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NAVYA AGARWAL : पढ़ाई पूरी कर अपने गॉंव में 3.5 लाख रुपये से बिजनेस शुरू कर उसे करोड़ों तक पहुँचाया

“कुछ हांसिल करने वाले किसी का इंतज़ार नहीं करते है, वो बस अपने राह पर निकल जाते है।”

SUCCESS STORY OF NAVYA AGARWAL : हमारे यहाँ पर एक कहावत है कि प्रत्येक व्यक्ति में कोई न कोई हुनर ज़रूर छुपा हुआ होता है बस अंतर इतना सा है कि कुछ लोग अपने हुनर को समय पर पहचान कर उसे तराश लेते है और कुछ लोगों को उनके हुनर और उनकी क्षमताओं का ज्ञान करवाना पड़ता है. आज की हमारी कहानी भी इसी तरह से दूसरों के हुनर को तलाश कर एक नयी पहचान दिलाने वाली साधारण सी लड़की की है.

उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के छोटे से शहर सीतापुर से हज़ारों किलोमीटर दूर बंगलौर में डिजाइनिंग की पढ़ाई करने गई नव्या अग्रवाल (NAVYA AGARWAL) ने हमेशा से ही एक सपना देखा था कि वे ऐसे लोगों की मदद कर सके जिनमें प्रतिभा तो है परन्तु उनकी प्रतिभा को उचित मार्गदर्शन, संसाधन और उचित अवसर उपलब्ध न होने के कारण उनका हुनर कही खो सा जाता है.

नव्या अग्रवाल अगर चाहती तो बंगलौर से डिजाइनिंग का कोर्स करने के बाद अपने पिता का जमा हुआ व्यवसाय सम्भाल सकती थी या फिर किसी बड़ी मल्टीनेशनल कम्पनी में अच्छी सी नौकरी भी कर सकती थी लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ भी नही किया. नव्या अग्रवाल ने डिजाइनिंग का कोर्स ख़त्म करने के बाद सीतापुर का रुख किया और निकल पड़ी नई प्रतिभाओं की तलाश करने के लिए.

हुनरमाँड लोगों की इस तलाश में उन्हें उनके ही शहर के ऎसे कई हुनरमंद लोग मिलने लगे और इसी के साथ उनका इरादा ओर भी मजबूत होता गया. नव्या के पापा ने हमेशा एक बात कही कि अगर आप में कुछ करने की इच्छा है तो बिना डरे हुए उसे पूरा करें.

नव्या अग्रवाल ने इस दौरान देखा की सीतापुर में लकड़ी के उपयोग से विभिन्न प्रकार की कलात्मक सामग्री बनाना लोगो को बहुत अच्छे से आता है बस आवश्यकता है तो ऐसे लोगों को प्रोत्साहन और संसाधन उपलब्ध करवाने की. इसी विचार के साथ नव्या अग्रवाल ने अपने पिता के व्यवसाय से हटकर लकड़ी के उत्पादों पर काम करने का मन बनाया.

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NAVYA AGARWAL

NAVYA AGARWAL की माँ है उनकी प्रेरणा

नव्या अग्रवाल अपनी माँ अंशु अग्रवाल को अपनी प्रेरणा मानती है उनकी माँ एक इंग्लिश टीचर है जिन्होंने नव्या द्वारा तलाशे गए कारीगरों को समझाया उन्हें उसी के साथ उन्हें प्रशिक्षण दिया और आज वे सभी नव्या की वर्कशॅाप का अहम हिस्सा हैं. नव्या अग्रवाल ने अपने कोर्स के दौरान लकड़ी के साथ बेसिक मशीनरी की मदद से काम किया इससे उन्हें कई इस क्षेत्र की आवश्यक जानकारी भी मिल गई.

नव्या अग्रवाल ने एक निश्चय के साथ मात्र साढ़े तीन लाख रुपये की पूंजी के साथ अपने कारोबार की शुरुआत की. एक ओर भारत में जहाँ कुटीर उद्योगों का अस्तित्व खत्म होता नज़र आ रहा है वही नव्या अग्रवाल की यह पहल सीतापुर के कुटीर उद्योगों को एक नया जीवन जीने का माध्यम उपलब्ध करवा रही है. इस प्रकार से सीतापुर से शुरू हुआ नए प्रकार का उद्योग हमारे देश में कई नई प्रतिभाओं को जन्म दे रहा है.

नव्या अपने इस बिजनेस के शुरूआती सफ़र के बारे में कहती है की, ”मैंने साल 2013 में 23 साल की उम्र में “आई वैल्यू एवरी आइडिया” (IVEI) की नींव रखी थी. इसका मतलब होता है आपके हर विचार का हम सम्मान करते हैं.“

सीतापुर में नव्या अग्रवाल द्वारा इस उद्योग का श्री गणेश करते हुए. “आई वैल्यू एवरी आइडिया” नाम के NGO  के अंतर्गत सीतापुर के विजय लक्ष्मी नगर के गजानन भवन में पॉपुलर की लकड़ी से बने कलात्मक उत्पादों का निर्माण वर्तमान समय में पुरे भारत में अपनी एक अलग पहचान बना चूका है. IVEI ने इन कारीगरों के कौशल को निखारने के साथ ही उसको नया रुप दिया.

नव्या बताती है “मैंने देखा कि इन लकड़ी के कारीगरों के पास स्किल है परंतु इसके बावजूद भी इनके परिवार अनेक परेशानियों का सामना कर रहे हैं और आर्थिक रूप से सक्षम नही है और बिना टेक्नोलॉजी की मदद लिए ही ये कारीगर लकड़ी की खूबसूरत वस्तुऐं बना रहे थे. बस इनके पास कमी थी तो एक्सपोजर की.“

नव्या ने करीब 15 लोगों को पॉपुलर की लकड़ी से तरह तरह के ख़ूबसूरत सामानों को बनाने के लिए प्रशिक्षित किया जिसमें पांच लड़कियां भी शामिल हैं. मौजूदा वक्त में उनके कारखाने में निर्मित ज्वेलरी बॉक्स, ट्रेडिशनल हुक्स, कॉस्टर्स, अगरबत्ती स्टैंड, वुडेन ट्रे, गिफ्टकार्डस, पेन ड्राइवर्स सहित करीब 10 दर्जन से अधिक कलात्मक वस्तुओं का निर्माण किया जा रहा है.

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NAVYA AGARWAL

ONLINE website पर है सामान की डिमांड

इसी के साथ ही उनका सामान ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट फ्लिपकार्ट, अमेजॉन, फैबफर्निश, स्नैपडील, शॉपक्लूज के जरिये देश के देश के हर शहरों में पहुँच रहा है और बहुत ही कम समय में लगभग सालाना 15 लाख का टर्न ओवर भी IVEI द्वारा किया जा रहा है.

नव्या अग्रवाल के कारखाने में निर्मित उत्पाद वैसे तो दिल्ली, मुम्बई, बंगलौर जैसे मेट्रो सिटी में बहुत पसंद किये जा रहे हैं, लेकिन उनके सामान की सबसे अधिक मांग दक्षिण भारत में है क्योंकि वहाँ पर लकड़ी के बने उत्पादों को लोग अधिक पसंद करते हैं. नव्या के सीतापुर IVEI में बने उत्पादों की लोकप्रियता का आलम यह है कि यहां के उत्पादों को बेचने के लिए दिल्ली, बंगलौर और चेन्नई के व्यापारियों ने तो अपने यहाँ रिटेल आउटलेट भी खोल दिए है.

नव्या अग्रवाल अपने उद्योग के बारे में बात करते हुए कहती है की ” हमारे यहाँ बने लकड़ी के चाबी के गुच्छे और दीवार घड़ी को लोगों द्वारा बहुत पसंद किया जाता है. और साथ ही साथ IVEI के प्रयासों ने लोगों को अन्य तरह के उत्पादों से भी रूबरू कराया जिसका असर इन बड़े शहरों में खास तौर पर देखा जा रहा है.“

नव्या अग्रवाल के इस उद्योग ने सीतापुर की प्रतिभा को पूरे देश में एक अलग पहचान दिलवाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया इसी के साथ-साथ हुनरमंद लोगो के हुनर को अवसर और संसाधन भी मुहैया करवाए है इससे ऐसे लोगों की जीविका सुचारू रूप से चल रही है. IVEI के जरिये नव्या अग्रवाल एक तरफ़ कुटीर उद्योगों को हमारे देश में बढ़ावा दे रही है तो दूसरी ऒर उनकी कोशिश लोगों के घरों तक अपना सामान पहुचाने की भी है.

इसलिए उन्होंने बच्चों के खिलौनों और घरेलू उत्पादों को भी अपने यहाँ प्रमुखता दी है. नव्या अग्रवाल ने अपने कारखाने में स्नैक बाउल्स, मिनी फर्नीचर सेट, बच्चों की गुल्लक, पजल राइटिंग बोर्ड, हॉबी बोर्ड्स, पिन बोर्ड्स, फोल्डिंग टेबल, खिलौनों में ट्रक आर्गेनाइजर, यूटिलिटी कैलेंडर आदि के निर्माण और डिजाइन पर आवश्यक रूप से कार्य किया है.

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NAVYA AGARWAL

NAVYA AGARWAL को करना पड़ा संघर्षो का सामना

नव्या अग्रवाल को यह सफलता इतनी आसानी से नही मिली है बल्कि इसके लिए उन्हें भी अपने स्टार्टअप की शुरुआत में अनेक प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ा. नव्या के sअमने सबसे मुश्किल था उन कलाकारों का विश्वास जितना जिनके साथ वो काम करना चाहती थी. इसी के साथ उन लोगों के आत्मविश्वास को बढ़ाना और उनके आत्मसम्मान की रक्षा करना.

नव्या अग्रवाल द्वारा इस दिशा में काफी मेहनत करने के बाद उनके प्रयासों ने रंग लाना शुरू किया ओर कुछ कारीगर उनके साथ काम करने के लिए राजी हुए और इस प्रकार धीरे धीरे सफ़लता की सीढ़ी चढ़ते हुए अन्य कारीगर भी नव्या पर विश्वास करने लगे और उनके साथ काम करने के लिए तैयार होने लगे. आज नव्या के साथ आस–पास के जिलों जैसे लखीमपुर खीरी, हरदोई आदि के भी कारीगर भी काम कर रहे है. इनमे बड़ी संख्या में महिलायें भी सामिल हैं.

अब नव्या अग्रवाल का लक्ष्य पुरे राज्य में कारीगरों को प्रोत्साहित करना और उनके हुनर को नई पहचान दिलाना है. आज उत्तरप्रदेश के इन कारीगरों की हस्तशिल्प कला को देखकर हर कोई अपने दांतो तले उंगलियां दबाने पर मजबूर हो जाता है.

IVEI की भविष्य की योजना के बारे में बताते हुए नव्या केवल इतना कहती है की “मोर आर्टिज़न, मोर डिजाइन, मोर हैप्पीनेस “ नव्या इस बात को भी पूर्ण रूप से नकारती है की शादी होने के बाद लड़की के सपने कही खो जाते है उनका मानना है की अगर किसी के अंदर अपने सपनों को पूरा करने का जुनून है तो मंजिल तक जाने के लिए रास्ते अपने आप बनते चले जाते है.

नव्या कहती है “मेरी शादी ने मुझे कभी भी रुकने नहीं दिया. आज मैं एक बच्चे की मां भी हूं। मैं एक प्रोडक्ट ग्राफिक डिजायनर हूं और IVEI मेरा स्वाभिमान होने के साथ मेरी पहचान भी है. सफलता की सिर्फ एक परिभाषा है कि पहले आप खुद सफल बनो।” नव्या अग्रवाल आज हमारे देश में सही मायनों में कुटीर उद्योग को बढ़ावा दे रहीं हैं और इन उद्योगों के लिए संजीवनी बनकर उभरी हैं.

ओर एक बात ओर आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके.

तो दोस्तों फिर मिलते है एक और ऐसे ही किसी प्रेणादायक शख्शियत की कहानी के साथ…

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