“जिस काम में काम करने की हद पार ना फिर वो काम किसी काम का नहीं”
ODHAVAJI RAGHAVJI PATEL SUCCESS STORY : यह कहानी एक ऐसे साधारण शिक्षक की है जिन्होंने अपनी कम आजीविका के चलते अतिरिक्त खर्चों से निपटने के लिए व्यापार का विकल्प चुना. और कारोबारी जगत में घुसते हुए उन्होंने एक के बाद एक सफलता प्राप्त करते हुए अजंता, ऑरपेट और ओरेवा जैसी नामचीन ब्रांडों की आधारशिला रखते हुए वर्तमान समय की युवा पीढ़ी के लिए एक आदर्श स्थापित किया.
एक समय ऐसा भी था जब इनकी पत्नी ने इनकी कम आमधनी से दुखी होकर उन्हें ताने देते हुए कहा कि आप अपने बचे समय में कोई छोटा-बड़ा कारोबार क्यूँ नहीं करते? यदि मैं भी आपकी ही तरह एक पुरुष होती तो अपने भाई के साथ मिलकर कोई कारोबार करती और पूरे शहर में प्रसिद्ध हो गई होती. पत्नी के द्वारा कही गई यह बात इनके दिमाग में खटक गई और फिर उन्होंने कारोबारी जगत में कदम रखा ओर हमेशा के लिए अपना एक ऐसा मुक़ाम ओर नाम बना लिया जो कभी भी नही भुलाया जा सकता.
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ODHAVAJI RAGHAVJI PATEL का बचपन ओर शिक्षा (Education)
आज हम बात कर रहे हैं ऑरपेट, अजंता और ओरेवा जैसे ब्रांडों के निर्माता ओधावजी पटेल (ODHAVAJI RAGHAVJI PATEL) की सफलता के बारे में. भारत में आज शायद ही कोई ऐसा घर होगा जहाँ पर इनके द्वारा बनाया गया सामान नहीं पहुँचा हो. ओधावजी पटेल वैसे तो मूल रूप से एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं. किसान परिवार से ताल्लुक़ रखने के बावजूद उन्होंने पढ़ाई को महत्व दिया ओर विज्ञान में स्नातक करने के बाद बी.एड की डिग्री भी हासिल की.
बी.एड करने के बाद उन्होंने वी सी स्कूल में विज्ञान और गणित के शिक्षक के रूप में तीस साल तक काम किया. इस नौकरी से इन्हें 150 रुपये प्रति महीने पगार के रूप में मिलते थे. उनकी इस पगार से बड़ी ही मुश्किल से किसी तरह इनके पूरे परिवार का भरण-पोषण हो पाता था. लेकिन जब उनके बच्चे बड़े हुए तो परिवार पर आर्थिक दबाव बढ़ना शुरू हो गया. बढ़ते हुए आर्थिक दबाव के कारण इन्होंने अतिरिक्त आय के लिए कुछ व्यापार शुरू करने के बारे में सोचा.
मोरबी में खोली कपड़े की दुकान
इनके व्यापार करने के इस विचार के बारे में जब इन्होंने अपनी पत्नी को बताया तो इनकी पत्नी ने भी इस काम के लिए इन्हें काफी प्रोत्साहित किया. काफी दिनो तक सोच-विचार करने के बाद इन्होंने मोरबी में एक कपड़े की दुकान खोली जो कि साल 1970 तक जारी रही. इसी दौरान वर्ष 1960 के दौरान पानी की तीव्र कमी हो गई. हालांकि प्रत्येक गांव में पर्याप्त मात्रा में कुएं थे, लेकिन उस समय इनसे पानी खींचने के लिए एक आवश्यक तेल इंजन की आवश्यकता थी. ओधावजी ने इस क्षेत्र में बिज़नेस की अपार संभावना देखी और वसंत इंजीनियरिंग वर्क्स के बैनर तले तेल इंजन बनाने का कार्य भी शुरू कर दिया. उन्होंने तेल इंजन का नाम अपनी बेटी के नाम पर ‘जयश्री’ रखा. इनके द्वारा स्थापित यह यूनिट पांच साल तक जारी रही.
इस तरह शुरू की घड़ी बनाने की यूनिट
उसी दौरान एक दिन लोगों का एक समूह ओधावजी पटेल के पास ट्रांजिस्टर घड़ी परियोजना से संबंधित एक आइडिया लेकर आए. ओधावजी को उन लोगों का यह आइडिया अच्छा लगा और उन्होंने 1,65,000 की लागत से घड़ी बनाने के कारखाने को 600 रुपए प्रति माह के हिसाब से एक किराए के घर में किराए पर स्थापित किया और इस बार उन्होंने अजंता नाम के साथ अपने ब्रांड की आधारशिला रखी.
शुरुआत में इनके द्वारा स्थापित घड़ी बनाने वाली कंपनी को बहुत भारी नुकसान का सामना करना पड़ा लेकिन ओधावजी ने इसके बावजूद हार नहीं मानी और डटे रहे. गुजरते वक्त के साथ बाज़ार में लोगों ने उनके द्वारा उत्पादित उत्पाद में विश्वास दिखाना शुरू किया और देखते-ही-देखते अजंता बाज़ार की सबसे लोकप्रिय और विश्वसनीय घड़ी ब्रांड बन गई.
इस सफलता के बाद इन्होंने फिर कभी भी पीछे मुड़कर नही देखा ओर समय के साथ अन्य क्षेत्रों में भी पैठ ज़माने के लिए दो अन्य ऑरपेट और ओरेवा जैसी नामचीन ब्रांड की पेशकश की. ओधावजी पटेल के द्वारा करीब डेढ़ लाख रुपये की लागत से स्थापित हुई कंपनी आज 1500 करोड़ के क्लब में शामिल है. इससे शानदार कारोबारी सफलता इनके लिए और क्या हो सकती है.
ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.
तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…