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LAXMAN DAS MITTAL – LIC एजेंट से सोनालिका ट्रेक्टर कंपनी के सीईओ तक का संघर्षपूर्ण सफर, कभी एक कंपनी ने डीलरशिप देने से किया था इंकार

“खुदी को कर बुलंद इतना की खुद खुदा आकर पूछे की बता बन्दे तेरी रज़ा क्या है”

LAXMAN DAS MITTAL SUCCESS STORY : आप ने अक्सर सुना होगा की कुछ लोग गरीबी और अभाव को ही अपना हथियार बना पूरी मजबूती से लक्ष्य की ओर टूट पड़ते हैं, कुछ ऐसा ही कारनामा कर दिखाया है आज की कहानी के रियल हीरो – लक्ष्मण दास मित्तल (LAXMAN DAS MITTAL) ने. एक वक़्त ऐसा भी था जब लक्ष्मण दास मित्तल आर्थिक तंगी और कर्ज के बोझ तले दबे जा रहे थे.

उस समय लक्ष्मण दास मित्तल के जीवन में अंधकार के सिवा और कुछ नहीं था, इसके अलावा कोई उनका हाथ थाम कर समझाने वाला और रास्ता दिखाने वाला भी नहीं था. ऐसे में उन्होंने स्वयं अपने जीवन की कहानी लिख डाली और कुछ अलग कर दिखाया जिससे वे दुनिया के उन लोगो की लिस्ट में शामिल हो गए जिनके पास अपार धन-दौलत और शोहरत है.

LAXMAN DAS MITTAL

LAXMAN DAS MITTAL का बचपन

लक्ष्मण दास मित्तल का जन्म पंजाब राज्य के मोगा जिले के भिंडरकला गांव में एक गरीब परिवार में हुआ था. उनके पिता हुकुम चंद स्वयं दुसरो का हुकुम मानते थे अर्थात वे वहाँ की कृषि अनाज मंडी में आढ़ती (दलाल) का कार्य करते थे उनके इसी काम से परिवार का खर्चा चला करता था, जो की कभी भी पूरा नहीं पड़ता था और उन्हें अन्य कार्यो के लिए रिश्तेदारों और मित्रो से कर्जा लेना पड़ता था. इस तरह से धीरे-धीरे उनका परिवार कर्ज के बोझ तले दबा जा रहा था.

लेकिन उनके पिता द्वारा शुरू से ही शिक्षा को महत्त्व दिया गया, अतः उन्होंने अपने पुत्र लक्ष्मण दास को हमेशा शिक्षित होने के लिए प्रेरित किया. 

लक्ष्मण दास ने अपनी स्नातक सरकारी कॉलेज से पूरी की. उन्होंने आगे मास्टर डिग्री (अंग्रेजी और उर्दू साहित्य) में पत्राचार के माध्यम से “पंजाब यूनिवर्सिटी” से की, अंग्रेजी साहित्य में तो उन्हें गोल्ड मैडल भी मिला लेकिन इतनी पढाई के बावजूद लक्ष्मण दास मित्तल एक अच्छी नौकरी नहीं प्राप्त कर सके.

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LAXMAN DAS MITTAL
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जब LIC एजेंट के रूप में कार्य किया

आखिरकार नौकरी की तलाश से थक हार के वर्ष 1956 में जब भारत में बीमा (Insurance) इंडस्ट्री की शुरुआत हुई थी, एवं पहली सरकारी बीमा कंपनी एलआईसी (LIC) की नीव रखी गयी. तब उसमे एजेंट के रूप में जीवन की नयी पारी स्टार्ट की और हमेशा की तरह यहाँ भी उन्होंने अपने मेहनत के दम पर अच्छा काम किया और कुछ ही समय में उन्हें फील्ड ऑफिसर के तौर पर पदोन्नति मिली. जहा उन्हें भारत में अलग अलग राज्यों में जाने का मौका मिला.

उस समय उनकी जीवन की गाडी ठीक चल रही थी लेकिन उनकी कमाई का बड़ा हिस्सा तो लोगो से लिए गए कर्जो को चुकाने में ही चला जाता था, उसके पश्चात जो बचता था उसको वे उसे सेव करते रहे, वे जानते थे की ज़िन्दगी भर इस नौकरी के बुते वे कुछ भी हासिल नहीं कर पाएंगे क्यूंकि सारी कमाई तो कर्ज चुकाने में ही खत्म हो जाएगी.

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खेती के उपकरणो की कमी को दूर करने का ज़िम्मा लिया

अपने अनुभव और विभिन्न राज्यों के दौरों से उन्हें एक बात समझ में आयी की किसानो के लिए अभी भी खेती करने के लिए जरुरी उपकरणों की बेहद कमी है और जो भी उपकरण बाजार में उपलब्ध है वे उनकी पहुंच से बाहर है.

साल 1966 में लक्ष्मण दास मित्तल ने इसी क्रम में एग्रीकल्चर मशीन बनाने का कारखाना खोला लेकिन तीन वर्ष के भीतर उन्हें उस कारखाने को बंद करना पड़ा साथ ही उन्हें बहुत ज्यादा नुक्सान उठाना पड़ा. अपनी कमाई से जो बचत उन्होंने की थी वो तो गयी ही साथ ही अन्य लोगो का कर्जा और हो गया इतना सब कुछ होने के बावजूद लक्ष्मण दास ने हिम्मत नहीं हारी.

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जब MARUTI ने DEALERSHIP देने से मना किया

इस बार एक बार फिर उठ खड़े होने की तमन्ना में लक्ष्मण दास मित्तल ने “मारुती” कंपनी की डीलरशिप लेने के लिए अप्लाई किया किन्तु उनके आवेदन पर कोई सुनवाई नहीं हुई. अंत में उन्होंने एक बार पंजाब यूनिवर्सिटी में किसानो के लिए अनाज और भूसा अलग-अलग करने की मशीन को देखा और उन्हें आईडिया आया. फिर वे होशियारपुर आ गए और जुट गए नए सिरे से थ्रेसर को तैयार करने में और इस बार उनकी मेहनत रंग लायी और आठ सालो में विश्व में उनके बनाए सोनालिका थ्रेसर को पहचान मिली.

उनके बनाये थ्रेसर की सफलता देखकर किसान भाइयो ने उन्हें सुझाव दिया की वे उनके लिए ट्रैक्टर का निर्माण करने का कारखाना लगाए जिससे कम कीमत में अच्छा ट्रैक्टर मिल सके लक्ष्मण दास मित्तल को भी किसानो का सुझाव अच्छा लगा और उन्होंने वर्ष 1994 में ट्रैक्टर बनाने का कारखाना स्टार्ट किया जहा उन्होंने दो तरह के ट्रैक्टर का निर्माण किया वर्ष 1995 में भोपाल लैब टेस्टिंग में भी उनके असेम्बल किये ट्रैक्टर की रिपोर्ट पॉजिटिव आयी.

लेकिन ट्रैक्टर की मैन्युफैक्चरिंग के लिए एक समस्या थी पैसो की लेकिन किसान भाइयो के आग्रह के साथ उन्हें भी इस काम में भविष्य नज़र आ रहा था. इसी वजह से अपने नज़दीकी डीलर से बात की जहा वे बिना ब्याज के पैसा देने को तैयार हो गए. फिर क्या था लक्ष्मण दास मित्तल ने लगभग 22 करोड़ से जालंधर रोड पर “सोनालिका ट्रैक्टर” का कारखाना खोला जहा उनका बनाया पहला ट्रैक्टर वर्ष 1996 में बाजार में उतारा.

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आज देते है दूसरों को DEALERSHIP

इसकी सफलता के बाद से लक्ष्मण दास मित्तल ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और आज उनका “सोनालिका” ब्रांड (ट्रैक्टर एवं थ्रेसर) विश्व के 74 देशो में एक्सपोर्ट किया जाता है इसके साथ ही दुनिया के 5 देश में इनका प्लांट भी लगाया गया है. 

लक्ष्मण दास को मारुती द्वारा अपनी डीलरशिप देने से इंकार कर दिया गया था आज उनकी कंपनी सोनालिका लोगो को डीलरशिप देती है. लक्ष्मण दास की निजी सम्पति 1200 करोड़ से ज्यादा है और वे दुनिया के गिने-चुने अरबपतियों की सूची में शामिल है.

अंत में लक्ष्मण दास मित्तल की कहानी एक ऐसे धरतीपुत्र की है जो कभी फर्श पर था और आज अपनी मेहनत और जूनून के बुते अर्श को छू रहा है.

ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.

तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ

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