Delhi Name Story : आज देश की राजधानी दिल्ली का पूरी दुनिया में नाम है. दिल्ली को आज नई दिल्ली के नाम से जाना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं दिल्ली के इस नाम के पीछे की कहानी क्या है.
भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली (Delhi Name History) का नाम भारत भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया में मशहूर है. दिल्ली का नाम दुनिया के प्रमुख शहरों में से एक के रूप में लिया जाता है. लेकिन, दिल्ली के नाम के पीछे भी एक अलग कहानी है.
दिल्ली का जो नाम है, उसने इससे पहले कई बदलाव देखे हैं और कई नाम बदलने के बाद आज इस शहर का नाम दिल्ली (Delhi History) हुआ है. हालांकि, दिल्ली के आज के इस नाम के पीछे कई सारी कहानियां और तर्क हैं. इन कहानियों में एक खंभे की कहानी भी है और ऐसा कहा जाता है कि इस खंभे से ही दिल्ली का नाम निकला है.
ऐसे में आज हम आपको बताते हैं कि दिल्ली को ये नाम किस प्रकार से मिला है और दिल्ली के इस नाम के पीछे की क्या कहानी है. आप इन कहानियों के बारे में जानने के बाद यह बात अच्छे से समझ पाएंगे कि किस तरह से दिल्ली को यह फाइनल नाम मिला है. आइए जानते हैं दिल्ली के नाम के पीछे की क्या कहानी है और इसके अलावा खंभे वाली कहानी क्या है, जिसे की दिल्ली के नाम की जननी माना जाता है…
राजा ढिल्लो से शुरुआत हुई नाम की
अगर इतिहास के पन्नों को पीछे पलटकर देखें तो पता चलता है कि दिल्ली पर कई लोगों ने राज किया है और इसी प्रकार से इसका नाम भी कई बार बदल चुका है. दिल्ली के इस नाम की कहानी मुगल काल से नहीं बल्कि महाभारत काल से ही शुरू हो गई थी. ऐसा कहा जाता है कि करीब 3500 साल पहले युधिष्ठिर ने यमुना के पश्चिमी तट पर पांडव राज्य की नींव रखी थी, जिसका नाम इंद्रप्रस्थ था.
एपिक चैनल की डॉक्यूमेंट्री में इसके बारे में यह बताया गया है कि 800 बीसी से इसके नाम के बदलने का चर्चा शुरु हुई. साल 800 बीसी में कन्नौज के गौतम वंश के राजा ढिल्लू ने इंद्रप्रस्थ पर कब्जा कर लिया था. ऐसा कहा जाता है राजा के नाम दिल्ली का नाम इंद्रप्रस्थ से बदलकर डिल्लू हो गया. प्राप्त जानकारी के अनुसार, स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपनी किताब सत्यार्थ प्रकाश में इसके बारे में जानकारी दी है. कहा जाता है कि ढिल्लू का नाम बदलते हुए बाद में ढिली, देहली, दिल्ली, देल्ही हो गया.
खंभे की कहानी क्या है?
इसके अलावा दिल्ली के नाम की एक और कहानी भी सामने आती है. इस डॉक्यूमेंट्री में देल्ही के बारे में कहा गया है, अगर मध्यकालीन युग की बात करें तो 1052 एडी के समय तोमर वंश के राजा आनंगपाल-2 को दिल्ली की स्थापना करने के लिए जाना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि उस समय दिल्ली का नाम ढिल्लिका था.
ढिल्लिका नाम के पीछे एक बहुत ही रोचक कहानी भी है. इस रोचक कहानी के अनुसार, ढिल्लिका में राजा के किले में एक लौह स्तंभ खड़ा किया गया था और इस खंभे को लेकर एक पंडित ने यह कहा था कि जब तक यह लौह स्तंभ रहेगा, तब तक तोमर वंश का राज बना रहेगा.
यह बात सुनकर राजा ने इस खुदवाने का निर्णय किया और जब राजा द्वारा इसे खुदवाया गया तो पता चला कि यह लौह स्तंभ सांपों के खून में घूसा हुआ था. इसके बाद इसे फिर से लगा दिया गया. लेकिन, ऐसा माना जाता है कि यह खंभा पहले की तरह फिर से मजबूती से स्थापित नहीं हो पाया और इस बार लौह स्तंभ ढीला रह गया.
इसके पीछे यह माना जाता है कि इस खंभे की वजह से ही देल्ही का नाम ढिली या ढिलिका पड़ा था. इसका जिक्र चंद्र बरदाई की फेमस कविता पृथ्वीराज रासो में भी किया हुआ है और उसमें कहा गया है कि ये तोमर वंश की सबसे बड़ी गलतियों में से एक है.
दहलीज से आया शब्द
हालांकि, इतिहासकारों का इस बारे में अलग अलग मत है. इतिहासकारों का कहना है कि यह शब्द फारसी शब्द दहलीज या देहली से निकला हुआ है. दोनों शब्दों का मतलब है दहलीज, हहलिज को प्रवेशद्वार यानी गेटवे कहा जाता है. माना जाता है कि इसे गंगा के तराई इलाकों का गेट माना जाता है और इसी वजह से इसका नाम दिल्ली हो सकता है.