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MAHASHAY DHARAMPAL GULATI : 650 रुपये से हुई थी एक छोटी सी शुरुआत से लेकर देश के मसाला किंग तक पहुचने की कहानी

“इनकी सफलता का रास्ता लोगों के मुंह के स्वाद स्व होकर निकलता है”

MAHASHAY DHARAMPAL GULATI SUCCESS STORY : इस कहानी के मुख्य किरदार महाशय धरमपाल गुलाटी ( MAHASHAY DHARAMPAL GULATI ) भारत के ऐसे शख्स है जिन्होंने भारतीय बाजार मे अपने ब्रांड को इस प्रकार से पेश किया जिसने भारत सहित दुनिया के की देशों के ग्राहकों को अपने स्वाद का दीवाना बना लिया.

इसके अलावा यह दुनियाँ के एकमात्र ऐसे सीईओ थे जो जब तक जीवित रहे तब तक अपने ब्रांड के स्टार प्रचारक भी रहे, लोग उनके ब्रांड को नाम से ज्यादा उनके चहरे से जानते है.  

अपने जीवित रहते हुए देश के खुदरा बाजार में नई क्रांति लाने ओर कंज्यूमर प्रॉडक्ट बनाने वाली कंपनियों में सबसे ज्यादा कमाई करने वाले एकमात्र शख्स महाशय धर्मपाल गुलाटी के बारे मे आपको यह जानकर बड़ी हैरानी होगी कि उन्होंने सिर्फ 5वीं तक की पढ़ाई की थी ओर इसके बावजूद इनकी सैलरी सालाना 21 करोड़ रुपये थी.

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MAHASHAY DHARAMPAL GULATI

MAHASHAY DHARAMPAL GULATI को भारत-पाकिस्तान विभाजन मे भारत आना पड़ा

मसालों के शहंशाह महाशय धरमपाल गुलाटी को भारत मे किसी भी प्रकार की पहचान की जरूरत नहीं है. पाकिस्तान के सियालकोट में पैदा हुए धरमपाल सिर्फ 5वीं तक पढ़ाई के बाद भारत पाकिस्तान के बीच हुए 1947 के देश विभाजन के समय अपने परिवार के साथ पाकिस्तान में अपना सब कुछ छोड़कर दिल्ली आ गए और दिल्ली कैंट क्षेत्र में पूरे परिवार के साथ एक शरणार्थी कैंप में रहे.

उन्होंने अपने शुरुआती दिनों मे 650 रुपये में एक तांगा खरीदकर अपनी आजीविका शुरू की. कुछ दिनों के बाद उन्होंने तांगा बेचकर भारत मे एक बार फिर से अपना पुश्तैनी मसालों का धँधा शुरू किया. विभाजन से पहले 1919 में पाकिस्तान के सियालकोट में इनके पिता चुन्नी लाल की मसाले की एक छोटी सी दुकान थी. लेकिन उस वक़्त उन्होंने कभी यह नहीं सोचा था कि उनका बेटा एक दिन उनकी इस छोटी सी दुकान को 1,500 करोड़ रुपए से ज्यादा के साम्राज्य में तब्दील कर देगा.

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महाशिया दी हट्टी (MDH) इतनी बड़ी कंपनी कैसे बनी

धरमपाल ने अपने शुरुआती दिनों मे दिल्ली के करोल बाग में एक छोटी सी दुकान से अपना पुश्तैनी मसालों का धँधा शुरू किया. उन्होंने हमेशा से ही अपने मसालों की गुणवत्ता पर खास तौर पर ध्यान देते हुए किसी भी प्रकार की लापरवाही नहीं की. अपने शुरुआत के दिनों मे उन्होंने मसाले की पिसाई से लेकर उसकी पैकेजिंग तक का काम अपने घर में ही किया.

धरमपाल ने कम कीमत पर शुद्ध देशी मसाले मुहैया करवाते हुए उस समय के लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा. इनके मसाले की गुणवत्ता के कारण धीरे-धीरे बाज़ार में उनकी भी डिमांड बढ़ने लगी. समय के साथ धरमपाल ने छोटे-छोटे वितरकों के साथ साझेदारी करते हुए अन्य शहरों में भी अपने मसालों के माध्यम से पैठ जमाना शुरू कर दिया.

शुरूआती सफलता मिलने के बाद उन्होंने अन्य शहरों में खुद की फैक्ट्रियां खोलनी शुरू की और आज के समय मे भारत में एमडीएच की 15 फैक्ट्रियां चल रही है जो कि करीब 1,000 से ज्यादा डीलरों को मसाले सप्लाई करती हैं. यही नहीं ऑफिस भारत के अलावा दुबई और लंदन में भी है. आज के समय मे इनकी कंपनी लगभग 100 देशों को मसाला एक्सपोर्ट करती है. धरमपाल जी अपने उम्र के आखिरी दिनों तक फैक्ट्री, बाजार और डीलर्स का नियमित दौरा करते थे.

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MAHASHAY DHARAMPAL GULATI

अपनी सैलरी का 90 फीसदी हिसा देते थे दान

महाशय धरमपाल गुलाटी जब तक जीवित थे तब तक उन्होंने गरीबों के कल्याण के लिए अपनी सैलरी का 90 फीसदी हिस्सा दान किया.

आज के समय मे एमडीएच मसाले के 60 से ज्यादा उत्पाद हैं. जिनमे से इसके सबसे ज्यादा बिकने वाले उत्पाद है देसी मिर्च, चाट मसाला और चना मसाला, इन मसालों के हर महीने मे करोड़ों के लगभग पैकेट बिकते है.

धरमपाल गुलाटी जी हमेशा से ही जरुरामंद लोगों की सेवा में हाज़िर रहते थे. इन्होंने समाज सेवा करते हुए कई स्कूल, कॉलेज और अस्पतालों का निर्माण करवाया थे, जहाँ पर गरीबों और जरुरतमंदों को मुफ्त मे हर प्रकार की सेवाएं प्रदान की जाती है. इतना सब-कुछ करने के बावजूद वो अपनी सैलरी का 90 फीसदी हिस्सा चैरिटी में दान कर देते थे.

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MDH का बाजार मे चलता है एक-छत्र राज

इनकी कंपनी एमडीएच अपने शुरुआती दिनों से ही अपनी मसालों की गुणवत्ता ओर कीमतों से इनके प्रतिद्वंदी कंपनियों को कड़ी टक्कर देती रही है. दूसरी कंपनियां आज भी इनकी कंपनी की प्राइसिंग स्ट्रैटिजी को अमल में लाने की कोशिश करती है. एमडीएच मसाला कंपनी हमेशा से ही अपनी कीमतें कम रखती है इस कारण से मसाला बाजार मे इनका एक-छत्र राज है ओर इससे इनका फायदा भी ज्यादा होता है.

धरमपाल ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि “मेरे काम करने के पीछे यह प्रेरणा रहती है कि उपभोक्ताओं को कम से कम दाम में अच्छी ओर उत्तम गुणवत्ता का उत्पाद उपलब्ध कराया जाए.” महाशय धरमपाल की पहचान एक ऐसे मेहनती ओर जुझारू उद्यमी के तौर पर रही है जो उम्र के उस पड़ाव मे जहा पर अधिकतर लोग अपने घर तक सीमित हो जाते है, ऐसी स्थिति मे भी अपने जीवित रहते हुए फैक्ट्री, बाजार और डीलर्स का नियमित दौरा करते थे. जब तक उनको इस बात की तसल्ली नहीं मिल जाती है कि उनकी कंपनी में सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है, तब तक उन्हें चैन नहीं मिलता था. और यही इनके कंपनी की सफलता की वजह भी है.

ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.

तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…

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