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DEVIDATT GURJAR : गाँव का साधारण व्यक्ति जिसने शून्य से शुरुआत कर खड़ा दिया 250 करोड़ रुपये का कारोबार

“आपके आज के आर्थिक हालत आपके भविष्य का निर्धारण नहीं कर सकते”

DEVIDATT GURJAR SUCCESS STORY : अगर आपके आर्थिक हालत वर्तमान मे खराब है तो इसका यह अर्थ नहीं की आपका भविष्य भी आर्थिक रूप से कमजोर होगा. आपका आज का इरादा ही आपका भविष्य ओर जिंदगी का निर्धारण करने वाला है.

आज की इस कहानी के पात्र ने न सिर्फ शून्य से शुरुआत करते हुए अपने कारोबार को देश भर मे फैलाया बल्कि उन्होंने अपने नाम को बनाने के साथ-साथ हजारों लोगों को जीवन जीने का आधार भी प्रदान किया है यह व्यक्ति कोई ओर नहीं देविदत्त गुर्जर (DEVIDATT GURJAR) है जिन्होंने नीचे से शुरुआत कर मार्ग मे आने वाली कठिन बाधाओ को पार करते हुए करोड़ों रुपयों का साम्राज्य स्थापित किया है.

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DEVIDATT GURJAR

DEVIDATT GURJAR का जन्म ओर बचपन

देविदत्त गुर्जर का जन्म राजस्थान के सीकर जिले के बालरा गाँव मे 1954 मे एक गरीब परिवार मे हुआ, इनका सम्पूर्ण बचपन गरीबी मे ही बीता. इसी गरीबी ओर खराब आर्थिक स्थिति ने इन्हे अपने परिवार ओर समाज के लिए कुछ कर गुजरने का साहस दिया, इन्होंने जैसे तैसे कर अपनी है स्कूल तक की शिक्षा पूर्ण की किन्तु उसके बाद इन्होंने आगे बढ़ने की बजाय नौकरी करने के लिए मुंबई जाने का निर्णय लिया.

इन्होंने मुंबई जाने का निश्चय तो कर लिया किन्तु इनकी आर्थिक स्थिति इतनी बदतर थी की इनके पास मुंबई जाने के लिए किराया तक नहीं था. ऐसे मे इन्होंने इधर उधर से किसी तरह मुंबई जाने के किराये का जुगाड़ किया ओर मुंबई जैसे बड़े शहर मे बिना किसी की मदद ओर जान पहचान के नौकरी पाने के लिए हाथ पैर मारने शुरू किए.

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DEVIDATT GURJAR SUCCESS STORY

मुंबई मे नौकरी की तलाश ओर संघर्ष

देविदत्त गुर्जर अपने छोटे से गाँव से किसी तरह से निकलकर मुंबई तो पहुच गए किन्तु यह शहर जितना बड़ा था, यहा पर जीने के लिए संघर्ष भी उतना ही अधिक करना होगा यह बात भी उन्हे बहुत जल्द समझ आ गई जब उन्हे जीवन जीने के लिए दर-दर की ठोकरे खाने को विवश होना पड़ा.  

देविदत्त के लिए बिना किसी जान पहचान के यहा पर एक-एक दिन गुजारना तक मुश्किल हो रहा था. वे पूरे मुंबई मे एक जगह से दूसरी जगह पर नौकरी की तलाश मे भटकने लगे किन्तु उन्हे की दिनों तक सिर्फ असफलता ही देखने को मिली, इस दौरान देविदत्त ने कई-कई दिन बिना कुछ खाए भूखे रहकर गुजारे, किन्तु कुछ कर गुजरने के जज्बे ने उन्हे हार नहीं मानने दी.

आखिर एक दिन उनकी किस्मत ने साथ दिया ओर बहुत ढूँढने ओर ठोकरे खाने के बाद काही जाकर उन्हे एक ट्रांसपोर्ट एजेंसी मे 125 रुपये महीने की तनख्वाह पर नौकरी मिली. देविदत्त ने बिना कुछ सोचे समझे नौकरी के लिए हाँ कह दिया ओर रुपयों पर ध्यान देने की जगह उन्होंने अपना पूरा ध्यान बिजनस को सीखने मे लगा दिया.

देविदत्त एक मेहनती ओर ईमानदार कर्मचारी थे जो की कंपनी के लिए कार्य करने के लिए हर वक्त तैयार रहते थे ओर उनकी इसी खूबी ने कंपनी के मालिक का दिल जीत लिया ओर धीरे-धीरे वक्त बीतने लगा. 7 साल के बाद उनके मालिक ने अपनी एजेंसी की एक ओर ब्रांच हैदराबाद मे खोलने का निर्णय लिया ओर देविदत्त की ईमानदारी ओर कंपनी के प्रति उनके लगाव को देखते हुए उन्हे उस ब्रांच के मुखिया के रूप कार्य करने की पेशकश की. उन्होंने भी मालिक का अपने प्रति विश्वास देखते हुए इसे एक अवसर के रूप मे लेते हुए अपनी पूरी निष्ठा ओर लगन के साथ काम करने मे लग गए.

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अपनी पत्नी ओर बच्चों के लिए कभी नहीं भेजे रुपये

देविदत्त ने मुंबई पहुचकर काम करना ओर कमाना तो शुरू कर दिया किन्तु इन सात सालों में उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चों के लिए कभी भी एक रुपया भी नहीं भेजा. इस दौरान वे खुद एक छोटे से, अँधेरे और 10×10 के कमरे में रहते थे, वे वहीं पर खाना बनाते और दूसरे कर्मचारियों के साथ वहीं सो जाते. उनकी पांच साल की इस कठिन जिंदगी के बाद उनकी कंपनी दो भाग में विभाजित हो गई.

विभाजन के बाद उनके मालिक ने उनके सामने पेशकश की कि वे कुछ पैसे देकर एक ट्रक ले लें. उन्होंने मालिक की बात मानते हुए ट्रक ले लिया किन्तु इसके बाद उन्हें एक बड़ा झटका लगा, उनकी ट्रक का एक्सीडेंट हो गया ओर इन सालों मे उनके द्वारा की गई उनकी पूरी बचत 1.5 लाख रूपये ट्रक के नुकसान की भरपाई करने मे ही चली गयी और वे फिर से शून्य पर आकर खड़े हो गए.

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दोबारा शून्य से शुरुआत करनी पड़ी

ट्रक हादसे ने देवीदत्त को फिर से सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया ओर उन्होंने फिर से नौकरी ढूँढ़नी शुरू कर दी. ओर उस समय उन्होंने अपनी बचत से एक अन्य व्यक्ति के साथ मिलकर एक ट्रक ख़रीद लिया. वे दोनों मिलकर अपना बिज़नेस खड़ा करने के लिए दर-बदर घूमने लगे. इन दोनों की कड़ी मेहनत काम कर गई ओर कुछ साल के बाद उनका बिज़नेस फलने -फूलने लगा.

1989 में उनका पार्टनर उनसे अलग हो गया, पार्टनर से अलग होने के बाद देवीदत्त ने ‘पायोनियर रोड कैरियर लोजिस्टिक्स’ की नींव रखी.

वर्तमान समय मे उनके पास गवर्नमेंट और सेमी-गवर्नमेंट के दर्जन भर कॉन्ट्रैक्ट्स हैं. आज उनकी कंपनी ने 750 टैंकर्स, कंटेनर्स और दूसरे ट्रांसपोर्ट वाहन ख़रीदे है जो देश भर में काम कर रहे है. आज उनकी कंपनी अपने 22 ब्रांचेस के साथ पूरे देश में फैली हुई है ओर उनके अंडर लगभग 3500 कर्मचारी उसमें काम करते हैं. उनकी कंपनी का लाभ हर साल बढ़ रहा है और उनकी कंपनी का सालाना टर्न-ओवर 250 करोड़ है.

कम शिक्षा और गरीब परिवार के होने के बावजूद देवीदत्त ने यह साबित कर दिखा दिया कि कड़ी मेहनत के बल पर आप अपने सपनों को सच कर सकते हैं और अपने जीवन मे अविश्वसनीय ऊंचाइयों को छू सकते हैं. देविदत्त को कोई भी दिशा दिखाने वाला नहीं था और उनका कोई मददगार भी नहीं था. ऐसे मे उन्होंने शुरुआत शून्य से की और एक बड़ा साम्राज्य खड़ा किया ओर हजारों लोगों के लिए आज प्रकाश स्तंभ बन गए.

ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.

तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…

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