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IAS PRANJAL PATIL : दिव्यांगता अभिशाप नहीं वरदान है, ये कैसे साबित किया देश की पहली दृष्टिबाधित (नेत्रहीन) महिला आईएएस ने

‘डरने से नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती.’

IAS PRANJAL PATIL SUCCESS STORY : जीवन में सबसे महत्वपूर्ण होता है, निर्णय लेना एवं जब किसी के बारे में निर्णय ले लिया जाता है, तब अगला काम होता है उस निर्णय को सही साबित करने में जुट जाना, फिर चाहे उसमे कितनी भी कठिनाइयाँ आये उनसे घबराना नहीं चाहिए.


कुछ ऐसा ही कठिनाइयों एवं चुनौतीपूर्ण सफर रहा है, आज की हमारी कहानी के किरदार का जिनका नाम है – आईएएस प्रांजल पाटिल (IAS PRANJAL PATIL).

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IAS PRANJAL PATIL WITH HER FAMILY

जब बचपन में ही जीवन हुआ अंधकारमय  

प्रांजल पाटिल का जन्म 1 अप्रैल 1988 को वाडजी गाँव, जलगांव (महाराष्ट्र) में एक साधारण परिवार में हुआ था. उनके पिता-लेहन सिंह पाटिल एक इंजीनियर असिस्टेंट के पद पर कार्यरत है एवं उनकी माता-ज्योति पाटिल गृहिणी है. उनके एक भाई भी है. 


अपनी प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने गाँव की ही स्कूल से की, इसके पश्चात वे सपरिवार मुंबई आ गए. वहा उन्होंने अपनी आगे की शिक्षा जारी रखी. प्रांजल जब पैदा हुई तभी से उनकी दृष्टि कमजोर थी, एक अन्य जानकारी के अनुसार जब वे अपनी 6वीं कक्षा में थी, उस दौरान अपने सहपाठी की पेन्सिल उनकी आँख में लग गई.

उनके माता-पिता आँख के चिकित्सक को दिखाया, किन्तु वे इसका इलाज नहीं कर सके, साथ ही उन्होंने कहा की निकट भविष्य में उनकी दूसरी आँख की रौशनी भी चली जाएगी.

इस बात से मानो प्रांजल के जीवन में पूर्ण अंधकार छा गया, किन्तु उन्होंने एवं परिवार वालो ने हिम्मत नहीं हारी. आँखों की रोशनी जाने के बाद उनकी 10वीं कक्षा तक की पढ़ाई ‘कमला मेहता अंधविद्यालय’ दादर में हुई, जो कि प्रांजल जैसे दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए होती है. वहा विशेष ‘ब्रेल लिपि’ से अध्ययन एवं अभ्यास करवाया जाता था. 


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IAS PRANJAL PATIL

IAS PRANJAL PATIL KA अध्ययन एवं पढ़ाई के प्रति समर्पण – 


प्रांजल बचपन से ही पढाई में होशियार थी, इसी वजह से आँख कि रोशनी चली जाने के बाद भी उन्होंने पढ़ना जारी रखा, जिसमे उनके परिवार ने भी साथ दिया. प्रांजल ने 11वीं एवं 12वीं (कला संकाय-राजनीति विज्ञान) की परीक्षा ‘चांदीबाई हिम्मतलाल मनसुखानी’ उल्हासनगर से पूर्ण की एवं अपनी स्नातक की परीक्षा St Xavier, College, Mumbai से दी.

उन्होंने अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन ‘अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध’ (International Policy) जवाहर लाल नेहरू (JNU) विश्वविद्यालय, दिल्ली से पूर्ण की. इसके बाद भी उन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा एवं M. Phill (Master Of Philoshopy) और PHD की शिक्षा JNU से पूर्ण की.


IAS PRANJAL PATIL KA UPSC का ख्याल 

अपनी PHD की पढ़ाई के दौरान साथी विद्यार्थियों द्वारा संघ लोक सेवा आयोग-सिविल सर्विसेज की तैयारी करते हुए सुना, जानकारी प्राप्त करने के बाद उनका मन भी इस परीक्षा को पास करने का हुआ, लेकिन उन्होंने किसी को इस बारे में नहीं बताया. 


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IAS PRANJAL PATIL

अपनी PHD पूरी करने के बाद उन्होंने इसे साकार रूप देने की सोची एवं परिवार को इस बारे में बताया. लेकिन उनके सामने समस्या थी ‘नेत्रहीनता’ जिसके लिए बहुत कम ही संसाधन उपलब्ध थे. लेकिन उन्होंने बिना निराश हुए स्व-अध्ययन करने का मानस बनाया. 


उन्होंने विशेष Software – Job Access With Speech (JAWS) जो की ‘ब्रेल लिपि पर आधारित दिव्यांगों के लिए बना है, कि मदद से अपने अध्ययन को जारी रखा. ये Software Printed Document को Scan कर पड़ता है फिर उसे Text to Speech तकनीक से बोलकर बताता है. 

दृष्टिहीनता के कारण जब प्रांजल को जॉब देने से इंकार किया

स्व-अध्ययन करते हुए वर्ष 2015 की UPSC परीक्षा में अपने प्रथम प्रयास में ही प्रांजल ने 773वीं रैंक हासिल की थी. वर्ष 2016 में परिणाम आने के पश्चात उन्हें DoPT (Department Of Personnal & Training) से एक पत्र प्राप्त हुआ.


इस पत्र मे उन्हें IRAS (Indian Railway Accounts Services) में पोस्ट की बात कही गई एवं बताया गया की दिसंबर 2016 से उन्हें नियुक्ति दी जाएगी. किन्तु नवंबर 2016 में पुन: उन्हें DoPT से एक पत्र मिला जिसमे उनकी दृष्टिहीनता का हवाला देते हुए JOB से इंकार किया गया.

उक्त घटना से वे बहुत ही निराश हुई एवं उन्होंने इसके लिए प्रधानमंत्री ‘नरेंद्र मोदी’ एवं तत्कालीन रेल मंत्री ‘सुरेश प्रभु’ को पत्र लिखकर स्थिति से अवगत करवाते हुए, नौकरी देने की प्रार्थना की, लेकिन IRAS ने कभी भी पूर्ण दृष्टिहीन को नौकरी नहीं दी गई, यह कहकर उन्हें नौकरी देने से इंकार कर दिया. 

इसके पश्चात उन्हें उनकी रैंक से नीचे की पोस्ट ऑफर हुई पोस्टल एंड टेलीकम्यूनिकेशन डिपार्टमेंट (Postal & Telecommunication Department) में लेकिन इसको स्वीकारने के लिए प्रांजल तैयार नहीं हुई. 


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IAS PRANJAL PATIL

प्रांजल ने निर्णय किया की वे अगले वर्ष 2017 में होने वाली UPSC परीक्षा को फिर से देगी, ऐसा ही उन्होंने किया एवं उस परीक्षा में देश में 124वीं रैंक हासिल की एवं बन गई देश की पहली दृष्टिबाधित महिला IAS.


जब सहेली की मदद से प्रांजल ने पास की UPSC परीक्षा

प्रांजल ने जब UPSC परीक्षा देने का निर्णय लिया, तब अध्ययन के साथ-साथ उनकी सबसे बड़ी चुनौती परीक्षा में उत्तर लिखने के लिए सहायक (Writer) की आवश्यकता महसूस हुई. उस समय उनकी सहेली ‘विदुषी’ ने हिम्मत कर हौसला अफजाई की एवं परीक्षा में सहायक के तौर पर प्रश्नो के उत्तर दिए.

प्रांजल बताती है की वैसे तो परीक्षा का समय समान्य अभ्यर्थियों के लिए 3 घंटे का होता है, किन्तु वे दिव्यांग थी अत: उन्हें 1 घंटा अतिरिक्त मिलता था, जिसमे वे अपनी सहेली विदुषी को जवाब बोलकर बताती एवं विदुषी उन्हें ‘Answer Sheet’ में लिखने का कार्य करती थी.  


UPSC परीक्षा पास करने के बाद उन्हें अपनी पहली नियुक्ति 28 मई 2018 को सहायक कलेक्टर ‘Assistant Collector’ के तौर पर अर्नाकुलम, केरला में मिली. उन्हें उनकी रैंक के मुताबिक़ केरला कैडर मिला है.

उसके पश्चात उनकी दूसरी नियुक्ति अभी पिछले वर्ष 14 Oct. 2019 (white Cane Day-जो दिव्यांगता के लिए मनाया जाता है) को उप-जिलाधिकारी, तिरुवनंतपुरम के तौर पर मिली है. प्रांजल के अनुसार उन्हें हमेशा अच्छे लोगो का साथ मिला है, फिर चाहे वे स्कूल, कॉलेज, UPSC की परीक्षा एवं UPSC के बाद नौकरी के दिन हो. हमेशा लोगो ने उनकी मदद की है. 

वे भी अपनी सेवाओं से दिव्यांग लोगो की मदद करना चाहती है. इसकी शुरुआत उन्होंने पति कोमल कुमार सिंह (बिज़नेसमेन) के साथ मिलकर वर्ष 2018 में अपनी भाई की शादी के दौरान अंगदान कर के की है. साथ ही वे ऐसे संगठनो के साथ मिलकर कार्य कर रही है, जो अंगदान के लिए प्रेरणा देते है.


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IAS PRANJAL PATIL

प्रांजल पाटिल इनको क्यों मानती है आइडियल – 

वैसे तो प्रांजल अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता एवं पति को देती है, जिन्होंने शादी के बाद भी पढ़ाई जारी रखने  की बात कही थी. 

साथ ही वे अपना आइडियल एवं प्रेरणास्त्रोत ‘स्टीफन हांकिन्स’ एवं जापानीज बौद्ध एवं दार्शनिक ‘Daisaku Ikeda’ को मानती है, वे दार्शनिक ‘Daisaku Ikeda’ के प्रत्येक लेख को ध्यानपूर्वक एवं रूचि के साथ पढ़ती है. 


‘दिव्यांग शरीर से हो तो चलेगा, लेकिन कभी भी दिव्यांग सोच से नहीं होना चाहिए.’

जाते-जाते प्रांजल पाटिल कि यह कहानी उन सभी लोगो के लिए प्रेरणा है, जो दिव्यांग है. 

वे बताती है कि हमें अपने जीवन में कभी भी किसी भी परिस्थिति के आगे समर्पण नहीं करना चाहिए.

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