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ASHOK KHADE : किसी समय दो वक़्त की रोटी के लिए किया बेहद संघर्ष, आज है 500 करोड़ की कंपनी के मालिक

“जिन्दगी कांटों का सफर है, हौसला इसकी पहचान है। रास्ते पर तो सभी चलते हैं, लेकिन जो रास्ता बनाये वही इंसान है”

ASHOK KHADE SUCCESS STORY : ऊपर लिखी हुई चंद शब्दों से बनी यह पंक्तियाँ हमें काफ़ी कुछ बयाँ कर जाती है. ये पंक्तियाँ हमें यह अहसास कराती है कि जीवन की डगर चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हो किंतु उस कठिन डगर पर आगे की और बढ़ने के लिए कुछ ऐसा करना होता है, जो सबसे अलग हो.

व्यक्ति की जिंदगी की राह में सफलता उन्ही चंद लोगों को ही हासिल होती, जो बिना थके-बिना रुके अपने लक्ष्य को लेकर निरंतर आगे बढ़ते चले जाते है ओर अंत में अपनी मेहनत के दम पर कामयाबी के इतने झण्डे गाड़ कर ही दम लेते है ऐसे लोग ओर उनका जीवन आने वाली भावी युवा पीढ़ी-दर-पीढ़ी के लिए प्रेरणा बन जाती है.

आज की इस स्टोरी में भी हम ऐसे ही एक प्रेरक व्यक्तित्व अशोक खरे (ASHOK KHARE) की कहानी लेकर आए हैं, जिन्होंने गरीबी के सामने हार न मानते हुए तमाम तरह की विपरीत परिस्थितियों से बाहर निकल कर कामयाबी की और कदम बढ़ाते हुए अपना नाम सफल लोगों के नाम के साथ सामिल कर लिया. अशोक खड़े आज देश के एक प्रमुख ओर दिग्गज उद्योगपति के रूप में जाने जाते हैं, इनकी कंपनी का टर्नओवर 500 करोड़ के पार है.

ASHOK KHARE का जन्म ओर बचपन का संघर्ष

अशोक खरे का जन्म महाराष्ट्र के सांगली जिले में एक बेहद ही गरीब परिवार में हुआ. अशोक की जिंदगी में गरीबी और संघर्ष उनके पैदा होने के साथ ही दस्तक दे चुका था. छह बच्चे के इनके इस परिवार को किसी तरह से दो वक़्त का खाना नसीब हो पाता था. आर्थिक तंग़हाली के चलते कभी-कभी तो कई दिनों तक इन्हें भूखे पेट ही रात गुजारनी होती थी.

इनके पिता ने रोजगार की तलाश में मुंबई का रुख किया और पेड़ के नीचे बैठ कर राहगीरों के जूते-चप्पल सिलने का काम करने लगे. इनके पिता द्वारा दिन भर की मेहनत के बावजूद भी पूरे परिवार का भरण-पोषण करना अत्यंत मुश्किल भरा था. अशोक अपनी स्कूल की सातवीं कक्षा तक पढ़ाई करने के बाद दूसरे गांव के स्कूल में पढ़ने चले गए.

अशोक अपने बचपन में हुए अनुभव के आधार पर यह बात अच्छी तरह से समझ चुके थे कि गरीबी और अभाव से बाहर निकलने के लिए उनके सामने पढ़ाई ही एकमात्र सहारा है. अपनी गरीबी ओर विपरीत हालातों से से ही प्रेरणा लेते हुए उन्होंने जमकर पढ़ाई की और आगे बढ़ते रहे.

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ASHOK KHADE

जब कीचड़ के कारण आटा हुआ ख़राब

अपने बचपन के दियों के संघर्ष को याद करते हुए अशोक बताते हैं कि एक बार उनकी माँ ने उन्हें चक्की से आटा लाने के लिए भेजा था. बारिश का मौसम होने की वजह से जब वे आटा लेने के लिए गए तो हर तरफ कीचड़ था. अचानक से कीचड़ की वजह से अशोक फिसले और उनका सारा आटा कीचड़ में गिर कर ख़राब हो गया.

अशोक ने जब यह बात अपने घर पर पहुंचकर अपनी माँ को बताई, तो उनकी माँ रोने लगीं. क्योंकि उनके पास अपने बच्चों को खिलाने के लिए कुछ भी नहीं बचा था. फिर माँ ने गांव के ही रहने वाले पाटील के घर से थोड़े भुट्टे और कुछ अनाज मांगकर उन्हें पीसकर उनकी रोटी बनाई और अपने बच्चों को खिलाया. उस दिन उनकी माँ खुद भूखी रहीं.

अपनी माँ को इस तरह से गरीबी से लड़ते देख अशोक ने उसी दिन यह तय कर लिया था कि उन्हें किसी भी स्थिति में अपने परिवार को गरीबी से निकालना है.

ट्यूशन पढ़ाकर खुद का गुजारा किया

अशोक अपनी बोर्ड की परीक्षा देने के बाद मुंबई में अपने बड़े भाई के पास पहुंचे. उनके भाई को उस समय तक मझगांव डॉक यार्ड में वेल्डिंग अप्रेंटिस की नौकरी मिल गई थी. उनके भाई को उन्हें इन्हें आर्थिक सहायता प्रदान करते हुए आगे की पढ़ाई करने के लिए कॉलेज जाने के लिए प्रोत्साहित किया.

किंतु अशोक अपने बड़े भाई की आर्थिक हालात को बहुत अच्छे से जानते थे अंत में उन्होंने ट्यूशन पढ़ाने का फ़ैसला लिया ओर इस तरह से खुद के कॉलेज खर्चे निकालने शुरू कर दिए. कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद अशोक आगे की पढ़ाई करना चाहते थे लेकिन परिवार की स्थिति इस लायक़ नही होने के कारण उन्होंने परिवार की मदद के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ मझगांव डॉक में अप्रेंटिस का काम करना शुरू कर दिया. इस नौकरी से उन्हें 90 रुपए स्टाइपेंड मिलती थी.

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ऐसे खड़े की 500 करोड़ की कंपनी

अशोक की हैंडराइटिंग शुरू से ही काफी अच्छी थी और इसी वजह से उन्हें कुछ समय बाद ही शिप डिजाइन की ट्रेनिंग दी जाने लगी. उनकी मेहनत ओर लगन को देखते हुए चार साल बाद ही उन्हें परमानेंट ड्राफ्ट्समैन बना दिया गया और उनका काम था जहाजों की डिजाइन तैयार करना.

इस प्रमोशन से उनकी सैलरी भी बढ़कर करीबन 300 रुपए हो गई. अशोक अपनी जिंदगी में कुछ बड़ा करना चाहते थे और इसके लिए उन्हें उच्च-शिक्षा प्राप्त करने की अत्यंत आवश्यकता थी. अंत में उन्होंने नौकरी के साथ-साथ डिप्लोमा करने का निश्चय कर लिया.

उनके डिप्लोमा करने के कारण चार साल बाद उन्हें क्वालिटी कंट्रोल डिपार्टमेंट में ट्रांसफर मिल गई. इसी दौरान एक बार कंपनी के काम के सिलसिले में उन्हें जर्मनी जाने का मौका मिला जर्मनी में जाकर उन्होंने दुनियाभर में मशहूर जर्मन टेक्नोलॉजी को बेहद करीब से देखा. यहाँ पहुँचने पर उन्हें अपने काम की मजबूती का अहसास हुआ.

जर्मनी से भारत लौटने पर उन्होंने खुद की एक फर्म बनाने की सोची. ओर कुछ समय बाद उन्होंने अपने भाइयों के साथ मिलकर दास ऑफशोर इंजीनियरिंग प्रा.लि. की आधारशिला रखी. अपनी फ़र्म की शुरुआत में इन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा किंतु हर छोटे-मोटे काम को इमानदारी पूर्वक करते हुए अशोक ने अपने आगे बढ़ने का सिलसिला जारी रखा.

उनकी मेहनत ओर लगन का ही परिणाम है की दास ऑफशोर के क्लाइंट्स की लिस्ट में ओएनजीसी, ह्युंडई, ब्रिटिश गैस, एलएंडटी, एस्सार, बीएचईएल जैसी कंपनियां शामिल हैं. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि अबतक अशोक खरे की कंपनी ने समुद्र में 100 से ज्यादा प्रोजेक्ट पूरे कर लिए है. वर्तमान समय में दास ऑफशोर में 4,500 से ज्यादा कर्मचारी हैं तथा इनकी फ़र्म का टर्न ओवर 500 करोड़ के पार है.

ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.

तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…

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