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PHANINDRA SAMA : यात्रा के दौरान हुए बुरे अनुभव से 600 करोड़ की कमाई करने वाले युवा की कहानी

“कठोर परिश्रम कभी भी विफल नहीं होता ।”

PHANINDRA SAMA SUCCESS STORY : वर्तमान समय की नई युवा पीढ़ी को कहीं पर भी थोड़ी सी कठिनाई का सामना करना पड़ जाए तो वे उसे दूर करने के साथ-साथ उसमें से भी एक बड़ा बिज़नेस आइडिया खोज निकालते हैं. आज की यह कहानी भी एक ऐसे ही युवा शख़्शियत फणीन्द्र समां (PHANINDRA SAMA) की है.

फणीन्द्र समां को 2005 में एक बार दिवाली के वक्त हैदराबाद जाना था और उन्हें भीड़ की वजह से बस नहीं पाई. उस दौरान उन्होंने बस पाने के लिए काफी कोशिश की, लेकिन काफ़ी कोशिश के बावजूद वो वक्त पर अपने घर नही जा पाए. उन्होंने स्वयं की इस पीड़ा को आम लोगों के साथ जोड़ा ओर उनको प्रतिदिन होने वाली परेशनियो को समझते हुए आम जनता को हमेशा के लिए इस तकलीफ़ से मुक्ति देने का अभियान शुरू कर दिया.

उनके इसी अभियान ने उन्हें ऑनलाइन बस टिकट बुकिंग के लिए बनाये गए पोर्टल रेड-बस के माध्यम से आईबीबो से 600 करोड़ रुपयों का सौदा भी दिलाया.

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PHANINDRA SAMA

PHANINDRA SAMA का जीवन परिचय

फणीन्द्र समां आंध्र प्रदेश के एक छोटे से जिले निज़ामाबाद के रहने वाले है. उन्होंने अपनी ज़िंदगी में कभी भी इंटरप्रेन्योरशिप के बारे में नहीं सोचा था. फणीन्द्र समां ने बिट्स पिलानी से इंजीनियरिंग की डिग्री ली और उसके बाद इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस से पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद वे बेंगलुरु स्थित एक कंपनी में काम करते हुए मज़े से अपना समय व्यतीत करने लगे.

किंतु बस नही मिल पाने के बुरे अनुभव से रूबरू होने के बाद उन्होंने उसका समाधान खोजने का प्रयास किया ताकि आम लोगों को फिर कभी भी इस अनुभव से न गुजरना पड़े. और इस प्रकार से इन्होंने भारत की सबसे लोकप्रिय पोर्टलों में से एक रेडबस डॉट इन की शुरुआत की और इसी पोर्टल के दम पर 600 करोड़ का साम्राज्य भी बनाया.

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एक घटना से हुई रेडबस (Redbus) की शुरुआत

फणीन्द्र समां का जीवन नौकरी करते हुए शांति पूर्वक चल रहा था और नौकरी करने के दौरान अक्सर ही वे अपने माता-पिता से मिलने के लिए बस द्वारा हैदराबाद जाया करते थे. 2005 में दीपावली का समय था, ऐसे समय में उनके सारे रूम-मेट्स अपनी छुट्टियाँ मनाने के लिए अपने-अपने घर जाने की तैयारी कर रहे थे.

फणीन्द्र समां भी अपने घर जाने के लिए बस की टिकट लेने पहुंचे तब तक हैदराबाद जाने वाली बसों की सारी टिकट्स पहले ही बिक चुकी थीं. दुर्भाग्यवश उन्हें एक भी टिकट नहीं मिली और इस कारण से वे हैदराबाद नहीं जा पाए. वह टिकट के लिए दो-तीन ट्रेवल एजेंट के पास भी गए पर वहाँ से भी उन्हें खाली हाथ ही लौटना पड़ा और टिकट नही मिलने से वे बुरी तरह से निराश हो गए.

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टिकट समस्या का हल ढूँढने लगे

हैदराबाद जाने की बस नही मिलने के कारण दुखी होकर फणीन्द्र समां वापस अपने फ्लैट लौट आये और उन्होंने अपना अगला एक सप्ताह नाराजगी में बिता दिया और इस दौरान वे यही बात सोच रहे थे कि क्यों न इस समस्या के समाधान के लिए कोई हल ढूँढा जाए.

फणीन्द्र समां के मन में बार-बार रह-रहकर यह विचार आ रहा था कि टिकट मिलने वाली जगह पर कोई ऎसी कंप्यूटर प्रणाली क्यों नहीं है जिसमें सभी बस ऑपरेटरों का उल्लेख किया गया हो ताकि वे यह बता पाये कि कितनी बसें वहाँ से चलती है और किसी स्थान पर जाने के लिए इस समय टिकट्स मिलने की क्या स्थिति है.

वे यह सोचने लगे की जब वे किसी ट्रेवल एजेंट के पास जाए तो वह सिस्टम लॉग ऑन कर यह बता पाए कि सीट खाली है या नहीं.

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ट्रैवल एजेंट से समझी टिकट्स बुकिंग की प्रक्रिया

फणीन्द्र ने अगला पूरा सप्ताह ट्रेवल एजेंट के पास घूमते हुए बिताया और इस दौरान बस टिकट्स की बुकिंग की प्रक्रिया को अच्छे से समझने के लिए उन्होंने एजेंट से बहुत सारे सवाल भी पूछे और कई सारी जानकारियां इकट्ठी की. इस प्रकार से पूरे सप्ताह उन्होंने ट्रेवल एजेंट और बस ऑपरेटर्स के काम को सही तरीक़े से समझने की कोशिश की.

जब फणीन्द्र इस बारे में ट्रैवल एजेंट से बात करते तो कोई भी उन्हें इसके बारे में बताने में  ज्यादा रुची नहीं ले रहा था. इस दौरान एक युवा ट्रैवल एजेंट जो की स्वयं भी एक इंजीनियर था उससे मिले तो वह इस बात को समझ पाया कि दरसल फणीन्द्र क्या चाहते हैं. वह युवा एजेंट भी इस बात से बहुत खुश हुआ कि कोई व्यक्ति बस टिकट्स बुकिंग के बारे में कुछ नया करना चाहता हैं.

ऐसे हुई रेडबस (Redbus) की शुरुआत

टिकट्स बुकिंग की प्रक्रिया को समझने के बाद फणीन्द्र समां ने अपने दोस्त के साथ मिलकर तय किया कि वे मुफ्त में ट्रेवल एजेंट के लिए एक खुला मंच बनाएंगे. फणीन्द्र बहुत जल्द ही इस प्रॉब्लम का हल ढूंढने के लिए उत्सुक थे जबकि उन्हें प्रोग्रामिंग बिल्कुल भी नहीं आती थी. उनके मन में इस बात की उत्सुकता अधिक थी ओर इसी कारण से बुक्स पढ़कर उन्होंने कोडिंग और प्रोग्रामिंग सीखी और इस प्रकार से रेड-बस का जन्म हुआ.

ट्रेवल एजेंट्स ने शुरुआत में जब उनके द्वारा बनाये गए इस प्लैटफॉर्म का जब उपयोग किया तब इससे उन्हें फ़ायदा हुए ओर उनके टिकटों की बिक्री में काफी सुधार हुआ. यह रेडबस के लिए बहुत ही बड़ी सफलता थी; उनके इस प्लैटफॉर्म के द्वारा पढे-लिखे लोगों के अलावा वे भी वे भी इसका लाभ उठा पा रहे थे जिन्हें कंप्यूटर का उपयोग करना भी नहीं आता था.

फणीन्द्र समां द्वारा जब रेडबस को लॉन्च किया गया तब उनके द्वारा सोचा गया था कि उनके द्वारा पांच सालों में केवल 100 बस ऑपरेटर का ही रजिस्ट्रेशन होगा. परंतु उनकी सोच के विपरीत इसकी सफलता इतनी तेजी से बढ़ी कि एक साल के भीतर ही 400 रजिस्ट्रेशन हो गए.

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आईबीबो द्वारा रेडबस (Redbus) का अधिग्रहण

जून 2014 में रेडबस का आईबीबो (IBIBO) ने 600 करोड़ में अधिग्रहण कर लिया. इस डील से फणीन्द्र के पास उनके बैंक अकाउंट में इतने रुपये इकट्ठे हो गए हैं कि अब वह चाहे तो सारी जिंदगी आराम से बिता सकते हैं.

इस कहानी में सबसे अच्छी बात यह है कि फणीन्द्र ने पैसे कमाने के उदेश्य से यह काम नहीं शुरू करने की बजाय उन्होंने इसे प्राथमिकता दी की उनकी तरह अन्य लोगों को समस्या न हो तो उस प्रॉब्लम का समाधान मिले.

जो मेहनत फणीन्द्र और उनके दोस्तों ने कुछ सालों में की है उसी काम को करने के लिए, उन्हें ट्रेवल उद्योग में दशकों से काम कर रहे लोगों से उतनी सराहना नहीं मिली. परंतु इन सब बातों के बावजूद उन्होंने कभी भी अपना धैर्य नहीं खोया और अपने आइडिया पर काम करते रहे, यही उनकी सफलता का राज है.

ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके. 

तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ

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