“मुश्किलों से भाग जाना आसान होता है, हर पहलू जिंदगी का इम्तिहान होता है, थक कर बैठ जाने वालों को कुछ नहीं मिलता, कोशिश करने वालों के क़दमों में जहाँ होता है”
RAJKUMAR GUPTA SUCCESS STORY : आज हम आपको एक ऐसे इंसान के जीवन की कहानी बताने जा रहे हैं जिसने न जाने कितनी ही अनगिनत मुश्किलों का सामना किया है. किसी समय मात्र 60 रुपये में अपना घर खर्च चलाने को विवश इस व्यक्ति की मेहनत और लगन का ही परिणाम है कि आज वही व्यक्ति अरबों के मालिक हैं. हम जिस शख्सियत की बात करने जा रहे हैं वो हैं जाने माने रियल एस्टेट टायकून ओर मुक्ति ग्रुप के संस्थापक राजकुमार गुप्ता (RAJKUMAR GUPTA ).
RAJKUMAR GUPTA का जन्म ओर बचपन का संघर्ष
राजकुमार गुप्ता का जन्म पंजाब के एक बेहद गरीब परिवार में हुआ था. उनके परिवार की आर्थिक स्थिति यह थी कि उन्हें बचपन में अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए भी कठिन संघर्ष करना पड़ा. प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण करने के बाद उन्होंने अपनी आगे की शिक्षा के लिए कोलकाता का रुख किया. राजकुमार अपने संघर्ष के दिनो के बारे में बताते हैं कि पढ़ाई पूरी होने के बाद 1978 में उन्होंने एक निजी संस्था में मात्र 60 रुपये महीने की तनख्वाह पर नौकरी शुरू की. वहां पर कुछ साल बिताने के बाद उन्होंने हिन्दुस्तान मोटर्स में काम किया, वहाँ पर उनके वेतन में थोड़ा बहुत इजाफ़ा हुआ और इस दौरान उन्हें व्यापार के गुर सीखने के मौके भी मिले. इस दौरान मिले तजुर्बे और अपने सेविंग्स के कुछ पैसे से उन्होंने अपना एक छोटा सा व्यापार शुरू किया.
उनके द्वारा शुरू किए उस छोटे से व्यापार ने धीरे-धीरे एक बड़ा रूप ले लिया और इस प्रकार नींव पड़ी मुक्ति ग्रुप की. साल 1984 में उन्होंने पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में अपना पहला आवासीय अपार्टमेन्ट लांच किया. बाद में अपने आधुनिक वास्तु कला के विचारों के फलस्वरूप राजकुमार गुप्ता कोलकाता में हुगली बेल्ट पर बहुमंजिला निवासों का विचार लेकर भी आये. उसके बाद से ही उनके द्वारा स्थापित मुक्ति ग्रुप बंगाल में एंटरटेनमेंट हब, मल्टीप्लेक्स, इंटरनेशनल होटल, लाउन्ज, फाइन डायन रेस्टोरेंट के साथ एक बड़ा नाम बनकर उभरा और रियल स्टेट के क्षेत्र को नवीन आयामों पर ले जाकर स्थापित किया.
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सफलता के बावजूद स्वभाव से सरल
इतनी ज़्यादा अपार सफलता प्राप्त कर लेने के बाद भी राजकुमार गुप्ता कभी भी अहंकार के अधीन नहीं हुए ओर उनके मन में सैदव परोपकार का भाव विद्यमान रहा. रामकुमार अपनी सफलता के बारे में बताते है कि “मैं बहुत भाग्यशाली हूँ कि सफलता मुझे मिली और इस कारण से आज मैं अपना जीवन सुखीपूर्वक जी रहा हूँ. इस अपार सफलता के लिए मैं अपनी जिंदगी को शुक्रिया अदा करता हूँ और उनके लिए कुछ करना चाहता हूँ जो कि मेरे जितने भाग्यशाली नहीं हैं. राजकुमार गुप्ता का मानना है कि चैरिटी करने के लिए जरूरी नहीं है कि आपके द्वारा दान कोई बड़ी मात्रा में ही किया जाये. बल्कि इंसान के द्वारा छोटी–छोटी मदद नेक इरादों से भी की जा सकती है.
इसके बारे में उदाहरण देते हुए वे कहते है की आपके द्वारा किसी की मदद करने के लिए कुछ भी कार्य किया जा सकता है जैसे – स्टेशन पर जरुरतमंदों को स्वच्छ पानी नहीं मिलता इसके लिए एक आदमी को मटके के साथ वहा बैठाया जा सकता, जो की आने-जाने वाले यात्रियों को स्वच्छ जल उपलब्ध करा सके. उनके द्वारा किए जा रहे इस नेक काम में राजकुमार के दोस्तों ने भी उन्हें पूर्ण सहयोग दिया.
रामकुमार एक के बाद एक इसी प्रकार के छोटे-छोटे लेकिन जनहित के कार्यों को करने लगे. उन्होंने गरीबों के लिए मुफ़्त दवाखाना भी शुरू किया. हालांकी इससे उन्हें आर्थिक नुकसान भी हुआ परन्तु इन परोपकारी कार्यो के आगे उनका वह नुकसान कुछ भी नहीं था. इसी तरह से समाज सेवा करने से राजकुमार का कद बड़ा होने लगा ओर इसी के साथ-साथ उनका संपर्क भी कई अच्छे और प्रतिष्ठित लोगों के साथ हुआ. इसके बाद उन सभी ने भी राजकुमार के विचारो से प्रभावित हुए और उनका सहयोग करना प्रारम्भ किया.
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कभी एशिया में एयरलाइन सेक्टर का हिस्सा बनना चाहते थे
राजकुमार गुप्ता की ज़िंदगी में एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें रियल इस्टेट के क्षेत्र में बहुत ही आकर्षक प्रस्ताव मिल रहे थे लेकिन उस समय एशिया में एयरलाइन सेक्टर की शुरुआत हो रही थी और राजकुमार भी उसका हिस्सा बनाना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने अपनी एयरलाइन्स कंपनी शुरू करने की योजना भी बनाई लेकिन इस विषय में उन्हें अधिक जानकारी नही थी किंतु इसके बावजूद भी उन्होंने लाइसेंस लेने के लिए दिल्ली का रुख किया ओर उड्डयन मंत्री से इस बारे में मुलाकात की. जब उन्होंने अपनी इस इच्छा के बारे में संयुक्त सचिव श्री मिश्रा से मुलाकात की तब उस समय उन्होंने कहा कि वे एक ऐसे आदमी को लाइसेंस नहीं देंगे जिसके पास आवश्यक तकनीकी प्रशिक्षण और अन्य मापदंड नहीं हैं.
राजकुमार गुप्ता इस बारे में कहते हैं कि मैंने उस समय उनसे कहा “मेरे पास आपके द्वारा बताए गए मापदंड में से कुछ भी नहीं है लेकिन इसके बावजूद मैं एक अच्छा उद्यमी हूँ. मैं इसके लिए दूसरों को ले सकता हूँ और फाइनेंस का आयोजन कर सकता हूँ.”
मेरी इसी ईमानदारी से प्रभावित होकर उन्होंने मुझे इसका लाइसेंस दे दिया. लेकिन जब वे एयरलाइंस शुरू करने वाले थे, तभी उस समय हुए हर्षद मेहता घोटाला ने राष्ट्र को हिलाकर रख दिया. इसके बाद पैदा हुई नई उदारवादी अर्थव्यवस्था में हलचल मच गयी और उनके निवेशकों ने एयरलाइन जैसे जोखिम भरे उद्यम में अपने हाथ डालने से मना कर दिया और इस प्रकार मुक्ति एयरवेज उड़ान भरने से पहले ही दुर्घटनाग्रस्त हो गई.
इस प्रकार से एयरलाइन के असफल होने से राजकुमार गुप्ता को बहुत बड़ा आघात लगा ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने अपना सबसे कीमती समय एयरलाइन के सपने को साकार करने में लगाया था. लेकिन इस झटके के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और जीवन की परीक्षा से सीख लेते हुए आगे बढ़ते रहे.
“पीछे मुड़कर देखने पर मुझे पता चला कि सफलता से हम आनन्दित होते है, लेकिन सही मायनों में असफलता ही हमें सच्ची सीख देती है। विश्वास है मैं किसी दिन मुक्ति एयरवेज को एक वास्तविकता में बदलूंगा लेकिन अब तक मैंने जो सफलता हासिल की है उससे भी मैं खुश हूँ।“
यह राजकुमार गुप्ता का आत्मविश्वास ही था जिसने जीवन में अनगिनत संघर्षों के बावजूद उन्हें कभी भी कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होने दिया. आज के युवाओं को अपना संदेश देते हुए रामकुमार गुप्ता का कहना है कि
“व्यक्ति के लिए सफल होना प्रशंसनीय है, लेकिन आप केवल अपने बारे में सोच कर, जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ सकते. आपको स्वयं को बड़ी तस्वीर के एक हिस्से के रूप में, खुद को देखना होगा. व्यक्ति को उस काम को करने की आवश्यकता है जो मायने रखती है और किसी भी काम को सच्चे मन से करना होगा, तभी आपको सफलता हासिल होगी।”
ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.
तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…