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KALPANA SAROJ : मजदूरी कर 2 रुपये से 500 करोड़ का साम्राज्य खड़ा करने वाली महिला

महिला अगर मन से चाहे तो वह दुनियाँ को इधर से उधर करने की हिम्मत भी रखती है

KALPANA SAROJ SUCCESS STORY : आज की कहानी एक ऐसी दलित गरीब लड़की की है जिसने अपने बुलंद हौंसलों से बंजर जमीन को गुलजार कर एक कल्पना को हकीकत कर दिखाया है, अपने इस सफर मे उन्होंने समाज से गंदी, बदसूरत, जहर की पुड़िया, गधे की औलाद आदि तानों के साथ मे अपने पति की यातनाए भी सही ओर एक समय इन सबसे तंग आकर उन्होंने खुदकुशी की कोशिश भी की.

लेकिन शायद किस्मत को उनका यूं हार मानना मंजूर नहीं था ओर विधाता ने उनके लिए एक अलग ही रास्ता तैयार कर रखा था ओर यही कारण है की आज कल्पना सरोज (KALPANA SAROJ) उन सभी विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए 700 करोड़ की कंपनी की मालकिन है ओर उनकी कंपनी का हर दिन का टर्नओवर करोड़ों रुपये मे होता है, साथ ही वे कंपनी ‘कमानी ट्यूब्स’ के लिए राष्ट्रपति से पद्मश्री से सम्मानित भी हो चुकी है, साथ ही कल्पना सरोज आज कमानी स्टील्स के अलावा केएस क्रिएशंस, कल्पना बिल्डर एंड डेवलपर्स, कल्पना एसोसिएट्स जैसी दर्जनों कंपनियों की मालकिन हैं.

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KALPANA SAROJ
KALPANA SAROJ

KALPANA SAROJ की कहानी फिल्मी है

कल्पना सरोज का 2 रुपये से लेकर 700 करोड़ का सफर भी किसी फिल्मी कहानी की तरह ही रहा है, एक समय मे उन्हे अनेकों कठिनाइयों को सहना पड़ा ओर बाल विवाह का दंश झेलने के साथ समाज की उपेक्षा का शिकार भी होना पड़ा साथ ही उन्होंने अपनी ससुराल मे भी अत्याचार को सहने के साथ-साथ प्रतिदिन 2 रुपये की नौकरी भी की.

KALPANA SAROJ का बचपन ओर पारिवारिक पृष्ठभूमि

कल्पना सरोज का जन्म महाराष्ट्र के अकोला जिले के छोटे से गाँव रोपरखेड़ा के एक गरीब दलित परिवार मे हुआ था ओर कल्पना के पिता पुलिस मे हवलदार के पद पर कार्यरत थे ओर उनका वेतन मात्र 300 रुपये था, ओर इसी वेतन से कल्पना, उनके 2 भाई ओर 3 बहनों, दादा-दादी के साथ-साथ उनके चाचा के पूरे परिवार का भी खर्च चलता था.

“मैं हमेशा अच्छा करने में विश्वास करती हूँ और दूसरों के लिए भी अच्छा करती हूँ । इसलिए मैं ये जानती हूँ कि हार को जीत में कैसे बदला जाता है ।”

उनके पिताजी के पुलिस मे हवलदार होने के कारण उन्हे सरकारी क्वार्टर मिला हुआ था, ओर इसी सरकारी क्वार्टर मे वे सभी रहते थे, कल्पना सरोज पास ही मे स्थित सरकारी स्कूल मे पढ़ने के लिए जाया करती थी ओर पढ़ाई मे होशियार होने के बावजूद उन्हे दलित होने के कारण स्कूल मे शिक्षकों ओर सहपाठियों की उपेक्षा का शिकार होना पड़ता था.

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कल्पना के अनुसार –

“गाँव मे बिजली की सुविधाएं नहीं थी… इस कारण से स्कूल से लौटते वक्त उन्हे अक्सर गोबर उठाना, खेत मे काम करने ओर लकड़ियाँ चुनने का कार्य करना होता था”

12 साल की उम्र मे हुआ बाल-विवाह

कल्पना सरोज की शादी 12 वर्ष की उम्र मे ही अपनी उम्र से 10 साल बड़े आदमी से कर दी गई ओर इस प्रकार से वह विदर्भ से मुंबई की झोंपड़पट्टी मे या गई, ससुराल मे आने के बाद कल्पना की पढ़ाई बंद हो गई ओर एक छोटे से काम की चूक से पीटना तो उनके लिए रोज की बात हो गई थी.

कल्पना के अनुसार –

“ससुराल मे उन्हे खाने को खाना नहीं दिया जाता था, उनके साथ खाने मे कम नमक, ओर कपड़े साफ नहीं धुलने के नाम पर हर दिन पर बाल पकड़कर बेरहमी से मारना ओर जानवर की तरह व्यवहार किया जाता था.“

ससुराल से भागने पर परिवार को मिली सजा

ससुराल मे प्रतिदिन के अत्याचार से तंग होकर एक दिन कल्पना वहा से भागकर अपने घर पहुच गई किन्तु इसकी सजा उन्हे ओर उनके पूरे परिवार को मिली ओर पंचायत ने उनके परिवार का हुक्का-पानी बंद कर दिया, ऐसे मे कल्पना के पास जीने का मकसद नहीं बचा था ओर उन्होंने कीटनाशक पीकर जान देने की कोशिश की किन्तु रिश्तेदार महिला ने उन्हे बचा लिया.

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16 वर्ष की उम्र मे जिंदगी की नई शुरुआत की

खुदकुशी की कोशिश नाकाम होने के बाद कल्पना ने जिंदगी को नए तरीके से जीने का निर्णय लिया ओर फिर से मुंबई पहुच गई ओर इस बार वे गार्मन्ट कंपनी मे कपड़े सिलने का काम करने लगी इसके लिए उन्हे प्रतिदिन 2 रुपये मजदूरी मिलती थी.

कम मजदूरी के कारण उन्होंने खुद ब्लाउज सिलना शुरू किया ओर एक ब्लाउज के उन्हे 10 रुपये मिलते थे. इसी दौरान कल्पना की बहन की बीमारी के कारण मौत से कल्पना बुरी तरह टूट गई.

इस घटना के बाद कल्पना ने प्रतिदिन 16 घंटे काम कर पैसे जोड़े ओर घरवालों की मदद की, कार्य के दौरान कल्पना को लगा की सिलाई ओर बुटीक के काम मे बहुत स्कोप है ओर यह समझने के बाद उन्होंने दलितों को मिलने वाले 50000 के सरकारी लोन से सिलाई मशीन ओर अन्य जरूरी सामान खरीदकर एक बुटीक की दुकान खोली.

कल्पना की कड़ी मेहनत का ही परिणाम था की उनकी शॉप चलने लगी ओर कल्पना अपने परिवार को आर्थिक सहायता करने लगी. इसके बाद कल्पना ने अपनी जिंदगी मे फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा ओर बचत के पैसों से फर्निचर स्टोर खोला ओर उसे भी बहुत अच्छा रिस्पॉन्स मिला. इसके बाद उन्होंने ब्यूटी पार्लर खोला ओर अपने साथ की लड़कियों को भी काम सिखाया ओर उन्हे भी आत्मनिर्भर करने लगी.

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कल्पना ने की दूसरी शादी

कल्पना ने सफलता मिलने के बाद फिर से परिवार बसाने का सोच एक बार फिर से शादी की किन्तु इस बार भी उन्हे अपने पति का लंबा साथ नहीं मिला ओर कल्पना पर दो बच्चों की जिम्मेदारी छोड़कर उनके दूसरे पति ने इस दुनियाँ को अलविदा कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने ‘कमानी ट्यूब्स’ को शुरू करने का फैसला किया

कल्पना की मेहनत ओर संघर्ष से मुंबई मे उन्हे शोहरत मिलने लगी ओर उन्हे पता चला की 17 साल के बाद सुप्रीम कोर्ट ने ‘कमानी ट्यूब्स’ को शुरू करने का फैसला किया है, इस फैसले के बाद कंपनी के कर्मचारी कल्पना से मिले ओर विवादो के कारण 1988 से बंद पड़ी कंपनी को फिर से शुरू करने मे मदद करने की अपील की.

कल्पना ने वर्करों के साथ मिलकर कंपनी को शुरू किया ओर कड़ी मेहनत ओर जज्बे से उन्होंने कंपनी मे एक नई ऊर्जा संचालित कर दी ओर दिन रात मेहनत कर कंपनी से जुड़े सभी विवाद को सुलझाए ओर सफलता की नई इबारत लिख दी ओर कल्पना की मेहनत का ही परिणाम है की आज कमानी ट्यूब्स करोड़ों का टर्नोवर दे रही है.

ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.

तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…

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