Autokame Success Story : जानिए कैसे राकेश छाबड़ा (Rakesh Chhabra) ने 60 साल पहले ऑटो रबर पार्ट्स बनाने से शुरुआत करते हुए अपनी मेहनत के दम पर करोड़ों की कंपनी ऑटोकेम (Autokame) तक का सफ़र तय किया?
भारत में वर्तमान समय में ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री निरंतर ऊँचाइयों को छू रहा है. देश में कार खरीदने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. इसी बात को देखते हुए कार कंपनियां भी लोगों के बजट और उनकी पसंद को देखते हुए भारतीय बाजार में अपनी नई कारें लॉन्च कर रही हैं. और यही कारण है कि देश में कार के एक्सटीरियर और इंटीरियर एक्सेसरीज की डिमांड में भी निरंतर वृद्धि हो रही है.
आज हम आपको इन्ही में से एक इंटीरियर एक्सेसरीज ब्रांड ऑटोकेम (Autokame) सोनीपत की कंपनी चौधरी एंटरप्राइजेस के बारे में बताएंगे जो कि कार के एक्सटीरियर व इंटीरियर एक्सेसरीज को बेचती है.
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ऑटो रबर पार्ट्स बेचने से की अपनी शुरुआत
चौधरी एंटरप्राइजेस में वर्तमान समय में पार्टनर राकेश छाबड़ा ने हाल ही में एक इंटरव्यू में बताया कि उनका परिवार हरियाणा स्थित हिसार जिले से ताल्लुक रखता है. राकेश छाबड़ा ने बताया कि उनके पिता आत्म प्रकाश छाबड़ा ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से अपनी लॉ की पढ़ाई की थी.
उन्हें उस समय कई अच्छी नौकरियों का प्रस्ताव भी मिला और पढ़ाई में अच्छे होने के कारण उन्हें स्कॉलरशिप बेसिस पर बर्मिंघम में एलएलएम के लिए एडमिशन भी मिला था.
राकेश के दादा ने इसके बावजूद उनके पिता को विदेश नहीं जाने दिया और स्विम का बिजनेस करने के लिए प्रेरित किया. अपने पिता की बात को मानते हुए उनके पिता बिजनेस करने के लिए सोनीपत आए और अपने एक दोस्त के साथ मिलकर साल 1963 में पार्टनरशिप में ऑटो रबर पार्ट्स बनाने का बिजनेस शुरू किया.
कार सीट कवर्स बनाने की शुरुआत कब से?
चौधरी इंटरप्राइसेस अपने शुरुआत से लेकर वर्ष 1980 तक ऑटो रबर पार्ट्स ही बना रही थी. राकेश छाबड़ा ने एक इंटरव्यू में बताया कि वो कंपनी के साथ साल 1980 में जुड़े. उनके कंपनी के साथ जुड़ने के दो साल बाद वर्ष 1982 में उनकी कंपनी ने बड़े फैसले लेते हुए कारमैट्स बेचने की शुरुआत की.
इसके अगले वर्ष 1983 में कंपनी ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए कारपेट्स को भी अपने पोर्टफोलियों में जोड़ा. इसी शुरुआत के साथ वहाँ के डीलर्स ने उन्हें कार सीट कवर बेचने का सुझाव भी दिया. साल 1984 से चौधरी एंटरप्राइजेस ने इस पर काम की शुरुआत करते हुए Autokame Seat Cover की शुरुआत की. इसके बाद साल 1987 में इसकी मैन्युफैक्चरिंग शुरू की गई.
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ऑटोकेम (Autokame) ब्रांडनेम से कब शुरू की ब्रिकी?
साल 1995 तक चौधरी एंटरप्राइजेस बिना किसी ब्रांडनेम के कार की एक्सेसरीज को बाज़ार में बेच रही थी. साल 1995 में कंपनी ने एक नया कदम उठाते हुए ऑटोकेम (Autokame) ब्रांडनेम के साथ इन्हें बेचना शुरू कर दिया.
इसके अगले ही साल कंपनी ने वर्ष 1996 में देश का पहला सीट कवर कैटालॉग भी लॉन्च किया. वर्तमान समय में ऑटोकेम (Autokame) कंपनी का बिजनेस नार्थ इंडिया को छोड़कर देश के अन्य हिस्से में खूब फैला. साल 2002 में कंपनी ने एक नया दमन उठाते हुए 3 साल की वारंटी के साथ प्रोडक्ट निकाले.
कंपनी द्वारा 3 साल की वारंटी देने की वजह से कंपनी को काफी ऑर्डस मिलने शुरू हो गए. हमारे देश में वर्ष 2007 तक कार सीट का मार्केट पूरी तरह से बदल गया क्योंकि उस समय तक हर गाड़ी की सीट अलग-अलग टाइप की आने लगी.
इसका फ़ायदा ऑटोकेम (Autokame) कंपनी को मिला क्योंकि उस वक्त चौधरी एंटरप्राइजेस उन कुछ कंपनियों में शामिल थी, जो हर कार के हर मॉडल की सीट की फिटिंग के अनुसार अपने सीट कवर्स उपलब्ध करा रही थी. 2007 से लेकर 2012 तक उनकी कंपनी ने खूब तरक्की की.
कार कंपनियों के साथ कैसे शुरू किया काम?
चौधरी एंटरप्राइजेस ने साल 2007 में कार कंपनियो के साथ ओरिजिनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर के साथ अपनी शुरुआत करते हुए पहली बार जनरल मोटर्स के साथ काम की शुरुआत की. इसके 5 साल बाद 2012 में एक कदम आगे बढ़ाते हुए कंपनी मारुति के साथ ओई वेंडर के तौर पर जुड़ी.
इसके अगले एक साल में मारुति ने 35000 से ज्यादा सीट कवर बेचे. इसके बाद कंपनी ने हुंडई, महिन्द्रा जैसी कंपनियो के साथ मिलकर काम किया.
वर्ष 2016 से कंपनी गोदरेज के साथ भी जुड़ गई है क्योंकि अब कंपनी मैट्रेसेज के कुछ पार्ट्स भी बनाती है. वर्ष 2020 से चौधरी एंटरप्राइजेस चेयर्स के कुछ पार्ट्स भी बनाने लगी. साल 2021 से कंपनी ने अमेरिका और जापान में एक्सपोर्ट की भी शुरुआत कर दी. वर्तमान समय में कंपनी का टर्नओवर 1 अरब रुपये से ज्यादा है.
ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.
तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…