“मेहनत की चाबी से ही सफलता का ताला खुलता है ।”
Success Story Of IAS V K Vivek : केरल के कासरगोड ज़िले के एक छोटे से गांव कुट्टीकोल के रहने वाले विवेक (IAS V K VIVEK) का बचपन अन्य आम बच्चों के जैसा नहीं था. उन्हें किसी प्रकार की सुख-सुविधा मिलना तो दूर की बात बल्कि उन्हें जरूरत की चीजों के लिए भी तरसना पड़ता था.
विवेक की ख़राब आर्थिक स्थिति का अंदाजा आप सभी इस बात से ही लगा सकते है कि उनका घर मिट्टी से बनाया हुआ था, जिसे की गाय के गोबर से लीपा जाता था.
उनके घर पर छत की जगह नारियल के पत्तों का शेड था. ओर उनके घर में बिजली, पानी किसी भी चीज़ की सुविधा नहीं थी इसके अलावा उनके घर में टॉयलेट तक नहीं था.
एक तरफ़ तो उनके घर की हालत यह थी ओर दूसरी और उनके पिता, चाचा सबको शराब की लत लगी हुई थी. उनके घर में शराब की इस लत की वजह से पहले भी एक मौत हो चुकी थी फिर भी उनके पिताजी शराब छोड़ने के लिए नही मानते थे.
अगर सही ढंग से देखा जाए तो उनके घर की आर्थिक स्थिति से लेकर घर के वातावरण तक सब कुछ संघर्ष से भरा था.
विवेक के गांव में उनकी जाति के अधिकतर व्यक्ति मुख्य तौर पर जिस काम को करते थे वह थेय्यम के सीज़न में शुरू होता था. इस त्यौहार के मौसम में उनकी जाति के लोग अपने पूरे शरीर पर रंग लगाकर एक खास तरह के कपड़े पहनकर तैयार होते थे और उसके बाद वे नृत्य करते थे.
नृत्य करने के दौरान वे नंगे पैर अंगारों पर भी चलते थे. आग पर चलते हुए नृत्य करने के लिए सभी मर्द शराब का सहारा लेते थे.
इस तरह से शराब पीकर नृत्य करने से उन्हें तकलीफ कम होती थी या नशे के चलते वे चेतना शून्य हो जाते थे, इस बात का तो नहीं पता परंतु सभी लोग शराब पीकर ही काम पर जाते थे.
इस काम के लिए जो खास तरह की शराब पाई जाति थी उसकी आदत बाद उत्सव के बाद में भी नहीं जाती थी और इस कारण से वहाँ के अधितर मर्द विवेक के पिता की तरह नशे के आदि हो जाते थे.
इस तरह से शराब पीने के बाद वे अपने होश खोकर अपने घर की औरतों से गाली-गलौज़ करते थे. ऐसे माहौल में विवेक का शुरुआती जीवन व्यतीत हुआ था.
विवेक की माँ ने बच्चों के लिए लिया फ़ैसला
विवेक की मां एक समझदार औरत थी ओर अन्य परिवार से अलग थीं. वह गांव की अन्य औरतों की तरह दूसरों के घर में कपड़े धोकर अपना घर-खर्च नहीं चलाती थी (जैसी कि उस गाँव की प्रथा थी). विवेक की माँ पढ़ी-लिखीं थीं और पास के ही पोस्ट ऑफिस में क्लर्क के पद पर काम करती थी.
उन्होंने अपने घर के माहौल को बदलने के लिए काफ़ी प्रयास किए किंतु उसके बावजूद भी जब कुछ नहीं बदला तो उन्होंने अपने बच्चों को लेकर अपने मायके जाने का फैसला कर लिया.
उनके मायके में भी पैसे की कमी तो थी परंतु घर का माहौल उनके ससुराल जैसा नहीं था. विवेक ने यहां पर आकर एक अच्छे स्कूल में एडमीशन लिया.
विवेक ने स्कूल में एडमीशन तो ले लिया किंतु उनके सामने समस्या यह थी कि उनका स्कूल घर से 25 किलोमीटर दूर था और स्कूल जाने के लिए एक तरफ के सफर में दो बस और एक ट्रेन लेनी पड़ती थी. इस प्रकार से हर स्कूल जाने ओर फिर घर आने के लिए उन्हें 50 किलोमीटर का सफर तय करना होता था.
विवेक को स्कूल से घर आने के बाद कुंए से पानी भरना, घर साफ करना (मिट्टी का घर बहुत गंदा होता था), बर्तन धोने जैसे अन्य काम भी करने होते थे ताकि उनकी मां नौकरी से घर आकर थोड़ा आराम कर सकें.
दूसरे शब्दों में कहे तो विवेक को अपनी पढ़ाई के लिए बिलकुल भी समय नहीं मिलता था. विवेक ने इसका भी एक हाल निकाल लिया ओर धीरे-धीरे चलती गाड़ी में लिखने और होमवर्क करने की आदत डाली. इस प्रकार से विवेक आराम से बस या टैक्सी में बैठकर पढ़ाई करने लगे.
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IAS V K VIVEK की शिक्षा (Education)
विवेक अपनी बचपन से ही पढ़ाई में हमेशा से होशियार थे ओर क्लास 12 के बाद एआईईईई परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने एनआईटी त्रिचि से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. विवेक पढ़ाईं करने में कितने होनहार थे इस बात का पता इससे चलता है कि इंजीनियरिंग करने के बाद उन्होंने कैट की परीक्षा पास की और आईआईएम कलकत्ता से अपना एमबीए किया.
एमबीए करने के कुछ समय बाद तक उन्होंने नौकरी भी की परंतु इस नौकरी में उनका मन नहीं लगता था. दरअसल उन्हें अपनी पढ़ाई के दौरान सोशियोलॉजी पढ़ते समय इस बात का अहसास हुआ कि उनके पिता की शराब की लत के पीछे केवल वे नहीं बल्कि वहां के गाँव का पूरा सामाजिक ढ़ांचा भी जिम्मेदार था. वे अपने गांव में एक जाति विशेष के होने के कारण भेदभाव भी देख चुके थे.
ऐसे ही अन्य कई कारणों के कारण उन्होने सिविल सर्विस के क्षेत्र में जाने का फ़ैसला किया. वे जहां पर रहते थे वहाँ पर उनकी जाति के अलावा अन्य जाति के लोगों के साथ भी भेदभाव होता था, विवेक उस समय ऐसे लोगों के लिये कुछ करना चाहते थे.
नौकरी छोड़ की यूपीएससी की तैयारी
विवेक ने शुरुआत में तो अपनी नौकरी करने के साथ ही यूपीएससी (UPSC) तैयारी की लेकिन तैयारी करने के कुछ समय बाद ही उन्हें अहसास हो गया कि यह परीक्षा अन्य परीक्षाओं से कई ज्यादा मुश्किल थी और ऐसे में वह फुल टाईम डिवोशन मांग रही थी.
अंततः विवेक ने डेढ़ साल नौकरी करने के बाद अपनी नौकरी से क्विट करते हुए पूरी तरह से परीक्षा की तैयारी में खुद को झौक दिया. यूपीएससी के अपने पहले प्रयास में वे सफल नहीं हुए और इसी बीच जब दोबारा उनके प्री के एक्जाम का नंबर आया तो उस समय उन्हें खबर मिली की उनके पिताजी का देहांत हो गया है.
यह समय विवेक के लिए बहुत कठिन था क्योंकि प्री की परीक्षा में केवल 15 दिन बचे थे. लेकिन विवेक ने हिम्मत न हारते हुए इसी मानसिक स्थिति के साथ परीक्षा दी.
आख़िरकार उन्हें अपने सालों की मेहनत और लगन का फल मिला और उनका यूपीएससी परीक्षा में चयन हो गया. उन्होंने यूपीएससी की तीनों परीक्षाएं पास कर लीं थी. विवेक की यूपीएससी परीक्षा में 667वीं रैंक आई थी.
आखिरकार उनके सालों के संघर्ष को अपनी आख़िरी मंजिल मिली. विवेक अपनी इस सफलता का श्रेय अपने मां-बाप को देते हुए कहते हैं कि उनके पिता और मां की स्थिति और विपरीत हालातों ने ही उन्हें जीवन में कुछ अलग ओर बड़ा करने का साहस दिया. उनकी मां ने उन्हें उनकी छोटी उम्र में ही समझा दिया था कि केवल एजुकेशन से ही उनकी जिंदगी बदल सकती है.
विवेक ने भी अपनी माँ की इस बात को गांठ बांध लिया और प्राइमरी से लेकर अंत तक खूब मन लगाकर पढ़ाई की. विवेक का यह मानना हैं कि अगर किसी बच्चे का बेस अच्छा हो तो उसे भविष्य में सहूलियत रहती है.
विवेक का यह सफ़र हमें बताता है कि हम कहां जन्में हैं, ओर किन हालातों में जन्में हैं, यह सब कुछ तो हमारे हाथ में नहीं है पर उन हालातों को बदलना हमारे हाथ में जरूर है.
इसलिए अपने वर्तमान की स्थितियों को कभी भी अपने भविष्य का आधार न बनाएं और हालातों को सुधारने के लिए जमकर मेहनत करें. ईमानदार प्रयास और खुद पर विश्वास के साथ व्यक्ति कोई भी मुकाम हासिल कर सकता है.
ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.
तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…