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HANMANT GAIKWAD : आज संसद से लेकर राष्ट्रपति भवन तक संभालते है, शून्य से शुरुआत कर बनाया 1000 करोड़ का कारोबार

मैं वो खेल नहीं खेलता
जिसमे जीतना फिक्स हो,
क्योंकि जीतने का मजा तब हैं,
जब हारने का रिस्क हो.

HANMANT GAIKWAD SUCCESS STORY : अगर किसी मनुष्य को खुद पर हो विश्वास हो ओर उसके मन में संकल्प हो तो उस स्थिति में कितनी भी बाधाएँ क्यों न आ जाए किंतु उसके बावजूद भी उसे रास्ता मिल ही जाता है. यह छोटा सा वाक्य अपने आप में काफी कुछ बयां कर जाता है. यह बात पूर्ण रूप से सच है कि खुद पर विश्वास करने वाले व्यक्ति ही अपनी असल जिंदगी में सफल हो पाते हैं.

आज हम जिस सफल व्यक्तित्व के धनी हनमंत रामदास गायकवाड (HANMANT GAIKWAD) का जिक्र करने जा रहे हैं उनकी सफलता इस बात का बहुत बड़ा उदाहरण है कि जिंदगी में किसी भी व्यक्ति के लिए उसका खुद पर विश्वास करना किस हद तक मायने रखता है. 10×10 की एक अँधेरी कोठरी में अभावों के बीच अपना बचपन व्यतीत करते वाले हनमंत गायकवाड वर्तमान समय में 65,000 से भी ज्यादा लोगों को रोजगार मुहैया करा रहे हैं.

HANMANT GAIKWAD का बचपन ओर शिक्षा (Education)

आज की कहानी है भारत की सबसे बड़ी हाउसकीपिंग फर्म और 1,000 करोड़ के भारत विकास ग्रुप (BVG) की आधारशिला रखने वाले हनमंत रामदास गायकवाड की सफलता के बारे में. हनमंत गायकवाड (HANMANT GAIKWAD) का जन्म महाराष्ट्र राज्य के सतारा जिले के कोरेगाँव में एक बेहद ही गरीब परिवार हुआ था.

हनमंत गायकवाड सतारा से ही पले-बढ़े ओर बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में अत्यंत मेधावी छात्र थे. वैसे तो हनमंत सभी विषयों में होशियार थे किंतु उनकी सबसे ज्यादा रुचि गणित के विषय में थी. हनमंत के पिता कोर्ट में क्लर्क थे और परिवार के लिए एकमात्र आय का सहारा भी वही थे. बचपन में हनमंत के घर की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं थी लेकिन इसके बावजूद उनके पिता हमेशा यही चाहते थे कि उनके बेटे की पढ़ाई में पैसे की कमी कभी भी अरचन नहीं बनें.

बेटे की अच्छी और गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई के उद्येश्य से हनमंत के पिता अपने परिवार के साथ गाँव से सतारा चले आए. यहीं पर हनमंत गायकवाड ने एक मराठी स्कूल में अपनी आगे की पढ़ाई शुरू की. सतारा में एक 10×10 की छोटी कोठरी में ही हनमंत का पूरा परिवार रहता था. जहां पर वे सब रहते थे वहाँ पर पर बिजली का नामोनिशान तक नहीं था.

इस तरह से गरीबी और संघर्षों से लड़ते हुए हनमंत को अपने बचपन में ही इस बात का गहराई से अहसास हो गया कि उनकी जिंदगी में गरीबी से मुक्ति पाते हुए ऊपर उठने का रास्ता अच्छी शिक्षा हासिल करना ही है. ग़रीबी के इस नरक से निकलने के लिए इन्होंने मन लगाकर पढ़ाई शुरू की और पढ़ाई में होशियार होने के कारण इन्हें चौथी कक्षा में ही महाराष्ट्र सरकार से छात्रवृत्ति मिलनी शुरू हो गई. छात्रवृत्ति के तौर पर इन्हें उस समय हर महीने 10 रुपये मिलते थे.

अपने बचपन की गरीबी के दिनों को याद करते हुए हनमंत गायकवाड़ बताते हैं कि “उनके घर पर चपाती (गेहूं की रोटी) सिर्फ बर्थ डे के दिन ही बनती थी. उनकी ग़रीबी का आलम यह था की स्वीट डिश के रूप में शक्कर के पानी में नीम्बू निचोड़कर ‘सुधा रस’ बनाया जाता था.”

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HANMANT GAIKWAD

पिता के बीमार पड़ने के कारण हनमंत को बेचने पड़े फल

अक्सर यह देखने को मिलता है की वक्त भी सहनशील लोगों की अधिक परीक्षा लेता है. हनमंत गायकवाड़ के घर कई सालों तक संघर्ष का यह सिलसिला यूँ ही चलता रहा. कुछ समय बाद एक दिन इनके पिता का तबादला मुंबई में हो गया. मुंबई का रहन-सहन ओर मौसम इनके पिता को नागवार गुजरा और वे बीमार पड़ गये.

पिता की बीमारी बहुत चली ओर बीमारी के इलाज़ के लिए माँ के सारे गहने तक गिरवी रखने पड़े. पिता के इस तरह से बीमार रहने के कारण हनमंत के घर की आर्थिक स्थिति पूरी तरह से चरमरा गई. घर की स्थिति को देखते हुए हनमंत ने रेलवे स्टेशन पर फल बेचने का काम शुरू कर दिया और इनकी माता भी सिलाई का काम करने लगीं. इन तमाम बाधाओं के बावजूद इन्होंने अपनी पढ़ाई को जारी रखा.

पिता का सपना था – HANMANT GAIKWAD बने IAS ऑफ़िसर

हनमंत गायकवाड के पिता का सपना था कि उनका बेटा एक दिन पढ़-लिखकर आईएएस अफसर बने. हनमंत ने भी पिता के सपने को पूरा करने के उद्येश्य से मेहनत जारी रखी और दसवीं कक्षा में 88 फीसदी अंक से पास की. दसवीं के बाद इन्होंने घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए जल्द से जल्द नौकरी पाने के उद्देश्य से इलेक्ट्रॉनिक्स में पॉलिटेक्निक कोर्स करने का निश्चय किया. दुर्भाग्य से उसी समय के दौरान इनके पिता का निधन हो गया.

पिता के निधन के बाद उनके घर की सारी जिम्मेदारी उनकी माँ के कंधे पर आ गई. हनमंत ने पिता की मृत्यु के बाद उनके सपने को पूरा करने के लिए अपनी आगे की पढ़ाई को जारी रखा और औरंगाबाद के गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज से सफलतापूर्वक इंजीनियरिंग की अपनी डिग्री हासिल की.

इस दौरान हनमंत ने ट्युशन पढ़ाते हुए खुद के जेब खर्चे के पैसे निकालना शुरू किया ओर उसमें से कुछ रुपए बचाकर घर भी पैसे भेजना शुरू किया.

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HANMANT GAIKWAD

1994 में टाटा मोटर्स से की शुरुआत

हनमंत ने साल 1994 में टाटा मोटर्स के पुणे संयंत्र में स्नातक प्रशिक्षु इंजीनियर के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की. 1997 में इन्होंने टाटा मोटर्स में काम करते हुए, अपनी क़ाबिलियत सिद्ध करते हुए केबल का काफी अच्छे तरीके से उपयोग करते हुए कंपनी के लागत में भारी बचत की. टाटा कंपनी में इनके इस प्रयासों की काफी तारीफ़ की गई.

इसी दौरान उनके गांव के कुछ युवाओं ने भी इन्हें कंपनी में नौकरी की खातिर सिफारिश करने के लिए निवेदन किया. हनमंत ने उन्हें नौकरी दिलाने के लिए अपने उच्च अधिकारीयों से बातचीत की ओर आठ लोगों को वे नौकरी दिलाने में सफल रहे लेकिन कंपनी में ऑन रोल नौकरी नही दिला पाए.

इस समस्या को देखते हुए हनमंत ने टाटा मोटर्स को सुझाव दिया था कि वह लोगों को एक पंजिकृत ट्रस्ट के माध्यम से रोजगार देंगें और टाटा मोटर्स उस ट्रस्ट को उनके कार्य के बदले में भुगतान करेगा. हनमंत के इस क्रांतिकारी आइडिया से टाटा मोटर्स के उच्च अधिकारी बहुत खुश हुए ओर उन्होंने उनके उस प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए टाटा फायनेंस से सफाई उपकरण खरीदने के लिए 60 लाख रुपये का कर्ज भी उपलब्ध करवाया.

साल 2000 में हनमंत ने औपचारिक रूप से टाटा मोटर्स से इस्तीफा दे दिया और भारत विकास समूह के रूप में अपना स्वयं का संगठन रजिस्टर्ड करने का निर्णय लिया, इनका यह संगठन रोजगार और कौशल विकास के लिए एक सामाजिक दृष्टिकोण पर केंद्रित संस्था है.

हनमंत द्वारा महज़ आठ कर्मचारियों से शुरू हुई यह कंपनी आज देश के बीस से अधिक राज्यों में अपनी सेवाएँ सफलतापूर्वक दे रही है. आज इनकी कंपनी के 700 से ज्यादा क्लाइंट हैं और इनके ग्राहकों की सूची में देश-विदेश की नामचीन कंपनियां भी शामिल हैं. वर्तमान समय में भारत विकास ग्रुप कई तरह की अलग-अलग सेवाएँ देने वाली कंपनियों का देश में सबसे बड़ा समूह बन चुका हैं.

आज इनकी कंपनी एशिया महाद्वीप में आपातकालीन चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने वाली सबसे बड़ी कंपनी बन चुकी है. इसी के साथ में राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, प्रधानमंत्री निवास, दिल्ली उच्च न्यायालय जैसे देश के अत्यंत महत्वपूर्ण स्थानों की देखरेख और साफ़-सफाई की ज़िम्मेदारी भी भारत विकास ग्रुप के पास ही है.

हनमंत ने 2027 तक 10 लाख लोगों को रोज़गार देने का लक्ष्य रखा है. आज वे एक सफल व्यक्ति है किंतु किसी समय उन्हें खुद रोजगार के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी थी किंतु इसके बावजूद इन्होंने कभी भी परिस्थितियों के सामने हार नहीं मानी, इन्होंने सदैव मेहनत की और आज इतने ऊँचे मुकाम तक पहुँचने में सफल हुए.

ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.

तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…

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