आज लाहौर पाकिस्तान का हिस्सा है. लेकिन, लाहौर के पाकिस्तान में शामिल होने की कहानी काफी दिलचस्प और मजेदार है, आइए जानते है कि आखिर किस तरह लाहौर पाकिस्तान में शामिल हो गया.
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लाहौर आज पाकिस्तान के अहम शहरों में से एक है. ओर पाकिस्तान के रेवेन्यु में लाहौर का अहम हिस्सा है. लेकिन, क्या आप जानते हैं लाहौर के पाकिस्तान में जाने से पहले देश के हर व्यक्ति को यह लगता था कि भारत ओर पाकिस्तान के विभाजन के वक्त लाहौर पाकिस्तान का नहीं बल्कि हिंदुस्तान का हिस्सा होने वाला है. भारत के साथ आज के पाकिस्तान वाले हिस्से के लोगों को भी यह लगता था लाहौर पाकिस्तान का नहीं, भारत का हिस्सा होगा. लेकिन, अंत में ऐसा नहीं हुआ.
अब असल सवाल ये है कि आखिर लोगों को ऐसा क्यों लगता था कि लाहौर पाकिस्तान की बजाय भारत के हिस्से में जाना चाहिए और बाद में ऐसा क्या कारण रहा कि लाहौर को पाकिस्तान का हिस्सा बना दिया गया. चलिए जानते हैं लाहौर के पाकिस्तान में शामिल होने की कहानी और जानते हैं कि क्यों आज लाहौर हमारे देश का हिस्सा नहीं है…
कैसे हुआ था भारत-पाकिस्तान का विभाजन?
लाहौर की कहानी जानने से पहले आपको यह बताते हैं कि आखिर भारत और पाकिस्तान का बंटवारा किस तरह से हुआ था. असल मे जब भारत और पाकिस्तान का विभाजन होना था यहा के बड़े लोगों ने उस समय ब्रिटेन से एक शख्स को बुलाया था, इस व्यक्ति का नाम था सिरील रेडक्लिफ. इनसे कहा गया था की उन्हे भारत और पाकिस्तान का विभाजन करना है, लेकिन खास बात ये थी कि रेडक्लिफ न तो कभी भारत आए थे, ओर न उन्हे यहाँ की संस्कृति की समझ थी, किन्तु इसके बावजूद उन्हे भारत को बांटने का जिम्मा उन्हें सौंप दिया गया था.
दोनों देशों के बंटवारे के समय रेडक्लिफ की अध्यक्षता में रेडक्लिफ कमीशन बनाया गया और इसने बंटवारे के लिए बॉर्डर लाइन बनाई. ओर उन्होंने जो बॉर्डर बनाया, उसे ही तो रेडक्लिफ लाइन नाम दिया गया. उन्होंने ही फैसला किया था कि भारत और पाकिस्तान में विभाजन के बाद कौन सा शहर कहां रहेगा.
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क्यों भारत का हिस्सा लगता था लाहौर?
लाहौर के भारत का हिस्सा माने जाने की कई वजहें थीं. दरअसल, उस वक्त धर्म आधारित जनसंख्या के आधार पर शहरों को बांटा गया था. लेकिन, इसके साथ ही कई फैक्टर्स भी इसमें शामिल थे, जिसमें प्रॉपर्टी ऑनरशिप आदि शामिल है. आपको बता दें कि सन 1941 की जनसंख्या गणना के समय लाहौर में 40 फीसदी गैर मुस्लिम लोग थे, लेकिन उनकी 80 फीसदी प्रॉपर्टी ऑनरशिप गैर मुस्लिमों के पास थी. इस वजह से लाहौर की अर्थव्यवस्था में गैर मुस्लिमों का ज्यादा प्रभाव था. ओर यही अहम वजह थी, जिससे दोनों देशों के लोगों को लग रहा था कि लाहौर भारत का हिस्सा हो सकता है.
इसके अलावा वहां गैर मुस्लिमों का अधिकार इमारतों, मॉन्युमेंट्स, बिजनेस, संस्थानों, अस्पताल पर भी ज्यादा था. जैसे की वहां श्रीगंगाराम हॉस्पिटल, गुलाब देवी हॉस्पिटल, जानकी देवी हॉस्पिटल, दयाल सिंह कॉलेज आदि है. ये महाराजा रंजीत सिंह रियासत की मुख्य कैपिटल भी थी.
लाहौर कैसे बना पाकिस्तान का हिस्सा?
अगर हम लाहौर के पाकिस्तान में शामिल होने की बात करें तो इसके पीछे भी कई वजहें हैं. बीबीसी की एक रिपोर्ट की माने तो, लेखक कुलदीप नय्यर ने रेडक्लिफ़ से बातचीत की थी, रेडक्लिफ ने उनसे हुई बातचीत के दौरान कहा था, ‘मुझे 10-11 दिन मिले थे सीमा रेखा खींचने के लिए. ऐसे समय मे मैंने देखा लाहौर में हिंदुओं की संपत्ति ज़्यादा है. लेकिन, इसके साथ मैंने ये भी पाया कि पाकिस्तान के हिस्से में कोई बड़ा शहर ही नहीं था. ओर इसी कारण से मैंने लाहौर को भारत से निकालकर पाकिस्तान को दिया. अप आप आज मेरे उस फैसले को सही माने या गलत लेकिन उस समय वह मेरी मजबूरी थी. पाकिस्तान के लोग आज भी मुझसे नाराज़ हैं लेकिन उन्हें तो इस बात के लिए ख़ुश होना चाहिए कि मैने उन्हें लाहौर दे दिया.’
इस दौरान लाहौर में काफी दंगे भी हो रहे थे और इस वजह से भी उन्हें ये फैसला लिया. इसके अलावा पाकिस्तान में कोई बड़ा शहर ना होना ही मुख्य तौर पर लाहौर के पाकिस्तान में शामिल होने का कारण बना. साथ ही उन्हें दोनों देशों के बीच विभाजन करने के लिए काफी कम टाइम मिला इसलिए उन्होंने यह फैसला काफी जल्दबाजी में भी लिया था.
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