“इतना काम करिये की काम भी आप का काम देखकर थक जाय I”
Success Story Of IPS Indrajeet Mahatha: पिता एक परिवार का स्तंभ होता हैं क्योंकि वो शारीरिक, भावनात्मक और वित्तीय सहित हर तरह से अपने परिवार की सुरक्षा करता है.
एक पिता अपने बच्चों की सफलता के लिए कुछ भी कर सकता है ओर किसी भी हद तक जा सकता है. वहीं हर बच्चा भी सफल होकर एक दिन अपने पिता का नाम रोशन करना चाहता है.
आज की स्टोरी भी एक ऐसे पिता ओर पुत्र की है जहां एक समय पिता अपने बेटे की पढ़ाई के लिए अपनी किडनी बेचने को तैयार था. पिता के इस त्याग को सार्थक करते हुए उनके बेटे ने आईपीएस अधिकारी बनकर उन्हें गौरवान्वित किया.
आज की कहानी के पात्र इंद्रजीत महथा (IPS INDRAJEET MAHATHA) उन शख्सियतों में से हैं, जिन्हें देखकर हर किसी का मन यह सोचकर आश्चर्य से भर उठता है कि कोई बच्चा इतनी गरीबी, इतने अभाव में रहने के बावजूद कैसे देश की सबसे बड़ी और कठिन परीक्षा को पास कर सकता है.
इंद्रजीत जिस जगह के रहने वाले हैं, वहां पर शायद ही इस पद के बारे में कभी किसी ने सुना या सोचा हो. पिछले पचास-साठ सालों में इनके वहाँ से कोई भी व्यक्ति आईएएस ऑफिसर नहीं बना.
जब ऐसी जगह का एक छोटा सा बच्चा जबरदस्त अभावों के बीच रहकर अपने माता-पिता की मजबूरी को पल-पल देखता है ओर उसके बाद इतनी बड़ी सफलता प्राप्त करता है तो उसे जानने वाले हर शख्स का सीना उसके प्रति गर्व ओर सम्मान से चौड़ा हो जाता है.
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IPS INDRAJEET MAHATHA का बचपन ओर ग़रीबी
IPS इंद्रजीत महथा का जन्म झारखंड के बोकारो जिले के एक छोटे से गाँव में एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था. इंद्रजीत ने अपने बचपन में पांचवीं कक्षा से ही बड़ा ऑफ़िसर बनने का सपना देखना शुरू कर दिया था.
IBN-7 के साथ हुए एक इंटरव्यू में, इंद्रजीत ने अपने सपने के बारे में कहा कि उन्होंने एक अधिकारी बनने का फैसला तब किया जब उन्होंने अपने शिक्षक को पांचवीं कक्षा में जिला प्रशासन के बारे में बात करते हुए सुना था.
IPS INDRAJEET MAHATHA के पिता का संघर्ष
एक किसान के लिए उसके खेत भी औलाद के जैसे ही होते हैं. इंद्रजीत महथा के पिता भी एक गरीब किसान थे और किसी तरह घर के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर रहे थे.
किंतु अपने बेटे की पढ़ाई के लिए उन्होंने एक बहुत ही कठोर निर्णय लेते हुए अपने खेतों को बेचने का निर्णय लिया. जिन्हें सालों तक सींचा, ओर जिनकी देखरेख की, उन्हें बेचने का निर्णय लेना उनके लिए आसान नहीं नही था क्योंकि वो खेत ही उनकी आजीविका का एकमात्र साधन थे.
उनके पिता ने उस समय अपने बेटे को हर वो जरूरी संसाधन मुहैया कराने के अलावा कुछ नहीं सोचा जिसकी जरूरत उन्हें यूपीएससी (UPSC) परीक्षा की तैयारी के लिये पड़ती है.
इंद्रजीत महथा ने भी अपने पिता के उस सबसे बड़े त्याग की कीमत को समझते हुए कड़ी मेहनत के साथ खुद को तैयारी के लिए झौंक दिया और साल 2008 में दूसरे प्रयास में देश की सबसे प्रतिष्ठत परीक्षा पास कर ली. इस परीक्षा में उन्हें 100 वीं रैंक मिली थी.
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मिट्टी का कच्चा घर और उसकी दरारें
इंद्रजीत महथा का जीवन जिस घर में गुजरा, वह मिट्टी और खपरैल से बना हुआ था. एक समय ऐसा भी आया जब देखरेख के अभाव में उस घर में दरारें भी आ गई. घर को ठीक न करा पाने की मजबूरी में उनकी मां और दोनों बहनों को वह घर छोड़कर उनके मामा के घर जाना पड़ा. परंतु इंद्रजीत नही जा पाए, क्योंकि इससे उनकी पढ़ाई का नुकसान होता.
एक इंटरव्यू में बात करते हुये इंद्रजीत महथा ने बताया कि किस प्रकार केवल एक आदमी के सहयोग से उनके पिताजी ने खुद घर बनाया था. वह आदमी ईंटें देता था ओर उनके पिताजी कन्नी लेकर प्लास्टर करते थे. उनके घर के हालात यह थे.
जब शिक्षक से DM के बारे में पता चला
अब अगर बात करें आईएएस की और उनका रुझान कैसे हुआ तो वह भी इंट्रेस्टिंग है, इंद्रजीत महथा की बुक में एक पाठ था जिला प्रशासन.
उस पाथ को पढ़कर इंद्रजीत ने जब अपने शिक्षक से पूछा कि जिले का सबसे बड़ा ऑफ़िसर कौन होता है तो उनके शिक्षक ने उन्हें जवाब दिया डीएम. इसके साथ ही उनके शिक्षक ने उन्हें यह भी बताया कि डीएम के अधिकार क्या-क्या होते हैं?
बस उसी समय से इंद्रजीत महथा ने मन ही मन यह तय कर लिया कि वे भी बड़े होकर एक दिन डीएम ज़रूर बनेंगे. उस समय शायद किसी ने भी नहीं सोचा होगा कि यह छोटा सा बच्चा अपनी धुन का इतना पक्का होगा कि एक दिन सच में यह यूपीएससी की परीक्षा को पास करेगा.
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पैसे की तंगहाली ओर मजबूरी का आलम
इंद्रजीत अपनी ख़राब आर्थिक हालत का जिक्र करते हुए कहते हैं कि उनके पास में इतने पैसे भी नहीं होते थे कि नये एडीशन की किताबें तक खरीद सकें. ऐसे में वे मजबूरी में पुराने एडीशन की किताबें जो लोग सामान्यतः रद्दी में बेचते हैं, उन्हें खरीदकर इंद्रजीत ने अपनी तैयारी की.
वे बताते हैं कि जब ग्रेजुएशन के बाद वे दिल्ली आये, ओर यहाँ पर आने के बाद उन्होंने जब यूपीएससी की तैयारी करना आरंभ किया तो उनकी पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए उनके पिता ने करीब 80 प्रतिशत खेत बेच दिये थे.
इंद्रजीत को तैयारी के दौरान ही इस बात का अहसास था कि उनके पास सफलता के अलावा कोई अन्य विकल्प ही नहीं है.
जब अपनी सम्पूर्ण मेहनत के बावजूद पहले प्रयास में उनका चयन नहीं हुआ तो उनके पिताजी ने उन्हें डांटा नहीं बल्कि इसके विपरीत उन्होंने उनकी हिम्मत बंधाते हुये उनसे कहा, ”अभी तो केवल खेत बिका है, में तो तुम्हें पढ़ाने के लिए अपनी किडनी तक बेच सकता हूं, तुम किसी भी प्रकार से पैसे कि चिंता मत करो और जितना पढ़ना है उतना पढ़ों.”
जब इंद्रजीत महथा ने अपने पिता के मुंह से ये शब्द सुने तो वे अपने पिता के प्रति आदर ओर सम्मान से नतमस्तक हो गये और उनका सफलता पाने का इरादा पहले से भी कहीं ज्यादा अटल हो गया. आखिरकार इंद्रजीत ने अपने दूसरे प्रयास में अपनी मेहनत ओर हिम्मत के दम पर सफलता हासिल कर ही ली.
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अन्य कैंडिडेट्स के लिए टिप्स –
इंद्रजीत कहते हैं, ”इच्छा करने से कभी कुछ नहीं होता, सफलता तो आपके इरादे के दम पर मिलती है. इच्छा तो हर कोई करता है परंतु जो व्यक्ति मजबूत इरादे रखते हुए अपनी इच्छा को पूरा करने के लिए आगे बढ़ता है, उसे ही सफलता मिलती है.” वे आगे कहते हैं कि सफलता प्राप्त करने के लिये व्यक्ति का संघर्ष करना अति आवश्यक है. संघर्ष किए बिना सफलता पाने की इच्छा, तीव्र नहीं होती.
इंद्रजीत महथा का मानना है की सफलता के दौरान आने वाले संघर्ष को कभी भी दुख नहीं समझना चाहिए, क्योंकि दुख तो केवल वह होता है, जिसकी क्षतिपूर्ति संभव नहीं हो परंतु इसके विपरीत संघर्ष आपको सुदृढ़ बनाता है.” वे अपनी सफलता के बारे में कहते हैं कि उनके जीवन में, उनका टूटा हुआ मकान, बिके हुए खेत, गरीबी जैसे संघर्ष अगर उनकी जिंदगी में नहीं होते तो शायद वे कभी भी इस सफलता के लिये इतने दृढ़ प्रतिज्ञ नहीं हो पाते.
अपने जीवन में सदैव परिश्रम करें क्योंकि परिश्रम की जगह अन्य कोई भी नहीं ले सकता और दुनिया की ऐसी कोई परीक्षा नहीं जिसे की कठिन परिश्रम, धैर्य और मजबूत इरादों के दम पर पास न की जा सके.
ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.
तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…