आयु से शुरू किया बिजनेस

यह विजय संकेश्वर (VIJAY SANKESHWAR) की दूरदृष्टिता ही थी की उन्होंने मात्र 19 वर्ष की आयु में अपने मजबूत इरादों और बुलंद होसलो के साथ बिज़नेस को शुरू किया और बन गए परिवहन उद्योग के दिग्गज.

विजय का जन्म कर्नाटक के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था जहा का माहौल बिज़नेस का ही था एक यह भी कारण रहा की उनकी सोच वैसी बन पायी, वे अपने सात भाई-बहिनो में से चौथे स्थान पर थे. उनका पूरा परिवार पब्लिशिंग व्यापार से जुड़ा हुआ था जहा उनकी बुक्स को प्रिंट और पब्लिश किया जाता था.

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VIJAY SANKESHWAR

बचपन से थे पढ़ाई में होशियार

वे पढ़ने में भी होशियार थे अतः अपनी कॉलेज तक की शिक्षा पूर्ण की. विजय संकेश्वर के पिता शुरू से ही उन्हें अपने बिज़नेस में शामिल करना चाहते थे लेकिन उनका मन कुछ अलग हटकर करने का था.

अपनी ग्रैजुएशन पूरी करने के बाद वे नए बिज़नेस की संभावनाए तलाश रहे थे तब उनकी खोज परिवहन के बिज़नेस पर जाकर समाप्त हुई और उन्होंने निर्णय लिया की अब वे इसका ही व्यापार करेंगे. 

1976 में रखी VRL LOGISTICS की नींव

विजय संकेश्वर ने अपनी इसी सोच के चलते वर्ष 1976 में एक ट्रक ख़रीदा और “VRL LOGISTICS” की नीव रखी. धीरे धीरे उनका व्यापार आस-पास के शहरों जैसे हुबली, बेंगलुरु और बेलगाम में पहचान बना चूका था. इसी बिज़नेस में से हुए प्रॉफिट को लेते हुए उन्होंने अपने ट्रको की संख्या को बढ़ाते हुए 8 तक पंहुचा दिया.

शुरूआती सफलता के बाद उन्होंने राज्य में कूरियर सर्विस को स्टार्ट किया साथ ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट के रूप में यात्री बस सेवा को शुरू किया. यहाँ भी उन्हें अच्छा रिस्पांस मिला जिस वजह से उनका यह काम कुछ वर्षो में ही देश के आठ राज्यों में फ़ैल गया जहा आज लगभग 75 राजमार्ग पर कुल 400 से ज्यादा बसे चल रही है.

विजय संकेश्वर ने इसमें ही सबसे पहले वॉल्वो बस का कांसेप्ट और फुल्ली कम्फर्टेबल लग्जरी बसों को प्रारम्भ किया था.

1983 में कंपनी को बदला प्राइवेट लिमिटेड में

इसके बाद वर्ष 1983 में अपनी कंपनी को प्राइवेट लिमिटेड में तब्दील करते हुए “विजय रोड लाइन्स” की शुरूआत की. अपनी शुरुआत के मात्र दो वर्षो में ही उनका कारोबार सालाना 4 करोड़ से अधिक का टर्न ओवर देने वाला बन गया. 

अब उनका मूड एयरलाइन्स फील्ड में उतरने का है, जहा वे अपने बेटे आकाश के साथ मिलकर 1300 करोड़ का निवेश कर स्टार्ट करना चाहते है.

उनके इसी जज्बे और अपने कारोबार में शामिल व्हीकल के बेड़े को देखते हुए उनका नाम “लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड” में भी शामिल किया जा चूका है. 

विजय ने परिवहन के क्षेत्र में अभी तक सड़क मार्ग और वायु मार्ग की तैयारी कर ली है अगर यही जूनून और जोश बरकरार रहा तो हमें शायद आने वाले कुछ वर्षो में जल मार्ग में भी उनकी उपस्थिति देखने को मिले इसमें कोई दो राय नहीं है.

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अभी उनकी उम्र लगभग 65 वर्ष पूर्ण हो चुकी है अब ज्यादातर उनके बिज़नेस बेटे आकाश ही संभालते है लेकिन जरुरी मुद्दों पर वे अपनी सलाह जरूर रखते है.

अंत में जाते जाते उनकी कहानी हमें “रोड से करोड़पति” बनाने की प्रेरणा और उत्साह देती है साथ ही यह सिख भी मिलती है की यदि आप में कुछ कर गुजरने की इच्छा प्रबल है तो अपने बचपन से ही उन्हें पूरा करने में जुट जाना चाहिए, आपको एक दिन सफलता जरूर मिलेगी. ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके. 

तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…….

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