“जिनको अपने काम से मुहब्बत होती है फिर उनको फुर्सत नहीं होती है”
ANANDI GOPAL JOSHI SUCCESS STORY : वर्तमान समय मे भी हमारे समाज मे महिलाओ को पुरुषों के मुकाबले मे कई तरह की रोक-टोक ओर बंधनों का सामना करना पड़ता है ऐसे मे आप भारत के आजाद होने के कुछ सालों बाद के दौर मे महिलाओ की बंदिशों की कल्पना कर सकते है.
आज हम बात कर रहे है भारत की पहली महिला डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी (ANANDI GOPAL JOSHI) की. जिनके द्वारा उस दौर मे जहा महिलाओं की शिक्षा भी दूभर थी, ऐसे समय में एक महिला द्वारा विदेश जाकर पढ़ाई कर डॉक्टरी की डिग्री हासिल करना ही अपने-आप में एक मिसाल है.
आज आपको यह सब आसान लग रहा होगा किन्तु जब उन्होंने डॉक्टर बनने का निर्णय लिया था, उस समय उनकी इस बात को लेकर समाज में काफी आलोचना हुई कि एक शादीशुदा हिंदू स्त्री अब विदेश जाकर डॉक्टरी की पढ़ाई करेगी.
लेकिन इन सब बातों के बावजूद आनंदी गोपाल एक दृढ़निश्चयी महिला थीं और उन्होंतमाम ने आलोचनाओं की बिल्कुल भी परवाह नहीं की. उनकी इसी बहादुरी ओर स्वयं पर विश्वास की वजह से उन्हें पहली भारतीय महिला डॉक्टर होने का गौरव प्राप्त हुआ.
ANANDI GOPAL JOSHI का जन्म ओर बचपन
आनंदी गोपाल जोशी का जन्म 31 मार्च 1865 में पुणे के एक रुढ़िवादी हिंदू-ब्राह्मण मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था. वह एक ऐसा दौर था जहां हर बात पर खुद की ज़रूरत व इच्छा से पहले समाज इस बारे मे क्या कहेगा इस बात की परवाह की जाती थी. आनंदीबाई का बचपन मे यमुना नाम था.
उनका लालन-पालन भी उस समय की भारतीय संस्कृति के अनुसार ही हुआ था, जिसके तहत घर की लड़कियों को ज्यादा पढ़ाया नहीं जाता था और इसी के साथ लड़कियों पर कई प्रकार की बंदिशे भी थी. उस उम्र मे लड़कियों की शादी बचपन मे ही हो जाती थी ओर यही आनंदी के साथ भी हुआ ओर 9 साल की छोटी-सी उम्र में उनका विवाह उनसे 20 साल बड़े गोपाल विनायक जोशी से कर दिया गया था. शादी के बाद उनका नाम बदलकर यमुना से आनंदी गोपाल जोशी रख दिया गया.
अपनी शादी के कुछ समय बाद जब आनंदीबाई 14 साल की थी, उस समय उन्होंने अपने बेटे को जन्म दिया. लेकिन देश मे उस समय चिकित्सा की स्थिति सही नहीं थी ओर दुर्भाग्यवश उचित चिकित्सा के अभाव में उनके बेटे का जन्म से 10 दिनों में ही देहांत हो गया.
इस घटना से आनंदीबाई को गहरा सदमा लगा ओर वह भीतर-ही-भीतर टूट-सी गई. कुछ समय तक गहरे सदमे के बाद आनंदीबाई ने किसी तरह से अपने आपको संभाला और देश मे चिकित्सा व्यवस्था ठीक करने का सोचकर एक डॉक्टर बनने का निश्चय लिया. वह उस समय देश मे चिकित्सा के अभाव में असमय होने वाली मौतों को रोकने के लिए अपना योगदान देना चाहती थी.
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आनंदीबाई के पति ने दिया साथ
आनंदीबाई द्वारा अचानक से लिए इस फैसले से उनके परिजन और समाज के बीच मे विरोध की लहर उठ खड़ी हुई. मगर उनके इस फैसले में उनके पति गोपालराव ने आनंदीबाई का पूरा साथ दिया. आनंदीबाई के पति गोपाल विनायक एक प्रगतिशील विचार वाले व्यक्ति थे और इन्ही विचारों के चलते वे महिला-शिक्षा का समर्थन भी करते थे.
समाज के विपरीत वे खुद आनंदीबाई के अंग्रेजी, संस्कृत और मराठी भाषा के शिक्षक भी बने. कई बार तो उनके पति गोपाल ने उन्हें पढ़ने के लिए डाँट भी लगाई. जब आनंदीबाई ने डॉक्टरी करने का निश्चय किया तब भारत में ऐलोपैथिक डॉक्टरी की पढ़ाई की कोई व्यवस्था नहीं थी, इस कारण से उन्हें आगे की पढ़ाई करने के लिए विदेश जाना पड़ा.
आनंदीबाई ओर उनके पति के बारे मे श्री जनार्दन जोशी ने अपने उपन्यास ‘आनंदी गोपाल में लिखा है,
“आनंदीबाई के पति गोपाल की यह ज़िद थी कि अपनी पत्नी को ज्यादा से ज्यादा पढा़ऊँ. इसके लिए उन्होंने पुरातनपंथी ब्राह्मण-समाज का तिरस्कार तक झेला. उस समय पुरुषों के लिए भी निषिद्ध, सात समंदर पार अपनी पत्नी को भेज कर गोपाल ने उसे पहली भारतीय महिला डॉक्टर बनाने का इतिहास रचा.”
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प्रथम भारतीय महिला डॉक्टर
डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए वर्ष 1883 में जब आनंदीबाई ने अमेरिका (पेनसिल्वेनिया) की जमीन पर कदम रखा तो वे उस दौर में किसी भी विदेशी जमीन पर कदम रखने वाली पहली भारतीय हिंदू महिला थी. अपने जज्बे ओर हौंसले के दम पर उन्नीस वर्ष की उम्र में 11 मार्च 1886 को आनंदीबाई MD की डिग्री लेकर भारत लौट आई. जब आनंदीबाई ने यह डिग्री प्राप्त की, तब उस समय महारानी विक्टोरिया ने उन्हें इस बात के लिए बधाई-पत्र लिखा और भारत में पहुचने पर उनका स्वागत एक नायिका की तरह किया गया.
भारत वापस आने के कुछ ही दिनों बाद ही आनंदीबाई टीबी की शिकार हो गई. ओर भारत लौटने के अगले साल 26 फरवरी 1887 को मात्र 22 साल की उम्र में ही उनका निधन हो गया. यह बात पूर्ण रूप से सच है कि आनंदीबाई ने जिस उद्देश्य से डॉक्टरी की डिग्री हासिल की थी, उसमें वे पूरी तरह से सफल नहीं हो पाईं, परंतु इसके बावजूद उन्होंने हमारे समाज में वह स्थान प्राप्त किया, जो आज भी समस्त देशवासियों के लिए एक मिसाल है. आनंदीबाई ने अपने जज़्बे और हिम्मत से उस दौर में लड़कियों की आने वाली पीढ़ी को अपने सपने को पूरा करने के लिए लड़ना सिखाया.
आनंदीबाई की मृत्यु के पश्चात उनके जीवन पर कैरोलिन वेलस ने वर्ष 1888 में एक बायोग्राफी लिखी. इसी बायोग्राफी पर कुछ वर्ष बाद ‘आनंदी गोपाल’ नाम से सीरियल बना और उसका प्रसारण नैशनल टेलीविजन चैनल दूरदर्शन पर किया गया.
आनंदी गोपाल जोशी का जीवनकाल अल्प जरूर था किन्तु इसके बावजूद उसने समाज की रुढ़िवादी विचारधारा का विरोध कर एक नई परंपरा के सृजन के लिए द्वार खोले इसी के साथ-साथ आनंदीबाई की कहानी एक भारतीय महिला की कर्मठता, दृढ़ता और कड़ी मेहनत का उत्कृष्ट उदाहरण है.
ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.
तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…