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CHANDUBHAI VIRANI : सिनेमाघर के बाहर हुई एक छोटी शुरुआत से लेकर 4000 करोड़ की कंपनी तक के सफ़र की कहानी

“जिसके पास धैर्य है वह जो चाहे वो पा सकता है”

CHANDUBHAI VIRANI SUCCESS STORY : भारतीय अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता के लिए पैकिंग की गई वस्तुओं का बिजनेस एक अहम् भूमिका भूमिका अदा करता है. यदि सही तरीक़े से देखा जाए तो इस सेक्टर में अधिकतर मल्टीनेशनल कंपनियों का ही बोलबाला रहा है. लेकिन इसके बावजूद भी कुछ भारतीय व्यापारियों ने भी इस सेक्टर में शून्य से शुरुआत करते हुए शिखर तक का सफ़र तय किया है.

इन्हीं लोगों की वजह से हमारे देश में पिछले कुछ वर्षों में घरेलु ब्रांडों की भी मांग तेजी से बढ़ी है. आज की सक्सेस स्टोरी में भी हम एक ऐसे ही सफल उद्यमी की कहानी लेकर आये हैं, जिन्होंने एफएमसीजी सेक्टर में कदम रखने के साथ ही तहलका मचा दिया.

आज हम बात कर रहे है गुजरात के सिनेमाघरों में चिप्स बेचने से शुरुआत करते हुए देश के एक नामचीन ब्रांड बनाने वाले शख़्स चंदुभाई वीरानी (CHANDUBHAI VIRANI) की कहानी के बारे में जो अपने-आप में अनूठी है.

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CHANDUBHAI VIRANI

VIRANI BROTHERS का बचपन ओर आर्थिक स्थिति

यह बात कोई भी व्यक्ति नहीं जानता था कि गुजरात के जामनगर के एक छोटे से गाँव में जन्मे तीन भाई चंदुभाई वीरानी, भीखुभाई वीरानी और मेघजीभाई वीरानी आने वाले समय में भारतीय उद्योग जगत का एक जाना-माना चेहरा बनेंगे. चंदुभाई एक गरीब किसान परिवार में पैदा हुए. इनके परिवार का मुख्य पेशा खेती हुआ करता था. साल 1972 में वीरानी भाइयों ने धंधे की तलाश में गांव से शहर जाने का फैसला किया.

चंदुभाई वीरानी ने अपने भाइयों ने साथ में मिलकर योजना बनाई कि वे शहर में अपना खुद का कुछ कारोबार खड़ा करेंगे. अपने कारोबार को खड़ा करने के लिए शुरूआती पूंजी की आवश्यकता को देखते हुए वीरानी भाइयों ने अपने पिता पर जमीन बेचने का दबाव भी बनाया. एक पिता के लिए तो उनका पुत्र ही सबकुछ होता है.

इनके पिता ने अपने पुत्रों की माँग को मानते हुए अपनी पुश्तैनी कृषि भूमि बेचकर उन्हें कारोबार करने के लिए 20 हजार रुपए दिए. चंदुभाई वीरानी ने अपने दोनो भाइयों के साथ कृषि उपकरणों की ट्रेडिंग की और अपने पिता द्वारा दी हुई सारी पूंजी उसमें डुबो दी. पहले तो किसी तरह से खेती से उनके घर का चूल्हा जलता था, किन्तु अब तो वह आसरा भी उनके लिए ख़त्म हो चुका था.

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CHANDUBHAI VIRANI

CHANDUBHAI VIRANI का जीवन परिचय

चंदूभाई विरानी का जन्म 31 जनवरी, 1957 को गुजरात के जामनगर में धुन-धोराजी नामक 2000 निवासियों के एक छोटे से गाँव में पोपटभाई विरानी नाम के एक किसान के यहाँ हुआ था. उनके परिवार में तीन भाई- भीखुभाई, कनुभाई और मेघजीभाई हैं और उनके दो बच्चे हैं.

चंदुभाई वीरानी अपने भाइयों के बीच में जमीन से जुड़े व्यक्ति के रूप में पहचाने जाते हैं और कम प्रोफ़ाइल के साथ एक साधारण जीवन जीना पसंद करते हैं. अक्सर उन्हें अपने कार्यालय में एक साधारण सफेद और हरे रंग की चेक शर्ट पहने हुए पाया जा सकता है, जहां दीवारें उनके पिता, उनके गुरुओं, स्वामी विवेकानंद और वानर सेना के पुल को दर्शाती पृष्ठभूमि के साथ भगवान हनुमान की एक मूर्ति के चित्रों से ढकी हुई हैं.

चंदुभाई वीरानी प्रकृति की सुंदरता के बीच में अपना अधिकतर समय व्यतीत करना पसंद करते हैं जो अक्सर उनके फार्महाउस पर ही शुरू और समाप्त होता है. एक ही कारण के लिए; उन्हें अक्सर व्यापार यात्राओं का आयोजन करते हुए देखा जाता है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, वे अमेरिकी रेगिस्तान, घाटी और जंगलों से प्यार प्यार करते है.

इनके आलावा उनकी पसंद में शामिल हैं;

#कृषि से संबंधित साहित्य पढ़ना

# घर का बना खाना अपने पसंदीदा व्यंजनों के साथ खाना काठियावाड़ी खाना

# हालांकि, उन्हें कारों के लिए विशेष रूप से कोई शौक नहीं है, लेकिन एक परिवार के रूप में वे इनोवा, मर्सिडीज, बीएमडब्ल्यू, स्कोडा और कई तरह की महंगी कारों के मालिक हैं.

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CHANDUBHAI VIRANI

छोटी सी केंटिन से हुई शुरुआत

दो वक्त के खाने की रोटी का इंतज़ाम करने के लिए वीरानी भाइयों ने साल 1974 में राजकोट के एक सिनेमा घर में छोटी सी केंटिन खोली और इनमे अपनी पत्नियों के द्वारा बनाए वेफर्स और सेंडविच बेचने शुरू कर दिए.

अगले 15 सालो तक यही सिलसिला चलता रहा और इस दौरान इन्होंने गौर किया कि उनकी पत्नियो द्वारा घर के बनाये हुए वेफर्स ग्राहकों को ज्यादा पसंद आ रहे थे. उस समय इन्होंने इस सेक्टर में एक बड़ी बिज़नेस संभावनाओं को देखा और उसके बाद काफ़ी सोच विचार करने के बाद अपने उत्पादों को ज्यादा लोगों तक पहुँचाने के उद्देश्य से इन्होंने साल 1989 में वेफर्स फ्राइंग के लिए एक सेमी-आटोमेटिक प्लांट लगाने का फ़ैसला लिया. इसी के साथ इन्होंने बालाजी वेफर्स के बैनर तले किफायती दामों में अच्छे माल उपलब्ध कराते हुए लोकल मार्केट में अपनी पैठ ज़माना शुरू कर दिया.

हालांकि शुरुआती समय में इन भाइयों को काफी परेशानियों का सामना भी करना पड़ा. उस समय इन्हें अपने माल को लेकर खुद दुकान-दर-दुकान बेचने के लिए जाना होता था. कई दुकानदार उस समय बल्क में पैकेट लेना पसंद नहीं करते थे और कुछ दुकानदार जो बल्क में लेते थे, वे इन्हें समय पर पैसे नहीं देते थे.

कई बार तो उन्हें दुकानदारो द्वारा यह कहकर भी पैकेट लौटा दिए जाते थे कि ये खुले हैं और खराब हो गए हैं. इतनी मेहनत करने के बावजूद भी उस समय उन्हें ज्यादा फायदा नहीं हो रहा था. लेकिन इन्होंने विपरीत हालातों के सामने हार नहीं मानी और आज उनकी इसी मेहनत के कारण बाज़ार में इनका राज है.

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CHANDUBHAI VIRANI

बालाजी वैफर्स (balaji wafers) की मार्केट स्थिति

वर्तमान समय में 50 हजार करोड़ रुपए के इंडियन स्नेक्स मार्केट में साल्टी स्नेक्स (नमकीन) की हिस्सेदारी 60 फीसदी है तो वही पोटाटो चिप्स की 40 फीसदी. आज गुजरात के साल्टी स्नेक्स मार्केट में बालाजी वेफर्स की 65, महाराष्ट्र में 50, राजस्थान में 35 और मध्यप्रदेश में 25 फीसदी हिस्सेदारी है. यहाँ Lays, Kurkure, Parle और Bingo जैसे ग्लोबल और नेशनल ब्रांड्स बालाजी वेफर्स की इस सफलता से हैरान और परेशान है. बालाजी वेफर्स की सफलता के पीछे का कारण है – देसी टेस्ट, किफायती दाम और अपने ग्राहकों से सीधे रिश्ता.

आपको यह जानकर बड़ी हैरानी होगी की बालाजी वेफर्स एंड नमकीन ग्रुप के वर्तमान समय में राजकोट और वलसाड स्थित मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स हर रोज 38 टन और 24 टन वेफर्स बना रहे हैं. हाल ही में विरानी भाइयों ने अपने गृहराज्य के बाहर मध्यप्रदेश में 400 करोड़ रुपए का निवेश करते हुए तीसरा मैन्युफैक्चरिंग प्लांट स्थापित किया है. पीथमपुर (इंदौर) स्थित इस प्लांट की दैनिक क्षमता 24 टन है.

एक छोटे से गांव से बाहर निकल कर इन किसान के पुत्रों ने अपनी उद्यमशीलता के दम पर कई बड़े-बड़े विदेशी ब्रांड को बाज़ार में काँटे की टक्कर देते हुए सफलता प्राप्त की है. इनकी बालाजी वैफर्स की इस अभूतपूर्व सफलता को देखकर लगता है कि मजबूत इरादे के दम पर किसी व्यक्ति के लिए कुछ भी पाना असंभव नहीं है.

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बालाजी वैफर्स की उपलब्धियाँ

इकोनॉमिक टाइम्स ने बालाजी समूह को ‘वेफर्स के सुल्तान’ के रूप में स्वीकार किया है.

अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका – एशिया पैसिफिक फूड ने ‘चिप ऑफ द ओल्ड ब्लॉक’ के साथ एक विशेष लेख प्रकाशित किया.

बालाजी समूह लंबे समय से ‘स्नैक्स फूड एसोसिएशन’ का एक सम्मानित सदस्य है.

ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके. 

तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ

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