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AMAZING FACTS ABOUT KONARK TEMPLE : 118 साल बाद खुलेगा कोणार्क मंदिर का ‘गर्भगृह’, इतने साल से क्यों है बंद?

KonarAMAZING FACTS ABOUT KONARK TEMPLE : कोणार्क मंदिर एक बार फिर मंदिर में रखी गई मिट्टी को लेकर खबरों में है और बताया जा रहा है कि अब जल्द ही इस मिट्टी को मंदिर से साफ कर दिया जाएगा.

AMAZING FACTS ABOUT KONARK TEMPLE

AMAZING FACTS ABOUT KONARK TEMPLE :

ओडिशा का प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर (Konark Sun Temple) एक बार फिर से भारत की खबरों में है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 118 सालों के बाद कोणार्क सूर्य मंदिर के जगमोहन (मुखशाला) परिसर में दबी हुई मिट्टी को सुरक्षित रूप से निकालने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) द्वारा इस खास मंदिर से उस मिट्टी को निकालने का प्लान बना रहा है, जिसे कि करीब 118 साल पहले अंग्रेजों ने इसे गिरने से बचाने के लिए भर दिया था. अगर मिट्टी (Sun Temple Sand) को सफलता पूर्वक निकाल लिया जाता है तो 100 से भी ज्यादा साल बाद इस मंदिर के जगमोहन परिसर को खोल दिया जाएगा.

रिपोर्ट्स के अनुसार, पुरातत्व सर्वेक्षण संस्था (एएसआई) की तरफ से इसके लिए प्रक्रिया शुरू की गई है और अभी यह मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन है. इसके लिए कई कमेटियां बनाई गई है और बहुत ही जल्द जगमोहन परिसर के भीतर फंसी मिट्टी को निकालने का काम शुरू किया जाएगा.

जानिए इस मिट्टी को किस कारण से दबाया गया था और यह मिट्टी कहां पर दबाई गई है. इसी के साथ जानेंगे कि किस तरह से इस मिट्टी को निकाला जाएगा और इसका कितना महत्व है…

क्या है पूरा मामला?

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ओडिशा के सूर्य मंदिर के अंदरूनी हिस्सों से रेत को पूरी तरह सुरक्षित रुप से हटाने के लिए एक रोडमैप तैयार कर रहा है. मंदिर के इस हिस्से को जगमोहन कहा जाता है, यह इस मंदिर का मध्य भाग है. आप यह जरूर सोच रहे होंगे कि आखिर इस मंदिर से रेत निकालने का मामला इतना गंभीर क्यों है. असल मे, कई साल पहले मंदिर की स्थिति जर्जर होने के कारण यह लग रहा था कि मंदिर कही ढह ना जाए, इसलिए इस मंदिर को ढहने से बचाने के लिए इसे सपोर्ट देने के लिए इसके परिसर मे मिट्टी भर दी गई थी.

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किसने भरवाई थी कोणार्क मंदिर मे मिट्टी?

एक रिपोर्ट के अनुसार, 13वीं शताब्दी में बने इस मंदिर में साल 1903 में मिट्टी भरी गई थी. इससे पहले साल 1900 में उस समय के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर जॉन वुडबर्न ने भी यहां का दौरा किया था. इस मंदिर की भव्यता उस दौर मे भी काफी प्रसिद्ध थी. यहां तक कि उस दौर में अंग्रेजों द्वारा इसे भारत की सबसे शानदार इमारतों में एक घोषित किया गया था और इस मंदिर की भव्यता का वर्णन किया गया था. इस पर कई तरह की रिपोर्ट भी तैयार की गई, जिसमें मिट्टी भरने की बात सामने आती है. हालांकि, इस गिरने से बचाने के लिए कोणार्क मंदिर में मिट्टी भरी गई थी.

कोणार्क मंदिर मे किस तरह से भरी गई है मिट्टी?

आपको बता दें कि ऊपर की तस्वीर में एक स्ट्रक्चर है. जिसमे सिर्फ गेट ही दिखता है और अंदर हर तरफ मिट्टी ही भरी है. इसे गिरने से रोकने के लिए मंदिर के खाली जगह में पूरी तरह मिट्टी भर दी गई है ताकि यह नीचे गिरे नहीं.

क्या है जगमोहन का रहस्य?

अगर जगमोहन की बात की जाए तो जगमोहन का मतलब है मंदिर के बीच का सभा हॉल. ओडिशा में हिंदू मंदिर में एक हॉल जैसा स्पेस होता है, उसे ही जगमोहन कहा जाता है. ऐसा ही कोणार्क मंदिर में भी था. दरअसल, यहा पर प्रवेश द्वार से गर्भगृह से बीच जो स्पेस होता है, उसे जगमोहन कहा जाता है. बता दें कि यह मंदिर सूर्य को समर्पित है.

मंदिर से जुड़ी खास बातें

अगर मंदिर की बात करें तो इसे साल 1884 में यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल किया गया था. इस मंदिर के दोनों और 12 पहियों की लाइन है. इसके बारे मे कहा जाता है कि ये 24 पहिए घंटों को प्रदर्शित करते हैं. इसके ही एक पहिये की फोटो 10 रुपये के नोट में भी छपी हुई है, जिसे कि आपने देखा होगा. इस मंदिर का निर्माण उस समय के राजा नरसिंहदेव ने करवाया था. यह मंदिर अपनी शिल्पकला को लेकर पूरी दुनिया में फेमस है.

कोणार्क मंदिर से जुड़ी है कई तरह की कहानियाँ

ऐसा कहा जाता है कि 15वीं शताब्दी के आस-पास मुस्लिम सेना ने एक बार इस मंदिर पर आक्रमण कर दिया था. जिसके बाद पुजारियों ने सूर्य देवता की मूर्ती को आक्रान्ताओ से बचाने के लिए जगन्नाथ मंदिर में रख दिया था. ऐसा भी कहा गया है कि इस मंदिर के सबसे ऊपर एक चुंबकीय पत्थर रखा है. जिसके कारण इस तरफ समुद्र से गुजरने वाला कोई भी जहाज उसकी ओर खिंचा चला आता है. इस मंदिर के बारे मे कहा तो यह भी जाता है कि मंदिर के ऊपर चुंबक इसलिए रखा गया है, जिससे दीवारों का बैलेंस बना रहे.

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